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क्या दारा सिंह को माफ़ी मिलनी चाहिए?

उड़ीसा में बीजेपी सरकार बनने के बाद सबसे नया काम यह हुआ है कि ग्रेअम स्टेन्स और उनके दो बच्चों को ज़िंदा जलाने वाले दारा सिंह ने अपनी उम्रक़ैद की सज़ा समाप्त करने की दर्ख़्वास्त दी है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में राज्य की बीजेपी सरकार से उसकी राय माँगी है जो निश्चित रूप से सकारात्मक होगी। राजनीतिक हत्यारों की सज़ामाफी के लिए इससे पहले भी सरकारी पहलें हो चुकी हैं। सवाल है – क्या ऐसे लोगों को माफ़ी दी जानी चाहिए?

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बचपन का साथी था वो, हो जाता सच कहता जो…

ज्योतिष शास्त्र, अंक शास्त्र या ताश जैसे पत्तों के आधार पर क्या कोई भविष्यवाणी की जा सकती है? मैं जब ख़ुद से पूछता हूँ तो मेरा तार्किक दिमाग इस बात को मानने से इनकार कर देता है। लेकिन कुछ हैरतअंगेज़ भविष्यवाणियों का मैं स्वयं चश्मदीद गवाह रहा हूँ जो मेरी किशोरावस्था में एक मित्र ने की थीं। आज मैं आप सबके साथ उन अनुभवों को शेयर कर रहा हूँ।

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वर्ल्ड कप फ़ाइनल में भारत की हार से दुखी हैं… मगर क्यों?

वर्ल्ड कप क्रिकेट के फ़ाइनल में भारत की हार पर दुखी हैं? क्यों दुखी हैं? क्या इसलिए कि इस हार के कारण आपने ख़ुद पर गर्व करने का एक सुनहरा मौक़ा खो दिया? ‘ईस्ट ऑर वेस्ट, इंडिया इज़ द बेस्ट’ का नारा लगाने का अवसर गँवा दिया? लेकिन सच बताइए, अगर भारत जीत भी जाता तो क्या आपका कुछ हक़ था उस जीत पर इतराने का? आख़िर टीम के प्रदर्शन में आपका योगदान क्या होता है सिवाय तालियाँ बजाने के?

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एक ‘देशद्रोही’ ने कैसे मनाया 15 अगस्त?

कितना अच्छा दिन है आज। हम अंग्रेज़ों की ग़ुलामी से मुक्ति के 60 सालों का जश्न मना रहे हैं। लाल क़िले से लेकर स्कूल-कॉलेजों में और मुहल्लों से लेकर अपार्टमेंटों तक में तिरंगा फहराया जा रहा है, बच्चों में मिठाइयाँ बाँटी जा रही हैं। मेरे अपार्टमेंट में भी सुबह से देशभक्ति गीत बज रहे हैं और मैंने उस शोर से बचने के लिए अपने फ़्लैट के सारे दरवाज़े बंद कर दिए हैं। मैं नीचे झंडा फहराने के कार्यक्रम में भी नहीं जा रहा। मैं इस छुट्टी का आनंद लेते हुए घर में बैठा बेटी के साथ टॉम ऐंड जेरी देख रहा हूँ।

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उसने पूछा था – क्या मुझे सचमुच मरना ही पड़ेगा?

उन दिनों मैं संपादकीय पेज की चिट्ठियाँ छाँटा करता था जब मुझ वह चिट्ठी मिली। चिट्ठी लिखने वाली थी 22 साल की एक लड़की जिसके माता-पिता उसकी जबरन शादी किए दे रहे थे। वह इस शादी के ख़िलाफ़ थी क्योंकि वह शादी करके अपने बच्चे पैदा करने के बजाय अनाथ बच्चों की माँ बनना चाहती थी। उसने नवभारत टाइम्स के संपादक से मदद माँगते हुए अंत में लिखा था – आप ही बताइए, क्या इस लड़की को सचमुच मरना ही पड़ेगा क्योंकि आप इस पत्र को इतना महत्वपूर्ण नहीं समझते।

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