कभी-कभी मेरे दिल में ख़याल आता है… कि सही शब्द ख़्याल है या ख़याल। फ़िल्मी गीतों में अधिकतर ख़याल है लेकिन बोलचाल में ख़्याल चलता है। जब इस शब्द पर फ़ेसबुक पर पोल किया तो मुक़ाबला अच्छा रहा। ख़्याल के पक्षधर 56-44 यानी केवल 12% के अंतर से आगे रहे।
सही क्या है, यह जानना बहुत ही आसान है। बस हिंदी शब्दसागर में दोनों शब्द ढूँढने हैं लेकिन इस बात का ख़्याल/ख़याल रखते हुए कि शब्दसागर में नुक़्तों से परहेज़ किया गया है, इसलिए ख़्याल या ख़याल खोजेंगे तो कुछ हाथ नहीं लगेगा। ख्याल और खयाल ही ढूँढना होगा।
मैंने पहले ‘ख्याल’ सर्च किया क्योंकि मैं यही इस्तेमाल करता हूँ। वह मिला। साथ में स्रोत के तौर पर ‘खयाल’ का उल्लेख भी मिला जिसे अरबी का बताया गया है (देखें चित्र)।
फिर मैंने ‘खयाल’ ढूँढा। खयाल भी था लेकिन उसके साथ अर्थ नहीं, केवल निर्देश था – देखें ख्याल (देखें चित्र)।
इसका अर्थ क्या हुआ? अर्थ यही कि अरबी में ख़याल है जहाँ से यह उर्दू के माध्यम से हिंदी में आया है लेकिन हिंदी में अब ख्याल ही चलता है। इसकी पुष्टि प्लैट्स के शब्दकोश से भी होती है। उसका भी यही कहना है – हिंदी में ख़्याल, अरबी में ख़याल। यही कारण है कि रेख़्ता या मद्दाह के उर्दू-हिंदी शब्दकोशों में आपको ख़्याल नहीं मिलता, केवल ख़याल मिलता है।
निष्कर्ष यह कि हिंदी में बात करें या लिखें तो ख़्याल का प्रयोग करें और उर्दू में बात करें या लिखें तो ख़याल का इस्तेमाल करें। ठीक वैसे ही जैसे हिंदी में बोलें तो पुलिस, अंग्रेज़ी में बोलें तो पलीस। हिंदी में बोलें तो अस्पताल, अंग्रेज़ी में बोलें तो हॉस्पिटल।
अब रहा सवाल कि अरबी का ख़याल हिंदी में ख़्याल कैसे हो गया जबकि उर्दू में भी वह ख़याल ही है। ‘सवाल’ शब्द भी अरबी का है लेकिन वह तो स्वाल नहीं हुआ (पंजाबी में हुआ है)। कमाल भी क्माल नहीं हुआ। बवाल भी ब्वाल नहीं हुआ। अरे, बवाल का मैंने ग़लत उदाहरण दे दिया। उसमें तो ऐसा बदलाव हुआ है कि समझिए वबाल ही हो गया। लेकिन उसके बारे में अंत में बात करेंगे।
ख़याल>ख़ियाल>ख़्याल
ख़याल का ख़्याल क्यों हुआ होगा, उसका मुझे एक ही कारण नज़र आता है। वह यह कि ख़याल का एक बिगड़ा हुआ रूप ख़ियाल भी है…
… और ‘इया’ वाले शब्दों में अकसर ‘इ’ स्वर के ग़ायब हो जाने और इस कारण उसके साथ की ध्वनि के स्वरमुक्त हो जाने के कई उदाहरण दिखते हैं। कुछ बहुत ही कॉमन उदाहरण देखें।
- सियाह से स्याह
- पियादः से प्यादा
- पियालः से प्याला
- पियाज़ से प्याज़
हिंदी के तद्भव शब्दों में भी ऐसा हुआ है। दो उदाहरण मुझे याद आ रहे हैं।और भी हो सकते हैं।
- विवाह>बियाह>ब्याह
- केदार>कियार>कियारी>क्यारी
रोचक बात यह है कि यह प्रवृत्ति उलटी दिशा में भी जाती दिखती है। यानी जहाँ ‘य’ अथवा ‘या’ से पहले कोई स्वरमुक्त ध्वनि (आधा वर्ण) हो तो उसमें उस ध्वनि के साथ ‘इ’ की मात्रा लग जाती है। जैसे
- तक्यः>तकिया
- दुन्या>दुनिया
एक बहुत ही कॉमन उदाहरण Indian (इंडियन) का है। इसमें ड के साथ इ की मात्रा लगी हुई है लेकिन आप इसे बिना प्रयास के बोलें – इंडियन की जगह मुँह से इंड्यन ही निकलेगा – इंडियन>इंड्यन।
ऐसा क्यों होता है यानी ‘य’ अथवा ‘या’ से पहले ‘इ’ स्वर क्यों कुछ शब्दों में ग़ायब हो जाता है और क्यों कुछ शब्दों में आ जाता है, इसकी वजह मुझे नहीं मालूम। संभव है, दोनों (इ और य) के तालव्य होने (यानी दोनों का उच्चारण तालु से जीभ का स्पर्श होने) के कारण ऐसा होता हो। सही जवाब भाषा वैज्ञानिक ही दे सकते हैं।
हाँ, जवाब से याद आया (कुछ लोग इसे जबाव भी लिखते हैं) कि मुझे बवाल के उच्चारण के बारे में कुछ कहना है। कहना यह है कि मूल शब्द ‘वबाल’ है (देखें चित्र)।
आपने देखा किअरबी का वबाल हिंदी में बवाल हो गया और इतना अधिक प्रचलित हो गया कि अगर आप किसी से कहेंगे कि बवाल का असली रूप वबाल है तो विश्वास नहीं करेगा। मुझे भी भरोसा नहीं हुआ था जब ‘आजतक’ में मेरे तत्कालीन बॉस क़मर वहीद नक़वी ने मुझे यह जानकारी दी। और हाँ, जानते हैं, अरबी में बवाल (बव्वाल) का क्या अर्थ है? बहुत ज़्यादा सूसू करने वाला।
जाते-जाते एक सवाल भारत की राजधानी के बारे में। भारत को अंग्रेज़ी में क्या कहतै हैं और उसका उच्चारण क्या है, यह तो आप जानते ही हैं। भारत की राजधानी को अंग्रेज़ी में क्या कहते हैं, यह भी आप जानते हैं। लेकिन उसका उच्चारण क्या होगा, क्या आपको मालूम है? शायद हो, शायद न हो। जिन्हें न मालूम हो, उनको मैं बता देता हूँ। इसका सही उच्चारण न्यू डेल्ही नहीं, न्यू डेली है। h यानी ह की ध्वनि नहीं है इसमें।