जो दोषी नहीं, उसे हम कहते हैं कि वह निर्दोष है। जो धनी नहीं, उसे हम कहते हैं कि वह निर्धन है। जो कपटी नहीं, उसे कहते हैं कि वह निष्कपट है। तो जो अपराधी नहीं, उसे हम क्या कहेंगे? निरपराधी या निरपराध? आज की चर्चा इसी पर है। रुचि हो तो पढ़ें।
जो दोषी नहीं, उसे हम कहते हैं कि वह निर्दोष है। जो धनी नहीं, उसे हम कहते हैं कि वह निर्धन है। जो कपटी नहीं, उसे कहते हैं कि वह निष्कपट है। तो जो अपराधी नहीं, उसे हम क्या कहेंगे? निरपराधी या निरपराध? आज की चर्चा इसी पर है। रुचि हो तो पढ़ें।
आपका या आपके मित्रों, परिचितों या रिश्तेदारों में किसी-न-किसी का नाम अजय होगा। क्या आपने कभी सोचा है कि अजय का अर्थ क्या है? अजय के कई अर्थ हैं और उनमें से एक है पराजय यानी हार। आज की चर्चा इसी शब्द पर और इसके अर्थों पर। रुचि हो तो पढ़ें।
फ़र्ज़ का एक अर्थ तो आप जानते ही होंगे – कर्तव्य। लेकिन फ़र्ज़ के कुछ और अर्थ भी हैं। जैसे इब्ने इंशा ने लिखा है – ‘फ़र्ज़ करो हम अहल-ए-वफ़ा हों, फ़र्ज़ करो दीवाने हों। फ़र्ज़ करो ये दोनों बातें झूठी हों, अफ़साने हों।’ इसी तरह मिर्ज़ा ग़ालिब का एक शेर है – ‘क्या फ़र्ज़ है कि सबको मिले एक-सा जवाब, आओ न, हम भी सैर करें कोह-ए-तूर की।’ इन दोनों में फ़र्ज़ का मतलब कर्तव्य नहीं है। तो क्या हैं कर्तव्य के अलावा फ़र्ज़ के दूसरे अर्थ, आज इसी के बारे में बात करेंगे। रुचि हो तो पढ़ें।
अगर मैं कहूँ कि अहम का अर्थ अहंकार नहीं है तो आपमें से कई लोग सहमत नहीं होंगे। कारण, अक्सर हम पढ़ते-सुनते हैं कि यह तो दोनों के बीच अहम की लड़ाई है। अहम यानी ईगो। सही है। हम ईगो को अहम बोलते हैं लेकिन लिखते नहीं हैं। लिखते क्या हैं, यही हम जानेंगे आज की चर्चा में। रुचि हो तो पढ़ें।
हाल ही मेरी नज़र एक फ़ेसबुक पोस्ट पर पड़ी जिसमें कइयों, ढेरों, बहुतों और अनेकों को ग़लत बताया गया था। उस पोस्ट पर कॉमेंट करने वाले अधिकतर लोग भी लेखिका से सहमत दिख रहे थे। असहमति जताने वाले भी एक-दो लोग थे मगर वे यह बता नहीं पा रहे थे कि यदि अनेकों, बहुतों आदि सही हैं तो किस आधार पर। आज की हमारी चर्चा इसी विषय पर है। क्या अनेकों और बहुतों का प्रयोग वाक़ई ग़लत है? अगर हाँ तो प्रसिद्ध वैयाकरण कामताप्रसाद गुरु और लेखक विष्णु प्रभाकर इन्हें सही कैसे बता रहे हैं? रुचि हो तो पढ़ें।