आज की क्लास एक ऐसी ख़ूबी पर है जो हर इंसान दूसरे में तलाशता है लेकिन जब अपना मौक़ा आता है तो उससे परहेज़ करता दिखता है। यह ख़ूबी है सच के प्रति अपनी निष्ठा की। सवाल बस यह है कि इसे कैसे लिखेंगे या बोलेंगे – सचाई या सच्चाई?
जब सचाई और सच्चाई पर फ़ेसबुक पोल किया गया तो 88% लोगों ने सच्चाई के पक्ष में वोट किया। उससे पहले मैंने अपने प्रोफ़ाइल पेज पर यह पोल किया था तो वहाँ भी आश्चर्यजनक रूप से तक़रीबन यही परिणाम आया था – 87:13।
मेरे विचार से इन दो पोलों में जिन 88% और 87% लोगों ने सच्चाई के पक्ष में वोट किया है, वे निश्चित रूप से यही लिखते और बोलते होंगे लेकिन मुझे शक है कि वे अपने चयन के बारे में पूरी तरह से आश्वस्त होंगे। उनके दिमाग़ में भी यह सवाल ज़रूर आता होगा कि जब मूल शब्द सच है तो उससे सच्चाई कैसे बन सकता है। उससे तो सचाई ही बनना चाहिए।
मेरे दिमाग़ में भी यह सवाल था जिसका समाधान कुछ साल पहले निकला।
पहले हम सच्चाई या सचाई की तरह के कुछ शब्द ले लें। जैसे भलाई, बुराई, लंबाई, चौड़ाई, ऊँचाई, चतुराई, ढिठाई आदि। ये सब भाववाचक संज्ञाएँ हैं जो संबंधित विशेषणों में ‘आई’ प्रत्यय जुड़ने से बनी हैं। जैसे –
- भला से भलाई (भला+आई)
- बुरा से बुराई (बुरा+आई)
- लंबा से लंबाई (लंबा+आई)
- चौड़ा से चौड़ाई (चौड़ा+आई)
- ऊँचा से ऊँचाई (ऊँचा+आई)
- चतुर से चतुराई (चतुर+आई)
- ढीठ से ढिठाई (ढीठ+आई)
भला, बुरा, लंबा, चौड़ा, ऊँचा जैसे आकारांत और चतुर व ढीठ जैसे अकारांत विशेषणों की ही तरह सच्चा (आकारांत) और सच (अकारांत) भी क्रमशः आकारांत और अकारांत विशेषण हैं। अलग-अलग स्थितियों में आप कहीं सच्चा/सच्ची लिखते हैं और कहीं सच। जैसे आप लिख सकते हैं – 1. यह एक ‘सच्चा’ वाक़या है (It’s a true incident.) या 2. तुम्हारा यह कहना ‘सच’ है कि मैं जाति व्यवस्था में विश्वास नहीं करता (It’s true when you say that I don’t believe in the caste system.)। सच संज्ञा की तरह भी इस्तेमाल होता है जैसे ‘सच की हमेशा जीत होती है’ (Truth always triumphs) (हालाँकि यह दुनिया का सबसे बड़ा झूठ है)। लेकिन हम यहाँ ‘सच’ के संज्ञारूप या उसकी मिथ्या अजेयता की चर्चा न करके उसके विशेषण रूप के बारे में ही बात करेंगे।
अब देखते हैं कि सच (अकारांत) और सच्चा (आकारांत) विशेषणों के साथ ‘आई’ प्रत्यय जोड़ने पर क्या बनता है।
- चतुर+आई=चतुराई, वैसे सच+आई=सचाई
- भला+आई=भलाई, वैसे सच्चा+आई=सच्चाई।
यानी शब्द दोनों सही हैं। दोनों का एक ही अर्थ है। अंतर केवल इतना है कि सचाई सच से बना है और सच्चाई सच्चा से (देखें चित्र)। मेरे ख़्याल से ज़्यादातर सच्चाई ही बोला और इसीलिए लिखा भी जाता है।
जाते-जाते सच और सच्चा के बारे में यह भी जान लिया जाए कि ये शब्द कैसे बने। मूल शब्द सत्य है जो संस्कृत का है। सत्य से ‘सत्त’ बना और आगे चलकर ‘सच्च’ में बदल गया। ऊपर का चित्र फिर से देखें)।
इस सच्च से ही सच्चा और सच्चाई बने। लेकिन एक अन्य विकासक्रम में सच्च ख़ुद अपना द्वित्व खोकर सच में बदल गया और इसीलिए सच्च हमें अब हिंदी में नहीं मिलता।
इस तरह हिंदी में सत्य से उपजे दोनों रूप रह गए। एक – सच्च से बना सच, दूसरा – सच्च से बने सच्चा। सच्चा से ही सच्चाई बना। कुछ लोगों ने सच से सचाई (सच+आई) भी चला दिया या सच्चाई ही घिसकर सचाई हो गया, मैं नहीं जानता। कारण जो भी हो, आज की तारीख़ में एक ही भाव के लिए सच्चाई भी चल रहा है और सचाई भी।
- सत्य>सत्त>सच्च>सच्चा (विशेषण)>सच्चाई (भाववाचक संज्ञा)
- सत्य>सत्त>सच्च>सच (संज्ञा और विशेषण)>सचाई (भाववाचक संज्ञा)
इस विषय पर भाषामित्र योगेंद्रनाथ मिश्र से भी चर्चा हुई थी। उनके अनुसार सच केवल संज्ञा है और उसके साथ ‘आई’ प्रत्यय नहीं लग सकता। इसलिए सच से सचाई नहीं बन सकता। उनका मत है कि सच्चाई ही बोलने की सुविधा के चलते सचाई हो गया है। उनकी विस्तृत राय जानने के लिए यहाँ क्लिक/टैप करें।