जो अधिकार-संपन्न हो या अधिकार में आया हुआ हो, वह ‘अधिकृत’ कहलाता है। इसका विलोम शब्द क्या होगा – ‘अनधिकृत’ या ‘अनाधिकृत’? जब इस सवाल पर फ़ेसबुक पर पोल किया गया तो 76% ने ‘अनाधिकृत’ को चुना और 24% ने ‘अनधिकृत’ को। सही क्या है और क्यों है, यह जानने के लिए आगे पढ़ें।
हिंदी में किसी शब्द के नकारात्मक या विरोधी भाव को व्यक्त करने के लिए अन्य उपसर्गों के साथ-साथ ‘अ’, ‘अन्’ और ‘अन’ भी इस्तेमाल होते हैं। ये तीनों कहाँ-कहाँ लगते हैं, यह हम नीचे जानते हैं।
- ‘अ’ और ‘अन्’ उपसर्ग मुख्यतः तत्सम शब्दों में लगते हैं। फ़र्क़ सिर्फ़ यह है कि ‘अन्’ केवल उन तत्सम शब्दों में लगता है जो स्वर से शुरू होते हैं जैसे आदि (अन्+आदि=अनादि), अंत (अन्+अंत=अनंत), ईश्वर (अन+ईश्वर=अनीश्वर) आदि और ‘अ’ उपसर्ग उन तत्सम शब्दों में लगता है जो व्यंजन से शुरू होते हैं जैसे मंगल (अमंगल), न्याय (अन्याय), धीर (अधीर) आदि। तत्सम तो समझते हैं न? वे जो संस्कृत से हूबहू हिंदी में आए हैं।
- ‘अन’ उपसर्ग तद्भव और देशी शब्दों में लगते हैं जैसे ब्याहा (अनब्याहा), मोल (अनमोल), देखा (अनदेखा), चाहा (अनचाहा), अनगिनत आदि।
निष्कर्ष यह कि यदि कोई शब्द स्वर से शुरू होता है तो तत्सम होने पर उसमें ‘अन्’ उपसर्ग लगेगा और तद्भव या देशी होने पर उसमें ‘अन’ उपसर्ग लगेगा।
अब देखें, अधिकृत शब्द कहाँ से आया है? अधिकृत अधिकार से बना है जो संस्कृत का शब्द है और बिना किसी फेरबदल के आया है। यानी यह तत्सम शब्द है। दूसरे, यह स्वर से ही शुरू होता है। इन दोनों कारणों से इसके आगे अन् लगेगा, अ या अन नहीं।
अब देखते हैं कि अधिकृत से पहले ‘अन्’ लगने से क्या होता है।
- अन्+अधिकृत=अनधिकृत क्योंकि न्+अ मिलकर न बनता है।
हाँ, यदि उपसर्ग ‘अन’ होता तो शब्द अनाधिकृत बनता।
- अन+अधिकृत=अनाधिकृत क्योंकि न (में मौजूद अ) और अधिकृत का अ मिलकर ना हो जाते हैं।
लेकिन जैसा कि ऊपर बताया, अधिकृत स्वर से शुरू होने वाला तत्सम शब्द है, इसीलिए उसके आगे अन् उपसर्ग ही लगेगा और इसीलिए जो शब्द बनेगा, वह है अनधिकृत न कि अनाधिकृत।
अनाधिकृत की तरह एक और शब्द प्रायः ग़लत बोला और लिखा जाता है, वह है अनाधिकार। जैसे एक वाक्य लें – सेनाध्यक्ष ने सत्ता हथियाने की ‘अनाधिकार’ चेष्टा की। यहाँ भी अनधिकार होगा – अन्+अधिकार=अनधिकार। लेकिन इसी से मिलता-जुलता अनाधिकारिक सही है क्योंकि उसमें मूल शब्द आधिकारिक है, अधिकारिक नहीं। अन्+आधिकारिक=अनाधिकारिक (देखें चित्र)।
इस नियम को सीधे-सादे शब्दों में यूँ समझा जा सकता है कि जब भी आप ‘अन’ से शुरू होने वाला कोई नकारात्मक शब्द देखें जिसका मूल शब्द स्वर यानी अ, आ, इ आदि से शुरू होता हो तो वहाँ मूल शब्द की मात्रा ही नए शब्द में भी बनी रहेगी। इसे उदाहरणों से समझें।
- अन्+अभिज्ञ=अनभिज्ञ
- अन्+आदर=अनादर
- अन्+इच्छा=अनिच्छा
- अन्+ईश्वर=अनीश्वर
- अन्+उचित=अनुचित
- अन्+एक=अनेक
- अन्+ऐतिहासिक=अनैतिहासिक
- अन्+औदार्य=अनौदार्य
