Categories
आलिम सर की हिंदी क्लास शुद्ध-अशुद्ध

67. आप क्या खाना पसंद करेंगे, मिष्टान्न या मिष्ठान्न?

मिठाई या मीठे व्यंजनों के लिए कौनसा शब्द सही है – मिष्टान्न या मिष्ठान्न? इस विषय पर फ़ेसबुक पर पूछे गए सवाल पर 59% के अच्छे-ख़ासे बहुमत ने कहा – मिष्ठान्न, शेष यानी 41% ने कहा – मिष्टान्न। सही क्या है और क्यों है, यह जानने के लिए आगे पढ़ें।

मिष्टान्न और मिष्ठान्न में सही क्या है, यह तय करने के दो तरीक़े हैं। एक, शब्द का स्रोत क्या है और वहाँ यह कैसे बोला या लिखा जाता है? दूसरा, बहुमत किसको सही मानता है? मैं पहले तरीक़े का समर्थक हूँ क्योंकि यदि दूसरे तरीक़े से ही सही-ग़लत का फ़ैसला करना हो तो न मुझे कुछ लिखने की ज़रूरत है, न आपको कुछ पढ़ने की। पिछले दिन के पोल का नतीजा ही फ़ैसला कर देगा कि कौनसा शब्द सही है।

मिष्टान्न और मिष्ठान्न के मामले में भी मैं स्रोत पर जाना चाहूँगा। स्रोत है संस्कृत जहाँ मीठे के लिए मिष्ट शब्द है (देखें चित्र)। मिष्ट+अन्न मिलकर हुआ मिष्टान्न। संस्कृत में यह मिष्टान्नम् (मिष्ट+अन्नम्) होगा। हिंदी के प्रामाणिक शब्दकोश भी मिष्टान्न शब्द ही बताते हैं, मिष्ठान्न नहीं (देखें चित्र)।

जब मैंने इन दो शब्दों पर पोल करने का इरादा किया, तब मुझे यह तो पता था कि सही शब्द मिष्टान्न है परंतु यह नहीं पता था कि क्यों है। कारण जानने के लिए मैंने ‘ष्ट’ और ‘ष्ठ’ वाले शब्दों पर हलका-फुलका शब्दकोशीय रिसर्च किया। शब्दकोश में ‘ष्ट’ और ‘ष्ठ’ वाले शब्दों की लिस्ट देखने पर मैंने पाया कि जिन शब्दों में ष् के बाद त (या क्त) प्रत्यय लगा है, वहाँ ‘ष्ट’ हो रहा है और जिनमें ष् के बाद थ (या क्थ) प्रत्यय लगा है, वहाँ ‘ष्ठ’ हो रहा है।

‘ष्ट’ के मामले में मैंने ये उदाहरण देखे।

  • मिष्ट>मिष्-क्त।
  • स्पष्ट>स्पश्-क्त।
  • दुष्ट>दुष्-क्त।

‘ष्ठ’ के मामले में ये उदाहरण देखे।

  • काष्ठम्>काष्-क्थन्।
  • अंगुष्ठ>अङ्गु-स्था।
  • कोष्ठ >कुष्-थन्।

ऐसे ही और भी बहुत-से शब्द मिले। सबमें त और थ का ही चक्कर था – ष् के बाद त हो तो ष्ट और थ हो तो ष्ठ। इन शब्दों में एक बात और ग़ौर की मैंने कि त और थ से पहले कई जगहों पर क् भी आ रहा था जैसे क्त या क्थ।

संस्कृत के मामले में मैं शून्य हूँ इसलिए यह मसला अपने भाषामित्र योगेंद्रनाथ मिश्र के साथ शेयर किया। उन्होंने जो बातें बताईं, वे मेरी अपनी समझ से इस प्रकार हैं।

1. ये जो श-ष-स परिवार के तीन भाई हैं, इनकी सबके साथ बराबर पटरी नहीं बैठती। श की दोस्ती च से है (दोनों तालव्य हैं) तो ष की दोस्ती ट-ठ से है (तीनों मूर्धन्य हैं) और स की दोस्ती त-थ से है (तीनों दंतस्य हैं)। इसी कारण च से पहले हमेशा श् आता है (पुनश्च, दुश्चिंता), ट-ठ से पहले हमेशा ष् आता है (चेष्टा, प्रकोष्ठ) और त-थ से पहले हमेशा स् आता है (रास्ता, स्थान)।

2. ष की ट-ठ के साथ इस दोस्ती के कारण ही किसी शब्दनिर्माण की प्रक्रिया में अगर ष् के बाद त्-थ् की ध्वनि आती हो, तो वह त् या थ् नहीं रहती, ट् या ठ् में बदल जाती है – त् की ध्वनि ट् में और थ् की ध्वनि ठ् में। उदाहरण आप ऊपर देख ही चुके हैं।

