शीर्षक को देखकर आप संभवतः सोच रहे होंगे कि यह भी क्या सवाल हुआ। साँस स्त्रीलिंग है और इसीलिए ‘फूलती है’ ही लिखा जाएगा। साँस फूलता है – यह तो वही कहेगा जिसे साँस का लिंग नहीं मालूम। लेकिन अगर ऐसा है तो हिंदी का सबसे प्रामाणिक शब्दकोश हिंदी शब्दसागर ‘साँस फूलने लगा’ को सही क्यों बता रहा है?
जब मैंने यही सवाल फ़ेसबुक पर पूछा – साँस फूलता है या फूलती है – तो 90% ने कहा – फूलती है। 10% ने कहा – फूलता है।
जिन 90% ने ‘साँस फूलती है’ के पक्ष में वोट दिया, वे जानते हैं कि साँस स्त्रीलिंग है। जब साँस ‘ली जाती’ है, साँस ‘उखड़ती’ है, डॉक्टर ‘लंबी’ या ‘गहरी’ साँस लेने को कहते हैं तो फूलते समय भी साँस ‘फूलेगी’ ही, ‘फूलेगा’ क्यों?
बात सही है। लेकिन फिर 10% लोगों को ऐसा क्यों लगा कि ‘साँस फूलती नहीं, फूलता है’? क्या वे साँस को पुल्लिंग बोलते हैं? मसलन मैंने ‘लंबा’ साँस लिया, ‘उसका’ साँस उखड़ने लगा आदि। या उन्होंने हिंदी शब्दसागर में ‘साँस’ की एंट्री देख ली थी?
आइए, देखते हैं कि शब्दसागर में क्या लिखा हुआ है। इसमें लिखा है कि साँस हिंदी में स्त्रीलिंग है हालाँकि संस्कृत के श्वास शब्द की देखादेखी इसे पुल्लिंग होना चाहिए था। इसके साथ इसमें एक और रोचक बात लिखी हुई है कि ‘कुछ अवसरों पर कुछ विशिष्ट क्रियाओं आदि के साथ यह केवल पुल्लिंग भी बोला जाता है। जैसे – इतनी दूर से दौड़े हुए आए हैं, साँस फूलने लगा (देखें चित्र)।
शब्दसागर की इस एंट्री से तीन बातें ज्ञात/पुष्ट होती हैं।
- संस्कृत में श्वास पुल्लिंग है।
- हिंदी का साँस संस्कृत के इसी श्वास शब्द से बना है लेकिन यहाँ यह स्त्रीलिंग है।
- हिंदी में स्त्रीलिंग होने के बावजूद कुछ मामलों में यह पुल्लिंग बोला जाता है जैसे साँस फूलने लगा।
शब्दसागर से मिली इन रोचक जानकारियों के बावजूद कुछ सवाल अनुत्तरित रह जाते हैं। इन सवालों के जवाब हमें न शब्दकोशों में मिलते हैं, न ही व्याकरण की किताबों में।
सबसे बड़ा प्रश्न तो यह है कि जब साँस हिंदी में स्त्रीलिंग है तो केवल एक ख़ास तरह के प्रयोगों में वह पुल्लिंग कैसे हो जाता है।
इसका जवाब शायद हमें उर्दू में मिले जिसमें साँस शब्द पुल्लिंग है। मुझे भी नहीं पता था। मगर कुछ पाकिस्तानी सीरियलों में जब ड्रामा के पात्रों को साँस को पुल्लिंग के तौर पर बोलते सुना (मसलन मुझे साँस नहीं आ रहा) तब मुझे यह जानकारी मिली।
उर्दू में साँस क्यों पुल्लिंग है? शायद इसलिए कि उर्दू में साँस के लिए जो शब्द है – ‘दम’ – वह पुल्लिंग है। किसी की साँस उखड़ रही हो तो कहेंगे ‘उसका’ दम उखड़ रहा है। इसी तरह साँस फूलने पर कहेंगे कि ‘उसका’ दम फूलने लगा। मेरा अनुमान है कि ‘दम’ के पुल्लिंग होने से ही उर्दू में साँस भी पुल्लिंग हो गया।
लेकिन यह ‘दम’ जो फ़ारसी का शब्द है, केवल उर्दू तक सीमित नहीं रहा। वह हिंदी में भी ख़ूब इस्तेमाल होता है और हिंदी में भी वह पुल्लिंग ही है।
सो हो सकता है कि दम की देखादेखी कुछ लोग साँस का भी पुल्लिंग के तौर पर इस्तेमाल करने लगे। ‘मेरा दम फूल रहा है’ की तरह ‘मेरा साँस फूल रहा है’ जैसे प्रयोग करने लगे। और इसीलिए बाक़ी मामलों में भले ही साँस स्त्रीलिंग रहा, कुछ मामलों में वह पुल्लिंग हो गया।
निष्कर्ष यह कि
- उर्दू का शब्द ‘दम’ पुल्लिंग है, इसीलिए संभवतः उर्दू में साँस भी पुल्लिंग हो गया।
- हिंदी में भी ‘दम’ चलता है और यहाँ भी वह पुल्लिंग है, इसलिए कुछ इलाक़ों में और कुछ लोगों द्वारा साँस को भी (कुछ ख़ास प्रयोगों में) पुल्लिंग बोला जाने लगा हो।
- एक संभावना यह भी है कि चूँकि संस्कृत में श्वास पुल्लिंग है, इसलिए कुछ लोग आरंभ में साँस को भी पुल्लिंग ही बोलते रहे हों और उसके कारण ‘साँस फूलने लगा’ जैसे प्रयोग चल निकले हों।
जो भी हो, आज की तारीख़ में, जैसा कि पोल के परिणाम से ज़ाहिर हुआ, ‘साँस फूलने लगा’ जैसे प्रयोग नहीं चल रहे हालाँकि हिंदी वेबसाइटों पर वैसे प्रयोग कभी-कभार दिख जाते हैं (देखें चित्र)। संभव है कि धीरे-धीरे ऐसे प्रयोग समाप्त हो जाएँ।
ऊपर मैंने ‘दम’ की बात की जिसका मतलब ‘साँस’ है। तो फिर ‘दम भरने’ का मतलब क्या हुआ? साँस भरना? ‘वह उसकी दोस्ती का दम भरता है’ इसका मतलब क्या यह हुआ कि वह उसकी दोस्ती की ‘साँस भरता’ है? इस विषय पर पहले चर्चा हो चुकी है। रुचि हो तो आगे दिए गए लिंक पर क्लिक/टैप करके पढ़ें।