आपने देखा – अ, आ, इ, ई आदि से शुरू होनेवाले इन सभी शब्दों की जो आरंभिक मात्रा थी, वही नए शब्द में भी ‘न’ के साथ बनी रही। अगला स्वर ‘अ’ था तो ‘न’ बना (अनभिज्ञ), अगला स्वर ‘आ’ था तो ‘ना’ बना (अनादर), अगला स्वर ‘इ’ था तो ‘नि’ बना (अनिच्छा), अगला स्वर ‘ई’ था तो ‘नी’ बना (अनीश्वर), अगला स्वर ‘उ’ था तो ‘नु’ बना (अनुचित), अगला स्वर ‘ए’ था तो ‘ने’ बना (अनेक), अगला स्वर ‘ऐ’ था तो ‘नै’ बना (अनैतिहासिक) और अगला स्वर ‘औ’ था तो ‘नौ’ बना (अनौदार्य)। इसी तरह अधिकार से अनधिकार, आस्था से अनास्था, आक्रमण से अनाक्रमण, इष्ट से अनिष्ट, उत्पादक से अनुत्पादक तथा ऐक्य से अनैक्य बनते हैं।
अब देखें कि कोई शब्द यदि स्वर के बजाय व्यंजन से शुरू हो रहा हो तो उसमें नकारात्मक अर्थ जोड़ने के लिए क्या होता है। बहुत आसान है। यदि तत्सम शब्द होगा तो उनमें ‘अ’ लगाएँगे और बाक़ी स्रोतों से आए शब्द होंगे तो उनमें ‘अ’ या ‘अन’ में से कोई एक लगाएँगे (लेकिन अन् कभी नहीं)। यह भी ध्यान दें कि इन मामलों में अ या अन जोड़ने से मूल शब्द में कोई अंतर भी नहीं पड़ता। उदाहरण – मूल्य से अमूल्य, वास्तविक से अवास्तविक, निद्रा से अनिद्रा, स्पष्ट से अस्पष्ट, विश्वास से अविश्वास और नैतिक से अनैतिक (सभी तत्सम शब्द), मिट से अमिट, मोल से अनमोल, चाहा से अनचाहा, बन से अनबन, ब्याहा से अनब्याहा आदि (शेष शब्द)।
नकारात्मक या विरोधी अर्थ देने के लिए अ, अन् और अन के अलावा निः, वि, बे, ला आदि उपसर्ग भी लगते हैं। उदाहरण – नीरोग, विपक्ष, बेईमान, लाइलाज आदि।
कभी सोचा कि बाक़ी शब्दों में जब ‘अ’ से काम चल रहा है तो स्वर से शुरू होनेवाले शब्दों में ‘अन्’ क्यों लग रहा है? एक बार अंत के आगे ‘अ’ लगाकर देखें। बनेगा अअंत। इसी तरह अआदर, अइच्छा। बोलने में दिक़्क़त हो रही है ना? इसीलिए ‘अन्’ लगा। न शायद इसलिए कि न में ही नकार है।
अ से शुरू होनेवाले शब्दों से पहले अ बोलना मुश्किल होता है इसीलिए इंग्लिश में सारे स्वरों (Vowels) और कभी-कभी स्वर की तरह बोले जानेवाले कुछ व्यंजनों (Consonants) से पहले a के बजाय an लगता है। जैसे an apple, an event, an innings, an object, an umbrella, an hour (आवर) तथा an MA (एमए)। यदि वावल (A, E, I, O, U) से शुरू होनेवाले शब्द की ध्वनि अ न होकर कुछ और हो तो उनमें an नहीं, a ही लगाया जाता है क्योंकि उसको बोलने में कोई समस्या नहीं है। उदाहरण – a eulogy (यूल्अजी)।
आपने ध्यान दिया – मैंने an innings लिखा है, an inning नहीं। innings में हमेशा s लगता है चाहे एकवचन में हो या बहुवचन में – first innings, second innings और both the innings। यानी s यहाँ बहुवचन बनाने के लिए नहीं लगा है बल्कि वह शब्द का हिस्सा है वैसे ही जैसे bus, iris, dais आदि में है। इसलिए हिंदी में लिखेंगे तो पहली इनिंग्स ही लिखेंगे न कि पहली इनिंग। innings को भारत में इनिंग्स बोलते हैं मगर इसका विशुद्ध उच्चारण है इनिंग्ज़।अंग्रेज़ी में s का उच्चारण हमेशा स नहीं होता। लेकिन यह हमारी चर्चा का विषय नहीं है इसलिए इसे यहीं समाप्त करते हैं।