3. अब रहा क्त और क्थ का चक्कर तो वह मुझे समझ में नहीं आया। इसलिए मिश्र जी ने दो उदाहरण देते हुए जो लिखा था, वही नीचे कॉपी-पेस्ट कर रहा हूँ।

  • कुष्+थन्> न् का लोप होने के बाद कुष्ठ।
  • काश्+क्थन्> क् तथा न् की इत्संज्ञा होने से लोप हो जाता है। फिर श् और थ मिलकर ष्ठ बन जाते हैं।

यह सब बताने का मक़सद यह कि संस्कृत के जो शब्द हैं, वे ध्वनि के अपने नियमों के आधार पर बने हैं। इस आधार पर मिष्+क्त से मिष्ट बना है और उसी से मिष्टान्न भी। यदि संस्कृत में मिष्ठ होता तो अन्न से मिलकर वह मिष्ठान्न होता। परंतु ऐसा तो है नहीं।

लेकिन यह भी सच है कि आज की तारीख़ में मिष्ठान्न ही ज़्यादा प्रचलित है हालाँकि अंतर क़रीब 20% का ही है जैसा कि हमारे पोल से पता चल रहा है।

मिष्टान्न मिष्ठान्न में क्यों बदला?

मिष्ठान्न क्यों ज़्यादा प्रचलित हुआ, इसके मुझे दो कारण दिखाई देते हैं।

1. मिष्टान्न के लिए हिंदी में जो चालू शब्द है, वह है मिठाई। मिठाई भी मिष्ट से ही बना है। मिष्ट से प्राकृत में हुआ मिट्ठ, मिट्ठ से मीठा और मीठा से मिठाई। इस मिठाई में चूँकि ‘ठ’ है, इसलिए इसका मूल संस्कृत रूप इस्तेमाल करते समय भी लोग मिष्ठान्न ही बोलने लगे।

2. दूसरा कारण यह हो सकता है कि मिष्टान्न से मिलते-जुलते कुछ शब्दों में ‘ठ’ है जैसे अनुष्ठान, प्रतिष्ठान आदि। इसलिए लोगों को लगा कि यहाँ भी मिष्ठान्न ही होगा। कई लोग मिष्टान्न को मिष्ठान भी बोलते हैं।

भाषाई चक्कर : माँगी मिठाई, मिला नमक

मीठा से बहुत पहले सुना एक प्रहसन याद आ गया। हुआ यह कि एक बिहारी सज्जन किसी गुजराती भाई के यहाँ दावत में गए। पत्तलें बिछी थीं और परोसिये बारी-बारी से खाद्य सामग्री परोस रहे थे। एक परोसिया मीठुँ-मीठुँ पुकारता जा रहा था। बिहारी सज्जन ने उसे पुकारा और कहा, थोड़ा मीठुँ दे दो। भाई जी ने पत्तल में थोड़ा नमक डाल दिया। बिहारी सज्जन परेशान, कह रहा था मीठुँ, दे दिया नमक।

भोजन शुरू हुआ। सबकुछ आ गया – दाल, सब्जी, पुड़ी, चटनी, पापड़ लेकिन मीठा नहीं आया तो बिहारी सज्जन से रहा नहीं गया। किसी और परोसिये को बुलाकर कहा, थोड़ा मीठा ले आना। वह भलामानस भी चकित, इतना मीठुँ पड़ा है, फिर भी और माँग रहा है। ख़ैर, वह एक दोने में नमक लेकर आ गया। जब वह नमक डालने लगा तो बिहारी सज्जन उखड़कर बोले, ‘मीठा माँग रहा हूँ, दे रहे हो नमक।‘ तब गुजराती भाई ने कहा, ‘मीठुँ ही तो दे रहे हैं।‘ तब जाकर बिहारी सज्जन को समझ में आया कि गुजराती में नमक को मीठुँ कहते हैं।

अब गुजराती में नमक को मीठुँ क्यों कहते हैं, इसके बारे में तो गुजराती भाषा का कोई जानकार ही बता सकता है। वैसे तो मैं भी मूलत: गुजराती हूँ लेकिन तमाम उम्र गुजरात से बाहर रहने के कारण ‘केम छो’ और ‘सारु छे’ से ज़्यादा कुछ नहीं सीख पाया।

पसंद आया हो तो हमें फ़ॉलो और शेयर करें

One reply on “67. आप क्या खाना पसंद करेंगे, मिष्टान्न या मिष्ठान्न?”

जानकर प्रसन्नता हुई कि आप मूलतः गुजरात से हैं।

अपनी टिप्पणी लिखें

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Social media & sharing icons powered by UltimatelySocial