मैंने वाल्मीकि रामायण पढ़ा है। क्या आपको पिछले वाक्य में कोई ग़लती नज़र आ रही है? आप शायद कहें कि हाँ, ‘पढ़ा’ है नहीं, ‘पढ़ी’ है होना चाहिए था, क्योंकि रामायण स्त्रीलिंग है। मान लेते हैं। फिर रामचरितमानस क्या है? क्या वह भी स्त्रीलिंग है? जानने के लिए आगे पढ़ें।
‘रामायण’ पुल्लिंग है या स्त्रीलिंग, जब इस विषय में फ़ेसबुक पर एक पोल किया गया तो दो-तिहाई से ज़्यादा (69%) ने स्त्रीलिंग पर वोट किया जबकि एक-तिहाई से कुछ कम (31%)ने पुल्लिंग पर। नीचे कुछ लोगों ने क़ॉमेंट में अपने निर्णय के पीछे के कारण भी लिखे। एक ने लिखा – ग्रंथ है सो पुल्लिंग है; दूसरे ने कहा, कथा है सो स्त्रीलिंग होना चाहिए। एक और सज्जन की टिप्पणी थी – महाकाव्य है सो पुल्लिंग होना चाहिए।
लेकिन समस्या यह है किसी भी रचना को एक व्यक्ति पुस्तक (स्त्रीलिंग) कह सकता है और दूसरा ग्रंथ (पुल्लिंग), कोई महाकाव्य (पुल्लिंग) तो कोई महागाथा (स्त्रीलिंग)। इसलिए यदि इस आधार पर किसी रचना का लिंग तय किया जाएगा तो हर व्यक्ति उसे अलग-अलग तरीक़े से बोलने के लिए स्वतंत्र होगा।
फिर उपाय क्या है? मैंने शब्दकोशों का सहारा लिया। लेकिन मज़े की बात कि वे भी इस मामले में बँटे हुए हैं। नागरी प्रचारिणी सभा का शब्दसागर इसे पुल्लिंग बताता है जबकि ज्ञानमंडल का शब्दकोश इसे स्त्रीलिंग मानता है (देखें चित्र)।
अब ऐसे में क्या किया जाए? मैंने सोचा, शब्द संस्कृत से आया है सो वहीं से पता लगाया जाए। लेकिन वहाँ भी रास्ता बंद मिला। भाषामित्र योगेंद्रनाथ मिश्र ने जानकारी दी कि संस्कृत में रामायण नपुंसक लिंग है। हिंदी में नपुंसक लिंग नहीं होता सो हिंदी में यह प्रश्न बना ही रह गया कि रामायण को स्त्रीलिंग मानें या पुल्लिंग।
फिर मैं कामताप्रसाद गुरु की शरण में गया यह सोचकर कि शायद उन्होंने ग्रंथों के लिंगनिर्णय के बारे में कोई रास्ता सुझाया हो। लेकिन वहाँ भी ऐसा कुछ नहीं मिला।
इसके बाद मैंने धर्मग्रंथों और स्मृतियों की एक सूची बनाई और उनके नामों के आधार पर कोई पैटर्न खोजने की कोशिश की ताकि उनके लिंगनिर्णय का कोई नियम बनाया जा सके। मैंने पाया कि रामायण, महाभारत, रामचरितमानस, त्रिपिटक, वेद, उपनिषद, पुराण – ये सब अकारांत हैं और पुल्लिंग भी जबकि भग्वद्गीता व मनुस्मृति आकारांत/इकारांत हैं और स्त्रीलिंग हैं। विदेशी ग्रंथों जैसे क़ुरआन और बाइबल को भी जब इस सूची में शामिल किया तो पाया कि क़ुरआन भी पुल्लिंग बोला जाता है लेकिन बाइबल, जो शब्दकोश के हिसाब से स्त्रीलिंग है, अपवाद निकला। मगर चूँकि ऊपर चुने गए 11 में से 10 ग्रंथों में यह नियम फ़िट बैठ रहा है, इसलिए बाइबल को अपवाद माना जा सकता है।
यदि हम इस नियम को मान लें तो अधिकतर ग्रंथों का लिंगनिर्णय उनके शीर्षकों के आधार पर कर सकते हैं। नियम बस यह याद रखना है कि आकारांत और ईकारांत शीर्षक वाले ग्रंथ स्त्रीलिंग और बाक़ी पुल्लिंग। इसके आधार पर ‘पृश्वीराज रासो’ और ‘पद्मावत’ पुल्लिंग (मैंने ‘पृथ्वीराज रासो’/‘पद्मावत’ नहीं पढ़ा है) जबकि ‘गीतावली’ और ‘अंधेर नगरी’ स्त्रीलिंग (क्या आपने तुलसी/भारतेंदु की गीतावली/अंधेर नगरी पढ़ी है?)
