धराशायी (पिछली चर्चा) की ही तरह हिंदी का एक और शब्द है जिसके कई-कई रूप आपको इंटरनेट पर मिल जाएँगे। इस शब्द का मतलब है किसी को बुलाना या निमंत्रण देना। मंत्रों द्वारा देवी-देवताओं को बुलाने के अर्थ में भी इसका प्रयोग होता है। लेकिन इसकी सही स्पेलिंग क्या है – आह्वान (आ+ह्+वा+न), आहवान, आव्हान (आ+व्+हा+न), आवहान, आवाह्न (आ+वा+ह्+न) या आवाहन? आज की चर्चा इसी विषय पर है। रुचि हो तो पढ़ें।
हो सकता है, यह चर्चा आपको अनावश्यक लगे क्योंकि आप सही शब्द जानते हों। मगर ऐसे कई लोग हैं, वह भी हिंदी मीडिया में जिन्हें सही शब्द का पता नहीं है। इसका प्रमाण उन वेबसाइटों पर मिल जाता है जहाँ ये सारे शब्द नज़र आते हैं (साथ का चित्र देखें)। इसलिए उन्हीं के लिए है आज की चर्चा। आप भी उनमें हों या न भी हों तो पढ़कर जान सकते हैं कि सही क्या है और क्यों है।
जो दोषी नहीं, उसे हम कहते हैं कि वह निर्दोष है। जो धनी नहीं, उसे हम कहते हैं कि वह निर्धन है। जो कपटी नहीं, उसे कहते हैं कि वह निष्कपट है। तो जो अपराधी नहीं, उसे हम क्या कहेंगे? निरपराधी या निरपराध? आज की चर्चा इसी पर है। रुचि हो तो पढ़ें।
आपका या आपके मित्रों, परिचितों या रिश्तेदारों में किसी-न-किसी का नाम अजय होगा। क्या आपने कभी सोचा है कि अजय का अर्थ क्या है? अजय के कई अर्थ हैं और उनमें से एक है पराजय यानी हार। आज की चर्चा इसी शब्द पर और इसके अर्थों पर। रुचि हो तो पढ़ें।
फ़र्ज़ का एक अर्थ तो आप जानते ही होंगे – कर्तव्य। लेकिन फ़र्ज़ के कुछ और अर्थ भी हैं। जैसे इब्ने इंशा ने लिखा है – ‘फ़र्ज़ करो हम अहल-ए-वफ़ा हों, फ़र्ज़ करो दीवाने हों। फ़र्ज़ करो ये दोनों बातें झूठी हों, अफ़साने हों।’ इसी तरह मिर्ज़ा ग़ालिब का एक शेर है – ‘क्या फ़र्ज़ है कि सबको मिले एक-सा जवाब, आओ न, हम भी सैर करें कोह-ए-तूर की।’ इन दोनों में फ़र्ज़ का मतलब कर्तव्य नहीं है। तो क्या हैं कर्तव्य के अलावा फ़र्ज़ के दूसरे अर्थ, आज इसी के बारे में बात करेंगे। रुचि हो तो पढ़ें।