‘गर्मी’ के दिनों में ‘गरमागरम’ चाय पीने में कोई गड़बड़ी नहीं है। गड़बड़ी गर्मी और गरम की स्पेलिंग में है। अगर शब्द गरम है तो उससे गरमी बनेगा, गर्मी नहीं। लेकिन अधिकतर लोग यही बोलते-लिखते हैं – गरमागरम चाय और गर्मी का मौसम। आख़िर सही क्या है – गरम या गर्म, गरमी या गर्मी, जानने के लिए आगे पढ़ें।
गर्मी और गरमी में कौनसा ज़्यादा लोकप्रिय है, यह जानने के लिए जब फ़ेसबुक पर एक पोल किया गया तो उसमें तीन-चौथाई से कुछ ही कम यानी 73% के विशाल बहुमत ने कहा – गर्मी, 27% के अल्पमत ने कहा – गरमी।
सही शब्द क्या है, इसका पता लगाने के तीन तरीक़े हैं। एक, शब्दकोशों में खोजा जाए कि वहाँ क्या लिखा है। दो, शब्द के स्रोत तक जाया जाए कि जिस भाषा से वह आया है, वहाँ इसका क्या रूप था। तीसरा, प्रचलन के आधार पर तय किया जाए कि किसे ज़्यादा मक़बूलियत हासिल है और उसे ही सही मान लिया जाए।
पहले हम हिंदी शब्दकोशों की शरण में जाते हैं। हिंदी शब्दसागर में जब हम गर्मी शब्द खोजते हैं तो वह ग़ायब मिलता है। मिलता है गरमी (देखें चित्र)। इसी तरह गर्म खोजने पर वह गरम की एंट्री पर जाने का संकेत देता है। हरदेव बाहरी वाले शब्दकोश में भी यही स्थिति है। गर्मी खोजने पर कहता है – देखें गरमी। राजपाल में भी यही है। नीचे स्लाइड करते देखें शब्दकोशों में गर्म, गर्मी और गरमी की प्रविष्टियाँ।
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इसका अर्थ यह हुआ कि हिंदी शब्दकोश गर्म और गर्मी को वरीयता नहीं देते। वे गरम और गरमी को ही प्राथमिकता देते हैं।
लेकिन यहाँ एक पेच है। पेच यह कि गरम और गरमी को सही बताते हुए भी शब्दसागर में मूल शब्द गर्म और गर्मी ही बताया गया है। यानी जिस फ़ारसी भाषा से ये शब्द आए हैं, वहाँ उनका उच्चारण गर्म और गर्मी ही है।
इस बात को डबल-चेक करने के लिए मैंने पहले रेख़्ता देखा। वहाँ मुझे दोनों रूप मिले – गर्म/गरम, गर्मी/गरमी। लेकिन ‘मद्दाह’ वाले शब्दकोश में केवल गर्म और गर्मी हैं, गरम और गरमी नहीं (देखें चित्र)।
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सारांश यह कि हिंदी शब्दकोशों के अनुसार गरम और गरमी सही हैं, उर्दू-हिंदी के प्रामाणिक शब्दकोश में गर्म और गर्मी हैं। इससे हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि फ़ारसी में जो गर्म और गर्मी थे, वे जब हिंदी में आए तो गरम और गरमी हो गए।
लेकिन क्या यह निष्कर्ष सही है? मेरे हिसाब से नहीं। मेरे अनुसार हिंदीवालों ने इन दोनों शब्दों के साथ अलग-अलग सलूक किया। उन्होंने गर्म को तो बदलकर गरम कर दिया लेकिन गर्मी को गर्मी ही रहने दिया। मेरे इस अनुमान को गर्म/गरम और गर्मी/गरमी पर किए गए उन दो अलग-अलग पोलों से भी बल मिलता है जो मैंने हिंदी कविता और अपने निजी प्रोफ़ाइल पर एकसाथ किए थे। इन दो पोलों का परिणाम यह है कि हिंदी कविता पर क़रीब तीन-चौथाई ने ‘गर्मी’ के पक्ष में वोट दिया है। उधर मेरे पेज पर 65% यानी दो-तिहाई ने ‘गरम’ के पक्ष में वोट किया (देखें दोनों चित्र)। यानी बहुमत गर्मी को सही मानता है लेकिन बोलते समय गर्म नहीं, गरम बोलता है। है न अजीब बात?
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गर्म से गरम बनना कोई आश्चर्यजनक नहीं है। हिंदी में ऐसे ढेरों उदाहरण हैं जैसे कर्म से करम, धर्म से धरम, नर्म से नरम, ज़ुल्म से जुलम, पूर्व से पूरब आदि। इसी तरह गर्म का गरम हो गया होगा।
जहाँ तक ‘गर्मी’ और ‘गरमी’ का सवाल है, दोनों का उच्चारण एक ही है और उन्हें गर्मी भी लिखा जा सकता है और गरमी भी। लेकिन इस तरह के शब्दों के मामले में हिंदी की प्रकृति आधे वर्ण के पक्ष में है। इसके दो कारण हो सकते हैं।
1. संस्कृत में ऐसे काफ़ी शब्द हिंदी में आए हैं जैसे पूर्ति, वृष्टि, तुष्टि, व्यक्ति, स्फूर्ति आदि। इसलिए जब दूसरी भाषाओं से भी ऐसे शब्द आए तो हिंदी ने उनका वही रूप अपना लिया जिसमें बीच का वर्ण आधा हो चाहे मूल भाषा में उसका जो भी रूप रहा हो। उदाहरण देखें –
- कुर्सी न कि कुरसी
- कुर्ता न कि कुरता
- मुर्गा न कि मुरगा
- मर्ज़ी न कि मरज़ी
2. तीन वर्णों वाले शब्दों में जहाँ बीच में अकार यानी अ स्वर वाला वर्ण हो और अंत में अ के अलावा कोई और स्वर, तो बीच वाले अ का उच्चारण हमेशा आधे जैसा ही होता है। आप गरमी, कुरसी जैसे शब्द बोलकर देखिए, उनमें र का उच्चारण आधे जैसा ही प्रतीत होगा। इसलिए लिखते समय लोगों ने उसे आधा ही मान लिया भले ही मूल भाषा वह कुछ भी रहा हो।
शब्दकोश देखेंगे तो उनमें आपको कुरसी, कुरता, मुरग़ा, मरज़ी आदि सब मिल जाएँगे (देखें चित्र) लेकिन प्रचलन में कुर्सी, कुर्ता, मुर्गा और मर्ज़ी ही हैं। इसी तरह हिंदी शब्दकोश भले गरमी को सही बताएँ, प्रचलन में गर्मी ही है जैसा कि हमारे पोल से भी साबित हुआ।
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लेकिन इसी कारण कभी-कभी बड़ी गड़बड़ी भी हो जाती है। इसके बारे में आप पढ़ सकते हैं अगली शब्द पहेली में जिसमें चर्चा की गई है बदरी और बद्री की। पढ़ें – सही क्या है – बद्रीनाथ या बदरीनाथ?