आपमें से अधिकतर लोग सोच रहे होंगे कि यह भला क्या सवाल हुआ। हर कोई जानता है कि हम सौगंध ही खाते हैं, सौगंद नहीं। परंतु सच बात यह है कि आज से सौ-डेढ़ सौ साल पहले लोग सौगंध नहीं, सौगंद खाते थे। यह सौगंद हिंदी में कहाँ से आया और आगे चलकर सौगंध कैसे हो गया, यह जानने में रुचि हो तो आगे पढ़ें।
आपको आज के पोस्ट में दो नई जानकारियाँ मिलेंगी – ऐसी जानकारियाँ जो मेरे लिए भी चौंकाने वाली थी। पहली जानकारी यह कि आज भले ही हम सभी क़सम के अर्थ में सौगंध शब्द का इस्तेमाल करते हैं मगर सौ-डेढ़ सौ साल पहले सौगंध के बजाय सौगंद चलता था। दूसरी जानकारी यह कि तब के शब्दकोशों में सौगंध भी मिलता था लेकिन उसका अर्थ क़सम या शपथ नहीं था, सुगंध या इत्र का व्यापार करने वाला था (देखें चित्र)।
हिंदी शब्दसागर (1928 का संस्करण) के ऊपर के चित्र के आधार पर दो वाक्यों में निष्कर्ष यह निकला कि
- आज से सौ साल पहले क़सम के अर्थ में सौगंद का इस्तेमाल होता था।
- सौगंध का अर्थ क़सम या शपथ नहीं, सुगंध या सुगंध से जुड़ा हुआ था।
लेकिन अभी पिक्चर ख़त्म नहीं हुई क्योंकि अभी दो, बल्कि तीन-तीन सवाल बाक़ी हैं।
- पहला, सौगंद शब्द कहाँ से आया?
- दूसरा, जहाँ से आया, वहाँ उसका क्या अर्थ था?
- तीसरा, सौगंद सौगंध में कैसे बदला?
जैसा कि हिंदी शब्दसागर से पता चलता है, क़सम के अर्थ में पहले सौगंद शब्द चलता था। लेकिन यह सौगंद शब्द किस भाषा से आया? फिर से शब्दसागर की शरण में जाते हैं। वह कहता है कि यह संस्कृत के सौगंध से आया (देखें चित्र)।
मुझे इसमें संदेह है कि सौगंद संस्कृत के सौगंध से आया होगा। कारण यह कि अगर सौगंद संस्कृत के सौगंध से बना है तो वहाँ सौगंध का वही अर्थ होना चाहिए जो हिंदी में सौगंद का है। जैसे हिंदी का दूध अगर संस्कृत के दुग्ध से बना है तो दोनों जगह उनका एक ही अर्थ है। लेकिन सौगंद और सौगंध के मामले में ऐसा है नहीं। संस्कृत में जो सौगंध है, उसका अर्थ क़सम या शपथ नहीं है। उसका संबंध सुगंध से है (देखें चित्र)।
यह तो बड़ी अजीब बात है। हिंदी में एक शब्द बना सौगंद (अर्थ है क़सम) जो कहा जाता है कि संस्कृत के सौगंध से आया मगर पता चलता है कि उस सौगंध का क़सम से कोई लेना-देना नहीं। फिर किस आधार पर कहा जाए कि हिंदी का सौगंद संस्कृत के सौगंध से ही बना है? क्या केवल इसलिए कि दोनों में काफ़ी समानता है? बात कुछ हज़म नहीं होती।
इसका जवाब हमें उर्दू के कोशों में मिलता है। वहाँ भी सौगंद की एंट्री है और स्रोत के रूप में लिखा है – फ़ारसी। फ़ारसी के शब्दकोशों से भी इसकी पुष्टि होती है और वहाँ सौगंद का वही अर्थ है जो हम जानते हैं – क़सम, शपथ।
ऊपर का चित्र प्लैट्स के उर्दू-हिंदी शब्दकोश से है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि हिंदी में क़सम के अर्थ में जो सौगंध चल रहा है, वह फ़ारसी के सौगंद से ही आया है।
दूसरी एंट्री में यह भी लिखा है कि हिंदी का सौगंध फ़ारसी के सौगंद का ही परिवर्तित रूप है (corr. of saugand)।
अब सवाल केवल यह बचता है कि यह सौगंद सौगंध में क्यों और कैसे बदला। यही हमारा आज का तीसरा सवाल भी है।
यानी फ़ारसी से आया सौगंद हिंदी में सौगंध में क्यों बदला? क्या संस्कृत के सौगंध से प्रभावित होकर? मेरे हिसाब से नहीं क्योंकि सुगंध के अर्थ में सौगंध शब्द शायद ही हिंदी में इस्तेमाल होता हो। हिंदी में चलता है सुगंध। लोग ‘गंध’ से ज़्यादा परिचित हैं, ‘गंद’ से कम, इसी कारण सौगंद का गंद शायद गंध में बदल गया, हो गया सौगंध।
ऐसे परिवर्तन के हमारे पास कई उदाहरण हैं। जैसे मेघनाद का मेघनाथ हो जाना क्योंकि लोग ‘नाद’ के मुक़ाबले ‘नाथ’ से ज़्यादा परिचित हैं। अंतर्धान का अंतर्ध्यान हो जाना क्योंकि लोग ‘धान’ के मुक़ाबले ‘ध्यान’ से ज़्यादा वाक़िफ़ हैं। महारत का महारथ हो जाना क्योंकि लोग ‘रत’ के मुक़ाबले ‘रथ’ को ज़्यादा जानते हैं।
गंद और गंध का चक्कर एक और जगह भी होता है। वह है ‘गंध’ मचाना बनाम ‘गंद’ मचाना। सही क्या है, जानने में रुचि हो तो आगे दिए गए लिंक पर जाएँ –