कुछ शीर्षक तो अपने नाम में आए शब्द के लिंग से ही शीर्षक का लिंग तय करवा देते हैं। जैसे ‘अंधेर नगरी’ में आई नगरी। चूँकि ‘नगरी’ स्त्रीलिंग है सो ‘अंधेर नगरी’ शीर्षक भी स्त्रीलिंग ही होगा। इसी तरह प्रेमचंद की ‘निर्मला’ है। चूँकि निर्मला स्त्रीलिंग है सो पुस्तक का शीर्षक भी स्त्रीलिंग ही बोला जाएगा – प्रेमचंद की ‘निर्मला’।
‘निर्मला’ से मुझे अपनी किशोरावस्था का एक प्रसंग याद आ गया। तब मैं कोलकाता के एक को-एड स्कूल में पढ़ता था। शुरू से ही मुझे साहित्य में बहुत रुचि थी और लाइब्ररी से हालाँकि सप्ताह में एक ही किताब इशू होती थी, मगर मैं अपने सहपाठियों के साथ किताबें बाँटकर हर हफ़्ते एक से ज़्यादा किताबें पढ़ लिया करता था। ऐसी ही एक किताब का नाम था ‘बेगम’ जो कि पढ़ने के बाद मैंने अपनी एक सहपाठिन को दी थी। अगला लाइब्ररी पीरियड आने ही वाला था और उसने मुझे तब तक वह किताब लौटाई नहीं थी। सो एक दिन मैंने उसे टोका और पूछा, ‘हमारी ‘बेगम’ कहाँ है?’
सुनते ही उसने वाक्य में छुपा अन्यार्थ पकड़ लिया और शरारत से बोली, ‘हमें क्या पता, तुम्हारी बेगम कहाँ है!’ दूसरी ने कहा, ‘अरे, तुमने कब शादी कर ली? अपनी बेगम से मिलवाया भी नहीं!’ मैं झेंपी-सी मुस्कान के साथ चुप रहा। सच कहने की हिम्मत नहीं थी कि हम तो तुम्हें ही अपनी बेगम बनाना चाहते हैं।*
ख़ैर, आशिक़ी के उस ज़माने की यादों से निकलकर वापस अपनी क्लास में आएँ। इस क़िस्से से आपने समझ लिया होगा कि चूँकि उस किताब का शीर्षक ‘बेगम’ था, इसलिए उसके अकारांत होने के बावजूद मैंने उसका स्त्रीलिंग के रूप में इस्तेमाल किया था – हमारी ‘बेगम’। अगर मैंने हमारा ‘बेगम’ कहा होता तो सोचिए, कितना अटपटा लगता!
इसलिए ‘आकारांत और ईकारांत हो तो स्त्रीलिंग तथा बाक़ी मामलों में पुल्लिंग’ का नियम अपनाते समय यह भी ध्यान में रखना होगा कि यदि शीर्षक में आए शब्द का लिंग कुछ और हो तो यह नियम लागू नहीं होगा।
इस नियम की व्यावहारिकता के बारे में आप कुछ कहना या जोड़ना-घटाना चाहें तो स्वागत है।
* ऊपर मैंने स्कूल के संवादों में ‘मैं’ और ‘मेरी’ की जगह ‘हम’ और ‘हमारी’ का प्रयोग किया है क्योंकि कोलकाता में ऐसे ही बोला जाता है। मैं भी तब एकवचन में ‘मैं’ को ‘हम’ ही बोला करता था। यह तो दिल्ली आकर ‘मैं’ और ‘मेरा’ बोलना और लिखना सीखा।
10 replies on “27. क्या आपने वाल्मीकि रामायण पढ़ा है…पढ़ी है?”
