अंतर्आत्मा, अंतरआत्मा और अंतरात्मा। इन तीनों में से कौनसी स्पेलिंग सही है? जब इसपर एक फ़ेसबुक पोल किया गया तो 70% ने अंतरात्मा को सही बताया जबकि शेष 30% ने अंतर्आत्मा को। सही क्या है, जानने के लिए आगे पढ़ें।
सही है अंतरात्मा लेकिन अंतर्आत्मा भी ग़लत नहीं है। कारण यह शब्द अंतर्+आत्मा से ही बना है।
अब सवाल यह पूछा जा सकता है कि अगर यह शब्द अंतर्+आत्मा से बना है तो दोनों के मिलने से अंतर्आत्मा ही होना चाहिए जैसे अंतर्+धान से अंतर्धान होता है। अंतर्धान में र् आधा है, वैसे ही अंतर्आत्मा में भी ‘र’ आधा रहे तो क्या परेशानी है।
परेशानी यह है कि यहाँ संस्कृत/हिंदी व्याकरण का संधि का नियम आड़े आ जाता है।
नियम यह कि
- यदि कोई दो शब्द एक-दूसरे से मिल रहे हैं (जैसे ‘अंतर्’ और ‘आत्मा’) और
- यदि बाद वाले शब्द के शुरू में कोई स्वतंत्र स्वर है (जैसे आत्मा में ‘आ’ है)
- तो नए शब्द में वह स्वतंत्र नहीं रहेगा, उसे पहले वाले शब्द के अंतिम वर्ण से मिल जाना होगा।
यानी आत्मा के ‘आ’ को अंतर् के ‘र्’ से मिल जाना होगा। ‘र्’ और ‘आ’ के मिलन से बनेगा ‘रा’। इसीलिए अंतर्+आत्मा हुआ अंतरात्मा।

बाक़ी भाषाओं में ऐसी अनिवार्यता नहीं है। उर्दू में ‘बा’ और ‘अदब’ के मिलने से बाअदब ही रहता है, वह दीर्घ संधि का नियम (आ+अ=आ) मानते हुए बादब नहीं होता। इसी तरह ‘ला’ और ‘इलाज’ के मिलने से लाइलाज ही रहता है, वह गुण संधि का नियम (आ+इ=ए) मानते हुए लेलाज नहीं होता। अंग्रेज़ी में भी TOUR टुअर ही रहता है, वह यण संधि का नियम (उ+अ=व) मानते हुए ट्वर नहीं होता।
लेकिन हिंदी के तत्सम शब्दों में आप ऐसा कोई शब्द नहीं खोज पाएँगे जिसमें बीच में कोई स्वतंत्र स्वर का अस्तित्व हो। यहाँ परम+आत्मा का परमात्मा हो जाता है, स्व+अधीन का स्वाधीन हो जाता है, अन्+इच्छा का अनिच्छा हो जाता है। इन शब्दों को आप परमआत्मा, स्वअधीन या अन्इच्छा नहीं लिख सकते।
यही कारण है कि अंतर+आत्मा को हम अंतर्आत्मा नहीं लिख सकते। अंतरात्मा ही लिखना होगा।