Categories
आलिम सर की हिंदी क्लास शुद्ध-अशुद्ध

257. पांडुलिपि में पांडु का अर्थ – हाथ, रंग या पत्ता?

पांडुलिपि का मतलब तो आप जानते ही होंगे – हाथ से लिखा गया कोई ग्रंथ जैसा ऊपर चित्र में है। लेकिन इसमें पांडु शब्द का क्या अर्थ है – 1. हाथ, 2. प्राचीन, 3. सफ़ेद रंग जिसमें थोड़ा पीलापन हो या 4. पत्ता जिसपर लिखा जाए? आज की चर्चा इसी पर है। रुचि हो तो पढ़ें।

पांडुलिपि में पांडु के अर्थ के बारे में जब यही सवाल फ़ेसबुक पर पूछा गया तो 50% लोगों ने इसका अर्थ बताया – सफ़ेद रंग जिसमें थोड़ा पीलापन हो। एक-चौथाई के अनुसार पांडु का अर्थ है पत्ता जिसपर लिखा जा सके। शेष 25% ने इसका अर्थ हाथ और प्राचीन बताया।

किसी शब्द के बारे में सटीक जानकारी हम सबसे पहले प्रामाणिक शब्दकोशों में खोजते हैं लेकिन पांडुलिपि के मामले में शब्दकोश तक यह बताने में नाकाम रहे कि पांडुलिपि में पांडु का क्या अर्थ है।

ऐसा नहीं है कि शब्दकोश में पांडु या पांडुलिपि नहीं है। पांडु शब्द है लेकिन उसका अर्थ न तो हाथ है, न ही पत्ता है। प्राचीन भी नहीं है।

हर शब्दकोश में पांडु का एक ही अर्थ दिया हुआ है – सफ़ेदी लिए पीला रंग। आप्टे के संस्कृत-हिंदी कोश में लिखा है पीत धवल या पीताभ श्वेत रंग (देखें चित्र)।

Meaing of Pandu पांडु in Apte Sanskrit Dictionary आप्टे के संस्कृत कोश में पांडु और पांडुलेख का अर्थ

लेकिन हमारी खोज अभी ख़त्म नहीं हुई क्योंकि हमारी खोज यह नहीं है कि पांडु का अर्थ क्या है। हमारी जिज्ञासा है – पांडुलिपि में पांडु का अर्थ क्या है। अभी इसका उत्तर मिलना बाक़ी है।

आप ख़ुद ही सोचिए, यदि पांडु का अर्थ सफ़ेदी लिए पीला रंग हो तो पांडुलिपि में उसका क्या अर्थ निकलता है – ऐसा लेखन जो पीलापन लिए सफ़ेद रंग से किया गया हो? आपने पांडुलिपियों के चित्र तो देखे ही होंगे। कितनों में आपने सफ़ेद-पीले रंग का इस्तेमाल देखा? अधिकतर में लिखने के लिए गहरे रंग इस्तेमाल किए गए हैं क्योंकि उनके बरसों तक टिकने की अधिक संभावना होती है (देखें चित्र)।

पांडुलिपि

इसलिए यदि शब्दकोश कहें कि पांडु का अर्थ पीलापन लिया हुआ सफ़ेद रंग है तो भी इस प्रश्न का उत्तर नहीं मिलता कि पांडु के सफ़ेद-पीले रंग की पांडुलिपि में क्या भूमिका है।

इस प्रश्न ने मेरे जैसे जिज्ञासुओं को ही नहीं, कई भाषा पंडितों को भी परेशान किया है और उन्होंने अपने स्तर पर इसका जवाब खोजने की कोशिश की है।

मसलन डॉ. भोलानाथ तिवारी इसके बारे में लिखते हैं –

‘पांडुलिपि में स्पष्ट ही दो शब्द हैं – पांडु और लिपि। पांडु का अर्थ इस संदर्भ में सफ़ेद है। विचारणीय यह है कि सफ़ेद लिपि से हस्तलिखित ग्रंथ का क्या संबंध। हस्तलिखित ग्रंथों में भी लिपि काली, नीली, लाल या हरी किसी भी रंग की हो पर सफ़ेद तो नहीं ही होगी। किसी हस्तलिखित ग्रंथ के लिए पांडुलिपि शब्द का प्रयोग बहुत ही रहस्यमय है।’

