इंकार, इन्कार और इनकार – इनमें से कौनसी स्पेलिंग सही है या सबसे अधिक सही है, इसका फ़ैसला करना थोड़ा टेढ़ा काम है। कारण, एक तो यह विदेशी भाषा से आया हुआ शब्द है। दूसरे, ख़ुद हिंदी के शब्दकोश इस मामले में बँटे हुए हैं। लेकिन फिर भी किसी एक का चुनाव करना हो तो किसे चुनना चाहिए, आज की चर्चा इसी पर है। रुचि हो तो पढ़ें।
औरों की तरह आपके सामने भी अक्सर यह समस्या आती होगी कि इंकार लिखें या फिर इनकार। या फिर इन्कार लिखना ही बेहतर है? यह समस्या इसलिए है कि हिंदी जगत में इस शब्द के तीनों ही रूप बराबर-बराबर चल रहे हैं। जब हाल ही में फ़ेसबुक पर हिंदीभाषियों के एक मंच पर लोगों से पूछा गया कि वे किस रूप को सही मानते हैं तो 29% ने इंकार को, 40% ने इन्कार को और 31% ने इनकार को सही बताया। यानी तीनों ही रूप तक़रीबन बराबर ही प्रचलित हैं।
ऐसे में इन तीनों में से किसी एक रूप को सही ठहराने से पहले हमें कुछ दिशानिर्देश तय करने होंगे।
क्या हमें सही-ग़लत का निर्णय इस आधार पर करना चाहिए कि
- अरबी या उर्दू में मूल शब्द की स्पेलिंग क्या है? या
- हमें इन भाषाओं में उसके उच्चारण के आधार पर हिंदी में उसकी वर्तनी तय करनी चाहिए? या
- हमें उस उच्चारण और वर्तनी को मान्यता दे देनी चाहिए जो हिंदी में सबसे अधिक मान्य और प्रचलित है?
आइए, हम समझते हैं कि इन तीनों में कौनसा तरीक़ा आज के हमारे फ़ैसले के लिए अनुकूल होगा।
विदेशी भाषाओं से आए शब्द की वर्तनी तय करते समय हम आम तौर पर स्पेलिंग और उच्चारण दोनों का ही सहारा लेते हैं। कभी स्पेलिंग का, कभी उच्चारण का और अक्सर दोनों का। केवल स्पेलिंग के आधार पर किसी शब्द का लिप्यंतर करने का क्या दुष्परिणाम होता है, यह हम Mummy के उदाहरण से जान सकते हैं। Mummy का सही उच्चारण है ममी (क्योंकि अंग्रेज़ी में डबल लेटर का सिंगल उच्चारण होता है) लेकिन शब्द में दो ‘m’ देखकर हिंदी में हमने मम्मी कर दिया। परंतु Pneumonia में हमने स्पेलिंग के बजाय उच्चारण को तरजीह दी और उसे प्न्यूमोनिया न लिखकर न्यूमोनिया ही लिखा। अगर Mummy में भी हमने उच्चारण पर ध्यान दिया होता तो आज सारा देश उसको ग़लत नहीं बोल रहा होता।
कहने का अर्थ यह कि विदेशी भाषा के किसी शब्द को हिंदी में लिखते समय स्पेलिंग के बजाय उसके उच्चारण पर ही अधिक ध्यान देना चाहिए और आज की चर्चा में हम यही पैमाना अपनाएँगे।
वैसे भी अंग्रेज़ी के अलावा अन्य भाषाओं के शब्दों की स्पेलिंग जानना हमारे लिए नामुमकिन है क्योंकि उनकी लिपि हमारे लिए काला अक्षर भैंस बराबर होती है। इसलिए ध्यान तो उच्चारण पर ही देना होगा। लेकिन उच्चारण का पता कैसे करें? आगे जानते हैं।
फिर से उस शब्द पर आते हैं जिसपर हम चर्चा कर रहे हैं। यदि आप तीनों विकल्पों को फिर से देखें तो इस शब्द की तीन ध्वनियों – ‘इ’, ‘का’ और ‘र्’ पर कोई विवाद नहीं है। बहस केवल इसपर है कि ‘इ’ और ‘कार’ के बीच जो ध्वनि है, वह क्या है और हिंदी में उसे कैसे लिखा जाएगा। इसका फ़ैसला करते समय हम हिंदी में उसके प्रचलित उच्चारण की भी जाँच-परख करेंगे।
अरबी मूल के इस शब्द का वास्तविक उच्चारण जानने के हमारे पास दो तरीक़े हैं – 1. शब्दकोश जिनमें इनका उच्चारण हिंदी या फ़नेटिक संकेतों में दिया हुआ हो और 2. अनुवाद वाली साइटों पर दिया गया इसका वॉइस उच्चारण जिसे सुना जा सकता है।
इसका प्रचलित उच्चारण जानने के भी हमारे पास दो तरीक़े हैं – 1. आम बोलचाल या फ़िल्मी गानों में इसका उच्चारण और 2. रोमन में किया जाने वाला इसका लिप्यंतर।
पहले प्रचलित उच्चारण की बात करें तो मेरे हिसाब से प्रचलित उच्चारण इन्कार जैसा ही है, न कि इंकार जैसा (हमारे पोल में भी सर्वाधिक वोट इसी उच्चारण के पक्ष में पड़े हैं)। यानी ‘इ’ के बाद की ध्वनि ‘न्’ जैसी है, न कि ‘ङ्’ जैसी। (जिन साथियों को दोनों का अंतर स्पष्ट नहीं हो रहा, वे ink और income के उदाहरणों से इस अंतर को समझ सकते हैं। आप जानते हैं कि ink में भी n है और income में भी n है। (K और C के कारण) दोनों में n के बाद ‘क’ की ध्वनि है लेकिन ink में n का उच्चारण ‘ङ्‘ हो रहा है – इङ्क/इंक जबकि income में n का उच्चारण ‘न्‘ हो रहा है – इन्कम।)
2. शब्दकोशों में भी इंकार कहीं नहीं है, इन्कार ही है । कहीं-कहीं इनकार भी है। कहीं-कहीं इनकार और इन्कार दोनों हैं (देखें चित्र)। वैसे अगर आप गूगल ट्रांसलेट पर अंग्रेज़ी में Refusal लिखकर इसका उर्दू शब्द खोजेंगे तो जो शब्द आएगा, उसका ध्वनि उच्चारण इन्+कार जैसा ही मिलेगा। सुनकर देखिए।
3. यदि रोमन में खोजेंगे तो वहाँ भी आपको Inkar या Inkaar ही मिलेगा (देखें चित्र)।
यानी हम चाहे जिस रास्ते को अपनाएँ, परिणाम एक ही निकलता है कि ‘इ’ और ‘कार’ के बीच जो ध्वनि है, वह ‘न्’ की है।
अब यदि ‘इ’ के बाद ‘न्’ की ध्वनि है तो सही लिप्यंतर इन्कार ही होगा, इनकार नहीं। लेकिन तब यह सवाल उठेगा कि हिंदी शब्दसागर सहित कई शब्दकोशों में इनकार क्यों दिया गया है (देखें चित्र)?
