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एकला चलो

बचपन का साथी था वो, हो जाता सच कहता जो…

ज्योतिष शास्त्र, अंक शास्त्र या ताश जैसे पत्तों के आधार पर क्या कोई भविष्यवाणी की जा सकती है? मैं जब ख़ुद से पूछता हूँ तो मेरा तार्किक दिमाग इस बात को मानने से इनकार कर देता है। लेकिन कुछ हैरतअंगेज़ भविष्यवाणियों का मैं स्वयं चश्मदीद गवाह रहा हूँ जो मेरी किशोरावस्था में एक मित्र ने की थीं। आज मैं आप सबके साथ उन अनुभवों को शेयर कर रहा हूँ।

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एकला चलो

वर्ल्ड कप फ़ाइनल में भारत की हार से दुखी हैं… मगर क्यों?

वर्ल्ड कप क्रिकेट के फ़ाइनल में भारत की हार पर दुखी हैं? क्यों दुखी हैं? क्या इसलिए कि इस हार के कारण आपने ख़ुद पर गर्व करने का एक सुनहरा मौक़ा खो दिया? ‘ईस्ट ऑर वेस्ट, इंडिया इज़ द बेस्ट’ का नारा लगाने का अवसर गँवा दिया? लेकिन सच बताइए, अगर भारत जीत भी जाता तो क्या आपका कुछ हक़ था उस जीत पर इतराने का? आख़िर टीम के प्रदर्शन में आपका योगदान क्या होता है सिवाय तालियाँ बजाने के?

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एक ‘देशद्रोही’ ने कैसे मनाया 15 अगस्त?

कितना अच्छा दिन है आज। हम अंग्रेज़ों की ग़ुलामी से मुक्ति के 60 सालों का जश्न मना रहे हैं। लाल क़िले से लेकर स्कूल-कॉलेजों में और मुहल्लों से लेकर अपार्टमेंटों तक में तिरंगा फहराया जा रहा है, बच्चों में मिठाइयाँ बाँटी जा रही हैं। मेरे अपार्टमेंट में भी सुबह से देशभक्ति गीत बज रहे हैं और मैंने उस शोर से बचने के लिए अपने फ़्लैट के सारे दरवाज़े बंद कर दिए हैं। मैं नीचे झंडा फहराने के कार्यक्रम में भी नहीं जा रहा। मैं इस छुट्टी का आनंद लेते हुए घर में बैठा बेटी के साथ टॉम ऐंड जेरी देख रहा हूँ।

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एकला चलो

ज़िक्र उस ख़त का लबों पर तेरे, हो गए बख़्श गुनाह सब मेरे

1977 का दिसंबर का महीना था जब मैंने समिता को पत्र लिखकर बताया था कि मैं उससे कितना प्यार करता हूँ। उसने पत्र का कोई जवाब नहीं दिया। हाँ, एक दोस्त से अवश्य कहा था कि वह नहीं जानती थी कि मैं इतना गिरा हुआ लड़का हूँ। 33 साल बाद उसी समिता से फिर से मिलना हुआ संयोग से दिसंबर के ही महीने में और पता चला कि उसे अभी भी सबकुछ याद था…

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एकला चलो

मुहब्बत बहुत करती हैं… बस ‘आइ लव यू’ नहीं कहतीं

बहुत साल पहले की बात है। फ़रीदाबाद में एक कॉलोनी में विमान गिर पड़ा। जब यह ख़बर आई तो हमारे फ़रीदाबाद रिपोर्टर ने अपने ब्यूरो इनचार्ज को फोन किया। घंटी बजी तो फ़ोन उठाया उनकी पत्नी ने। ब्यूरो इनचार्ज अपना मोबाइल घर पर ही भूल गए थे और थोड़ा दूर गए हुए थे खाने का कुछ सामान लाने। उस रोज़ रात का खाना बाहर से मँगाने का तय हुआ था।

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