यही बात मैंने भी ऊपर लिखी है।

डॉ. तिवारी आगे लिखते हैं,

‘वस्तुतः पांडुलिपि अपने यहाँ का पुराना शब्द है। इसका मूल अर्थ लिखा हुआ मसविदा या ड्राफ़्ट है। अपने यहाँ मसविदे पहले लकड़ी की पट्टी पर या सपाट धरती पर खरिया से लिखे जाते थे। अतएव उसकी लिपि सफ़ेद (पांडु) होती थी। इसी कारण उसे पांडुलिपि कहा जाता था। आधुनिक युग में ग़लती से इस शब्द का प्रयोग हस्तलिखित पोथी के लिए होने लगा। वही प्रयोग अब तक चला आ रहा है। अब कुछ लोगों को यह अशुद्धि खटकने लगी है और इसके स्थान पर हस्तलेख शब्द का प्रयोग मैन्युस्क्रिप्ट के अनुवाद के रूप में करने लगे हैं किंतु पांडुलिपि का प्रयोग कम नहीं हुआ है और न होने की संभावना है।’

डॉ. तिवारी की बातों से यह तो स्पष्ट होता है कि पांडुलिपि का आज जिस अर्थ में प्रयोग होता है – हस्तलिखित ग्रंथ, उसका पांडु के सफ़ेद अर्थ से कोई रिश्ता नहीं दिखता। लेकिन एक जगह डॉ. तिवारी ने चूक कर दी। वे लिखते हैं पांडुलिपि अपने यहाँ का एक पुराना शब्द है जिसका अर्थ था – ‘खरिया से लकड़ी की पट्टी में लिखा गया मसविदा’। लेकिन आप्टे के संस्कृत कोश में पांडुलिपि जैसा कोई शब्द है ही नहीं। 

ऐसा लगता है कि डॉ. तिवारी पांडुलिपि और पांडुलेख में कन्फ़्यूज़िया गए।

आप्टे के कोश में पांडु की एंट्री में पांडुलेख शब्द है और उसका वही मतलब दिया गया है जो डॉ. तिवारी पांडुलिपि का बताते हैं – खड़िया से बनाई रूपरेखा, भूमि या किसी फलक पर खड़िया से बनाई रूपरेखा – पाण्डुलेखेन फलकौ भूमौ वा प्रथमं लिखेत् न्यूनाधिकं तु संशोध्य पश्चात् पत्रे निवश्येत् (देखें चित्र)।

Meaning of Pandu and Pandulekh in Apte Sanskrit Hindi Dictionary पांडु और पांडुलिपि
आप्टे के कोश में पांडु और पांडुलेख का अर्थ।

यानी पहले के ज़माने में पांडुलेख चलता था (न कि पांडुलिपि) जिसका मतलब था खड़िया से बनाई गई कोई रूपरेखा जिसे हम ड्राफ़्ट कहते हैं। चूँकि खड़िया सफ़ेद रंग की होती है इसलिए पांडुलेख में पांडु शब्द का प्रयोग फ़िट बैठता है।

आगे चलकर जब अंग्रेज़ी के Manuscript के लिए कोई हिंदी शब्द गढ़ने की ज़रूरत आन पड़ी तो किसी भाई ने पांडुलेख की देखादेखी पांडुलिपि शब्द बना दिया क्योंकि पांडुलेख भी हस्तलिखित होता है और पांडुलिपि भी। लेकिन श्रीमान (या श्रीमानों) ने यह नहीं सोचा कि सफ़ेद खड़िया से लिखी हुई किसी सामग्री को तो पांडु(सफ़ेद)लेख कहा जा सकता है लेकिन काली-नीली स्याही से लिखे गए किसी ग्रंथ को पांडु(सफ़ेद)लिपि कैसे कहा जा सकता है।

एक अनुमान यह लगाया जा सकता है कि कहीं पांडुलिपि का पांडु शब्द पत्ते के रंग के लिए तो नहीं। मैंने अपने पोल में चौथा विकल्प यही दिया था और पोल में भाग लेने वाले 25% लोगों को लगा था कि ऐसा हो सकता है।

भाषामित्र डॉ. रविकांत पांडेय द्वारा उपलब्ध कराए गए एक शोध आलेख से इस अनुमान को बल और समर्थन मिलता है (देखें चित्र)।