मेरी समझ से इसके दो कारण हो सकते हैं।
- इनकार की उर्दू स्पेलिंग (انکار) जिसमें ह्रस्व स्वर और हल् चिह्न अमूमन नहीं लिखे जाते।
- हिंदी में इनकार लिखने पर भी उसका उच्चारण मूल उच्चारण (इन्कार) से हूबहू मेल खाता है।
जो साथी नहीं जानते, उनको बता दूँ कि अरबी-फ़ारसी परिवार में भी हल् चिह्न की व्यवस्था है। इसे वहाँ जज़्म या सुकून कहते हैं। इसका चिह्न उलटे v जैसा होता है। यानी सही तरीक़े से लिखा जाए तो इन्कार में आने वाली ‘न्’ ध्वनि को दर्शाने वाले नून (न) के ऊपर जज़्म का चिह्न लगना चाहिए। (प्रामाणिक उर्दू-उर्दू शब्दकोशों में ऐसा ही किया जाता है)। लेकिन आम लेखन में, यहाँ तक कि किताबों और पत्रिकाओं में भी अक्सर इस चिह्न सहित अधिकतर छोटी मात्राओं को गोल कर दिया जाता है। इसलिए लिखे या छपे हुए इन्कार (انکار) में नून (न) के साथ जज़्म (हल्) का चिह्न लगा नहीं दिखता। इसी कारण यदि कोई स्पेलिंग के आधार पर इस शब्द का उर्दू से हिंदी में लिप्यंतर करे तो वह इनकार ही लिखेगा, इन्कार नहीं।
अब चूँकि इनकार लिखने से शब्द के मूल उच्चारण में कोई अंतर नहीं आता, इसलिए इनकार भी चल गया है और इन्कार भी। हरदेव बाहरी के शब्दकोश में शायद इसी कारण दोनों ही शब्दों को सही बताया गया है (देखें चित्र)।
लेकिन मद्दाह का उर्दू-हिंदी शब्दकोश इन्कार ही लिखता है, इनकार नहीं (देखें चित्र)। इसलिए मेरी समझ से भी इसे इन्कार लिखना ही उचित है।
अंग्रेज़ी की ही तरह उर्दू के शब्दों का भी स्पेलिंग के आधार पर लिप्यंतर करने से हिंदी में कई शब्दों के ग़लत उच्चारण प्रचलित हो गए हैं। इसका सबसे रोचक उदाहरण है ‘मद्रसा’ जिसे उर्दू में मदरसा (مدرسہ) लिखा जाता है क्योंकि जैसा कि मैंने ऊपर बताया, वहाँ जज़्म (हल्) का चिह्न लगाने का प्रचलन नहीं है हालाँकि जो जानते हैं, वे उसे मद+रसा ही पढ़ते हैं। रोमन में भी MADRASA ही लिखा जाता है। परंतु हिंदी में उसका उर्दू स्पेलिंग के आधार पर किए गए लिप्यंतर – मदरसा – का नुक़सान यह हुआ है कि हममें से अधिकतर लोग उसे मदर-सा बोलते हैं जबकि उसका सही उच्चारण मद+रसा है। उचित यही होता कि इसे हिंदी में मद्रसा लिखा जाता।
यही बात मशहूर कार ब्रैंड Chevrolet के साथ भी हुई है। इसका सही उच्चारण है शेव्+रले (Chev.ro.let) लेकिन हिंदी में इसे शेव्रले के बजाय शेवरले लिखा जाता है। इसकी वजह से कई अनजान लोग इसे शेवर+ले ही पढ़ते-बोलते हैं।
जैसा कि ऊपर लिखा, किसी भी विदेशी भाषा के शब्द का हिंदी में लिप्यंतर करते समय कोशिश यही होनी चाहिए कि उसकी हिंदी की वर्तनी उस शब्द के मूल उच्चारण का निकटतम प्रतिनिधित्व करे। इन्कार, मद्रसा और शेव्रले अपने मूल उच्चारण के निकटतम हैं, इसलिए मेरे हिसाब से यही वर्तनियाँ सही हैं।
कई लोग इन्कार और मना को समानार्थी मानते हैं लेकिन दोनों के बीच एक बड़ा अंतर है। क्या है वह अंतर, इसपर पहले चर्चा हो चुकी है। रुचि हो तो पढ़ें।