Very nice
Too good
इकबाल की पंक्ति है याद आ रहा है मुझको गुजरा हुआ जमाना इसमें पुल्लिंग क्रिया का प्रयोग कैसे हुआ है एक गाने की दूसरी पंक्ति है याद आ रही है तेरी याद आ रही है इसमें स्त्रीलिंग क्रिया का प्रयोग कैसे हुआ
नमस्ते। ज़माना पुल्लिंग है, इसलिए याद आ रहा है लिखा गया है। अगर ज़माना की जगह जवानी कर दें तो होगा – याद आ रही है गुज़री हुई जवानी। यहाँ याद आ रहा है या आ रही है का प्रयोग इसपर निर्भर करेगा कि जिसे याद किया जा रहा है, वह शब्द पुल्लिंग है या स्त्रीलिंग।
पहली बार में पहली शब्द स्त्रीलिंग क्यों पहला बार क्यों नहीं bol सकते
पहली बार क्योंकि बार स्त्रीलिंग है। इसी तरह पहली दफ़ा क्योंकि दफ़ा भी स्त्रीलिंग है। यदि मौक़ा हो तो लिखा जाएगा पहला मौक़ा क्योंकि मौक़ा पुल्लिंग है।
याद आ रहा है मुझको गुजरा हुआ जमाना सर इसमें कर्ता कर्म और क्रिया का भी विश्लेषण ढंग से थोड़ा सा बता दीजिए सर मेरा दूसरा सवाल था याद आ रही है तेरी याद आ रही है याद आने से तेरे जाने से जान जा रही है तो इससे गाने में एक लड़का लड़की के लिए बोलता है कि तेरी याद आ रही है फिर लड़की लड़के के लिए बोलता है कि तेरी याद आ रही है साथी एक और सवाल है तुझे क्या पड़ी है तो पड़ी शब्द भी स्त्रीलिंग है क्या इस पर इस शब्द का अर्थ और यह भी विस्तार से बताइए कि परी की जगह पड़ा क्यों नहीं हो सकता
सर मेरे प्रश्नों का जवाब अभी तक आपने नहीं दिया है एक और सवाल है शैलेंद्र जी का एक गाना है लड़कपन खेल में खोया जवानी नींद भर सोया बुढ़ापा देख कर रोया जवानी शब्द स्त्रीलिंग है फिर भी पुल्लिंग क्रिया का प्रयोग कैसे हुआ है दूसरा एक सवाल है संतोष आनंद जी के एक गीत में जीने मरने को किसको पड़ी तो इस पंक्ति में पड़ी क्रिया का प्रयोग स्थित दिन ग्रुप में कैसे हुआ है वह कौन सा रो है
नमस्ते। आपके सवालों के जवाब दे दिए हैं। कृपया अपना मेलबॉक्स देखें।
सर आपने निर्धन निर्दोष पर चर्चा की है निर्मोही पर भी चर्चा कर दीजिए वह शब्द मूल है तो निर्मोही कैसे बना और मूल शब्द से बनने वाले कुछ और शब्दों के बारे में विशेषण संज्ञा क्या है वह बता दीजिए ऐसे मोहित मोहना मोहन इत्यादि
निर्मोह/निर्मोही मोह से बने हैं। मोह के संस्कृत में कई अर्थ हैं – 1. अज्ञान, नासमझी, 2. मूर्खता, बेवकूफ़ी, 3. अविद्या, 4. ममता (जैसे मोह-माया, धन-दौलत का मोह), 5. भ्रांति (जैसे सांसारिक मोह)। हिंदी में मोह का प्रयोग आम तौर पर ममता, लगाव आदि के अर्थ में ही होता है। इस अर्थ में संस्कृत व्याकरण के अनुसार विशेषण होगा निर्मोह (निर्+मोह=निर्मोह)। हिंदी में कुछ लोगों ने इसे निर्मोही कर दिया है जैसे निर्दय का निर्दयी और निरपराध का निरपराधी कर दिया है।
मोह से अन्य विशेषण मोहित (जिसे मोह हो गया हो) और मोहन (मोहने वाला) बने हैं। यहाँ मोह का अर्थ ममता नहीं, बल्कि सम्मोहन है।
एक बात और। संज्ञा के तौर पर निर्दयी और निर्मोही का प्रयोग हो सकता है। जैसे हे निर्मोही (या हे निर्दयी), तुम्हें क्या मेरा कष्ट नहीं दिखता? यहाँ निर्मोही और निर्दयी संज्ञा के रूप में काम कर रहे हैं।