इंसान नशे में ‘धुत्त’ होता है या ‘धुत’? जब फ़ेसबुक पर यह सवाल पूछा गया तो दोनों के पक्ष में तक़रीबन बराबर वोट पड़े। यानी हिंदी समाज में दोनों ही शब्दरूप चल रहे हैं। ऐसे में सही किसे माना जाए? धुत्त को, धुत को या दोनों को? शब्दकोश किसको सही बताते हैं? जानने के लिए आगे पढ़ें।
आज की चर्चा का विषय है – नशे में इंसान ‘धुत्त’ होता है या ‘धुत’। यानी ‘त’ की ध्वनि एक बार आएगी या दो बार? जैसा कि ऊपर बताया, फ़ेसबुक पर किए गए एक पोल के अनुसार लोग इस मामले में बँटे हुए हैं। 48% ‘धुत्त’ को सही मानते हैं तो 52% ‘धुत’ को।
किसी शब्द को सही या ग़लत बताने के तीन तरीक़े हो सकते हैं। एक, स्रोत के अनुसार। दो, व्याकरण के अनुसार। तीन, प्रचलन के अनुसार। तीसरे तरीक़े अर्थात प्रचलन के अनुसार हम ‘धुत्त’ और ‘धुत’ में से किसी एक को सही और दूसरे को ग़लत नहीं ठहरा सकते क्योंकि दोनों को तक़रीबन बराबर वोट मिले हैं। ऐसे में हमें पहले (स्रोत) और दूसरे (व्याकरण) तरीक़ों को ही आज़माना होगा। उनसे भी हल नहीं निकला तो अंत में किसी प्रामाणिक शब्दकोश की शरण लेनी होगी।
पहला यानी स्रोत का मामला भी यहाँ हमारी मदद नहीं करता क्योंकि हिंदी शब्दसागर में इसका स्रोत दिया ही नहीं गया है। ‘धुत्त’ की एंट्री में लिखा है (अनु.) जिसका मतलब है अनुकरण (देखें चित्र)।
किसका अनुकरण? ध्वनि का? किस ध्वनि का? क्या नशे में बेसुध व्यक्ति जिस तरह की आवाज़ निकालता है, उसका अनुकरण? मेरे पल्ले कुछ नहीं पड़ा। आपको समझ में आता हो तो बताएँ।
अब जब शब्द का स्रोत ही नहीं पता तो व्याकरण हमारी क्या मदद करेगा? व्याकरण हमारी तब मदद करता है जब हमें मूल शब्द या धातु का पता हो। तभी हम उसपर व्याकरण को कोई नियम लगा सकते हैं। अब ‘धुत्त’ किससे बना है, यही नहीं पता तो आगे क्या कहा और बताया जाए।
लेकिन शब्दकोशों में नशे के कारण बेसुध हो जाने के अर्थ में ‘धुत्त’ ही है, ‘धुत’ नहीं। ‘धुत’ है मगर उसका अर्थ है – कंपित, हिलता हुआ (देखें चित्र)। इसलिए मानना तो यही होगा कि मूल शब्द ‘धुत्त’ ही है जिससे आगे चलकर ‘धुत’ बना। क्यों बना, यह नीचे समझें।
हिंदी किसी शब्द के अंत में ‘अ’ स्वर का उच्चारण पसंद नहीं करती। इसीलिए ऐसे शब्दों में वह ‘अ’ स्वर को ग़ायब कर देती है और बोलते समय केवल अंतिम व्यंजन की ध्वनि निकलती है। मसलन संस्कृत का राम (उच्चारण राम्अ/Rama) हिंदी में राम (उच्चारण राम्/Ram) हो जाता है। सत्य, प्रिय जैसे कुछ अपवादों को छोड़ हर जगह ऐसा ही होता है।
‘धुत्त’ में भी ऐसा ही हुआ। ‘धुत्त’ को अगर सही तरीक़े से बोलेंगे तो दो सिल्अबल (शब्दांश) बनेंगे – धुत् और त। लेकिन हम हिंदीभाषियों की ज़बान अंत का त (त्+अ) बोलना पसंद नहीं करती। उसे केवल त् बोलना पसंद है (बात=बात्, मौत=मौत्, रात=रात् आदि)। सो वह ‘अ’ स्वर के साथ-साथ एक ‘त्’ को भी ग़ायब कर देती है। रह जाता है धुत्। स्पेलिंग हुई ‘धुत’, उच्चारण हुआ ‘धुत्’।
जो ट्रेंड हम ‘धुत्त’>’धुत’ के मामले में देखते हैं, उसे संजय दत्त के उदाहरण से और आसानी से समझ सकते हैं।आपने कभी ध्यान नहीं दिया होगा मगर आज बोलकर देखिए, आप संजय दत्त बोलते हैं या संजय दत?
बोलकर देखा? मेरा अनुमान है कि अगर बिना प्रयास के बोला होगा तो उच्चारण दत ही निकला होगा। अब प्रयास करके दत्त बोलें। आप देखेंगे कि दत्त बोलने में जीभ को थोड़ी असुविधा का सामना करना पड़ता है जबकि दत (उच्चारण दत्) बोलना काफ़ी सरल है।
तो जिस तरह संजय ‘दत्त’ बोलने में संजय ‘दत’ हो गया, वैसे ही ‘धुत्त’ का भी ‘धुत’ हो गया। अंतर केवल यह है कि संजय ‘दत्त’ को आज भी ‘दत्त’ ही लिखा जाता है, भले ही बोला कुछ भी जाता हो मगर ‘धुत्त’ का न केवल उच्चारण बदला बल्कि स्पेलिंग भी बदली।
यही हाल ‘प्रायश्चित्त’ का भी हुआ जो बदलकर ‘प्रायश्चित’ हो गया। ‘प्रायश्चित्त/प्रायश्चित’ पर हम पहले चर्चा कर चुके हैं। उसमें मैंने चित, चित् और चित्त के अंतर पर भी बात की थी। रुचि हो तो नीचे के लिंक पर टैप/क्लिक करके पढ़ें।
अरे हाँ, एक बात तो भूल ही गया। ऊपर आपने देखा कि संस्कृत में धुत का कुछ और अर्थ है – कंपित, हिलता हुआ। इस आधार पर फ़ेसबुक पोल का जवाब देते हुए कुछ लोगों ने टिप्पणी की थी कि जब तक नशा कम हो यानी व्यक्ति हिलने-डुलने की हालत में है, तब तक उसे ‘धुत’ कहा जाए और जब नशा इतना चढ़ जाए कि उसे अपनी सुध-बुध तक न रहे, तब उसे ‘धुत्त’ कहा जाए। सलाह अच्छी है। क्या कहते हैं?