हरेक, हरएक या हर एक? जब मैंने इसके बारे में फ़ेसबुक पर पोल किया तो 63% ने हर एक और 32% ने हरेक के पक्ष में वोट दिया था। 5% के मतानुसार हरएक लिखना सही होगा। सही क्या है, तय करना मुश्किल है क्योंकि ‘हर’ फ़ारसी का और ‘एक’ संस्कृत का शब्द हैं। अगर हम संस्कृत का नियम अपनाते हैं तो हरेक या हरैक बनता है, फ़ारसी का नियम अपनाते हैं तो हरएक बनता है। ऐसे में कोशकारों की क्या राय है, जानने के लिए आगे पढ़ें।
यदि ‘हर’ और ‘एक’ दोनों संस्कृत के होते तो हम संधि के नियमों का सहारा ले लेते और उसके हिसाब से तय कर लेते कि फ़लाँ सही है। अगर दोनों अरबी या फ़ारसी के होते तो हम अरबी या फ़ारसी के नियमों के आधार पर फ़ैसला दे देते कि चिलाँ सही है। लेकिन समस्या यह है कि ‘हर’ फ़ारसी का है और ‘एक’ संस्कृत का। इसलिए इनके बारे में कैसे तय किया जाए कि दोनों के साथ आने के बाद उनका नया रूप क्या बनेगा।
मामला कुछ-कुछ उस बच्चे जैसा है जिसके माँ-बाप अलग-अलग धर्मों या जातियों के हों और बच्चे को समझ में न आ रहा हो कि उसका अपना धर्म या जाति क्या है। वैसे मेरे हिसाब से उस बच्चे के लिए सर्वश्रेष्ठ यही है कि वह माँ और पिता दोनों के धर्मों का अध्ययन करे और 18 साल का होने पर जो धर्म उसे बेहतर लगे, उसे अपनाए या किसी को न अपनाए। इसी सिद्धांत का पालन करते हुए हम भी एक बार संस्कृत के नियम से और एक बार फ़ारसी के नियम से देखेंगे कि कहाँ क्या रूप बनने की संभावना है।
पहले हिंदी (संस्कृत) का नियम
संस्कृत के नियम से ‘हर’ और ‘एक’ के जुड़ने से हरेक भी बन सकता है और हरैक भी। सबकुछ निर्भर करता है कि हर के अंत में जो र है, वह स्वरयुक्त है या स्वरमुक्त यानी वह र है या र्। अगर वह ‘हर’ है तो हरैक बनेगा (एक+एक=एकैक की तरह हर+एक=हरैक)। लेकिन अगर वह हर् है तो बनेगा हरेक (अन्+एक=अनेक की तरह हर्+एक=हरेक)।
लेकिन फ़ारसी के इस शब्द के बारे में कैसे पता किया जाए कि उसके अंत में स्वर है या नहीं। अरबी-फ़ारसी या उर्दू में संस्कृत की तरह यह जताने की परंपरा नहीं है कि इस ध्वनि के साथ स्वर है या नहीं। स्वरचिह्न बने हुए हैं लेकिन अमूमन लिखे नहीं जाते। हाँ, ‘हर’ के उच्चारण के हिसाब से कहा जा सकता है कि उसके अंत में स्वर नहीं है। अगर ऐसा है तो हम ‘हर्’ और ‘एक’ में संधि का नियम अपनाकर कह सकते हैं कि हरेक लिखा जा सकता है। मेरे भाषामित्र योगेंद्रनाथ मिश्र, जिनसे मैं अकसर भाषा विषयक मामलों में मार्गदर्शन और सलाह लेता रहता हूँ, इस दलील के समर्थक हैं। उनके तर्क में वज़न इसलिए भी है कि यह नियम अपनाकर हम मेहरुन्निसा और सलाहुद्दीन जैसे शब्दों को हिंदी में मेहरउनन्निसा और सलाहउद्दीन लिखने से बच सकते हैं (जैसा कि मूल भाषा में लिखा जाता है) क्योंकि वैसा लिखना हिंदी और संस्कृत की प्रकृति के बिल्कुल ख़िलाफ़ होगा। क्यों, यह हम आख़िर में समझेंगे।
अब उर्दू (फ़ारसी) का नियम