पांडुलिपि में पांडु का मतलब सफ़ेद पत्ता है

उन्होंने जो अंश उपलब्ध कराया, उसके प्रासंगिक अंश का हिंदी अनुवाद यूँ है –  पाण्डु वर्ण से युक्त पत्र में जो लिपि है, वह पाण्डुलिपि है। भोजपत्र को भी पाण्डुपत्र के नाम से उल्लेख किया गया है। दक्षिण देश में उपयोग किया जाने वाले श्रीताल-तालपत्र को भी पाण्डुलिपि पद से कहा जाता है।

लेकिन इस शोध में व्यक्त विचार को हमें अनुमानमात्र इसलिए कहना पड़ रहा है कि पांडुलिपि जैसा शब्द किसी संस्कृत ग्रंथ या कोश में अब तक नहीं मिला।

‘शब्दों का सफ़र’ के रचयिता अजित वडनेरकर भी अपने एक पोस्ट में पांडुलेख को ही मूल और सही शब्द मानते हैं लेकिन उनका यह मत कि ‘प्राचीनकाल में ऋषि-मुनि जब विचार-मीमांसा करते थे तो उनके भाष्य को किसी ज़माने में भूमि को गोबर से पोत कर उस पर खड़िया मिट्टी से लिपिबद्ध किया जाता था‘ बहुत दूर की कौड़ी लगती है।

भाषा वैज्ञानिक योगेंद्रनाथ मिश्र ठीक ही आपत्ति करते हैं कि इतने बड़े-बड़े ग्रंथों का प्रारूप ज़मीन पर बना होगा, यह तर्कसंगत नहीं लगता।

अब चलें निष्कर्ष की ओर।

पांडुलेख और पांडुलिपि पर आज की चर्चा से हमें यही पता चला कि Manuscript के हिंदी अनुवाद के लिए संस्कृत के पांडुलेख की नक़ल में हिंदी का पांडुलिपि शब्द बनाया गया बिना इस बात का विचार किए हुए कि किसी हस्तलिखित ग्रंथ का पांडु (सफ़ेद) रंग से क्या संबंध हो सकता है। 

इसमें कोई संदेह नहीं कि पांडुलेख और पांडुलिपि शब्द मिलते-जुलते हैं। दोनों में थोड़ा-बहुत अर्थसाम्य भी है क्योंकि दोनों हस्तलिखित सामग्री का अर्थ देते हैं। लेकिन व्युत्पत्ति की दृष्टि से दोनों में बहुत अंतर है। पांडुलेख में जो पांडु है, वह खड़िया (सफ़ेद) रंग की तरफ़ इशारा करता है मगर पांडुलिपि का जो पांडु है, वह किसी भी तरफ़ इशारा नहीं करता – न हाथ की तरफ़, न प्राचीनता की तरफ़, न सफ़ेद रंग की तरफ़, न पत्ते की तरफ़। वह केवल पांडुलेख की तरफ़ इशारा करता है।

आज की चर्चा और इस निष्कर्ष तक पहुँचने में योगेंद्रनाथ मिश्र, डॉ. शक्तिधरनाथ पांडेय, सुबोध दुबे और डॉ. रविकांत का बड़ा योगदान है। मेरी भूमिका केवल एक डाकिये की है जिसने उनके द्वारा दी गई जानकारी आप तक पहुँचा दी है।

पांडु शब्द का ज़िक्र हो और उनके बेटे यानी पांडव याद न आएँ, यह नहीं हो सकता। इन पाँच पांडवों में सबसे बड़े थे युधिष्ठिर। कहते हैं कि युधिष्ठिर ने अपने जीवन में केवल एक झूठ बोला था जब उन्होंने द्रोणाचार्य को हतोत्साहित करने के लिए कहा था कि अश्वत्थामा मारा गया। अपने बचाव में साथ ही यह भी जोड़ा था – नरो वा कुंजरो (नर नहीं, हाथी)। लेकिन महाभारत में तो ‘नरो वा कुंजरो’ का उल्लेख कहीं नहीं है। तो फिर यह जुमला आया कहाँ से? रुचि हो तो पढ़ें।

पसंद आया हो तो हमें फ़ॉलो और शेयर करें

अपनी टिप्पणी लिखें

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Social media & sharing icons powered by UltimatelySocial