फ़ारसी के नियमों के बारे में मैं रत्तीभर नहीं जानता लेकिन उर्दू के कुछ उदाहरणों के आधार पर अंदाज़ा लगा सकता हूँ कि वहाँ आम तौर पर संधि नहीं होती। ‘आम तौर पर’ इसलिए कह रहा हूँ कि कहीं-कहीं शब्द के अंत में मौजूद ‘ल्’ की ध्वनि अगली ध्वनि में बदल जाती है। जैसे मेहर्-उल्-निसा का मेहरुन्निसा और अला-उल्-दीन का अलाउद्दीन (हिंदी के सत्+जन=सज्जन की तरह)। परंतु जिस शब्द पर हम चर्चा कर रहे हैं, उसमें ल् नहीं है, उसमें ‘र’ है जिसके बाद ‘ए’ के रूप में एक स्वर है और स्वर से शुरू होने वाले शब्दों के बारे में इन भाषाओं में पक्का नियम है कि वे अलग ही लिखे जाएँगे। मसलन सलाह और उद्दीन को हम हिंदी में मिलाकर सलाहुद्दीन लिख देते हैं लेकिन उर्दू लिपि में वह सलाहउद्दीन लिखा जाएगा। इसी कारण उर्दू में नज़रअंदाज़ और दूरअंदेशी लिखा जाता है न कि नज़रंदाज़ या दूरंदेशी। इस आधार पर फ़ैसला करें तो हरएक लिखा जाना उचित है, हरेक नहीं।
मामला तो फँस गया। संस्कृत या हिंदी के हिसाब से तय करें तो हरेक और फ़ारसी या उर्दू के हिसाब से निर्णय करें तो हरएक।
ऐसे में बेस्ट यही है कि तीसरा रास्ता अपनाया जाए जिसपर हमारे पोल में सबसे ज़्यादा वोट पड़े हैं। यानी न हरेक, न हरएक बल्कि हर एक। हिंदी शब्दसागर में यही है और मद्दाह के शब्दकोश में हरयक का अर्थ बताते हुए हर एक ही लिखा हुआ है (देखें चित्र)।
रेख़्ता के शेर वाले सेक्शन में मिर्ज़ा ग़ालिब के इस शेर में ‘हर एक’ ही लिखा हुआ है –
हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है, तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तगू क्या है।
हरेक और हरएक – कुछ और बातें
हर एक को हरेक लिखने से एक और समस्या आ सकती है। यह तो हम जानते हैं कि ‘हर’ संस्कृत का नहीं, फ़ारसी का शब्द है और संधि के मामले में मुख्य शर्त यह है कि दोनों शब्द संस्कृत के हों (ज़िलाधीश जैसे कुछ अपवाद ज़रूर हैं)। यह तो उच्चारण के आधार पर हमने हर को हर् मान लिया और हर् तथा एक की कामचलाऊ संधि करके हरेक बना दिया। लेकिन अगर उच्चारण के आधार पर ही किसी भी शब्द में संधि हो सकती तो अतएव को अतेव भी लिखा जा सकता है। क्या यह सही होगा?
सही इसलिए भी नहीं होगा कि अतएव स्वयं एक संधि की प्रक्रिया से गुज़र चुका है (अतः+एव=अतएव) इसलिए इसकी दुबारा संधि नहीं हो सकती।
अतएव जैसे शब्द संस्कृत या हिंदी में बहुत कम हैं जिनमें शब्द के बीच में कोई स्वतंत्र स्वर हो जैसे अ, इ या ए। कारण, ऐसा होते ही वह स्वर अपने से पहले वाली ध्वनि या स्वर से संधि कर लेता है और अपना रूप बदल लेता है। मसलन अन्+अंत अनंत और प्रति+एक प्रत्येक। संस्कृत में स+उत्साह सोत्साह हो जाता है परंतु अरबी या फ़ारसी में बा+अदब जैसे शब्द बादब में नहीं बदलते। इसी कारण वहाँ बाइज़्ज़त भी है और बेइंतहा भी।
कहने का अर्थ यह कि संस्कृत या हिंदी के हिसाब से हरएक लिखना उसी तरह सही नहीं होगा जिस तरह रामअवतार लिखना सही नहीं है – या तो राम अवतार लिखा जाए या रामावतार।
इसलिए मेरी राय है कि हर एक लिखना सबसे अच्छा विकल्प है लेकिन हरेक भी लिखा जा सकता है। परंतु हरएक तो बिल्कुल नहीं।
‘हर एक’ की ही तरह एक और शब्दयुग्म है जिसको मिलाकर भी लिखा जाता है और अलग-अलग भी। वह है – बल खाना/बलखाना जिसमें से एक सही है, दूसरा ग़लत। सही क्या है और क्यों है, इसपर मैं पिछली एक क्लास में चर्चा कर चुका हूँ – हसीन ज़ुल्फ़ें बलखाती हैं या बल खाती हैं? अगर आपने नहीं पढ़ा हो तो पढ़ सकते हैं। लिंक नीचे दिया हुआ है।