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207. ईश्वर-अल्ला तेरो नाम, सबको (क्या)मति दे भगवान

रघुपति राघव राजा राम, पतित पावन सीताराम, ईश्वर-अल्लाह तेरो नाम, सबको (….) दे भगवान। यहाँ ख़ाली जगह पर क्या है? सन्मति या सम्मति? या कुछ और? आज यही जानने की कोशिश करेंगे हम। रुचि हो तो पढ़ें।

जब मैंने फ़ेसबुक पर यह पोल किया कि सही क्या है –  ‘सबको सन्मति दे भगवान’ या ‘सबको सम्मति दे भगवान’ तो 80% ने कहा – सन्मति। सम्मति के पक्ष में वोट देने वालों की तादाद 20% रही।

सही है सन्मति। 

चलिए. सही-ग़लत का फ़ैसला तो हो गया लेकिन अब यह भी जान लेते हैं कि दोनों शब्दों के अर्थों में क्या अंतर है।

सन्मति सत्+मति से मिलकर बना है। सत् का एक अर्थ है अच्छा और मति का अर्थ तो आपको मालूम ही होगा – बुद्धि। यानी अच्छी मति या सुमति। हिंदी में इसके लिए आम तौर पर सद्बुद्धि शब्द चलता है।

सम्मति इससे मिलता-जुलता शब्द है जिसके कई अर्थ हैं – सलाह, मत, अनुमति आदि (देखें चित्र) लेकिन इसका अर्थ सद्बुद्धि या सुमति क़तई नहीं है क्योंकि सलाह हमेशा अच्छी ही हो, ज़रूरी नहीं। यदि कोई चोर किसी दूसरे चोर को सलाह देगा तो कैसे कहें कि वह अच्छी सलाह है। निष्कर्ष यह कि सन्मति और सम्मति दो अलग-अलग शब्द हैं और एक-दूसरे के पर्याय नहीं हो सकते।

लेकिन बड़े आश्चर्य की बात है कि हिंदी शब्दसागर में सन्मति की एंट्री में उसे सम्मति का पर्याय बताया गया है (देखें चित्र)। बाक़ी कुछ शब्दकोश जो मैंने देखे, उनमें तो सन्मति का उल्लेख ही नहीं है।

इसका कारण शायद यह है कि हिंदी में सन्मति नहीं चलता। यदि कोई खोजने बैठे तो उपर्युक्त भजन के अलावा इसका प्रयोग कहीं और नहीं दिखता।

परंतु जैन परंपरा में सन्मति का प्रयोग हम पाते हैं। वहाँ सन्मति नाम के एक कुलकर का उल्लेख है। जैन शास्त्रों के अनुसार कुलकर वे हैं जो नियमों की रचना करते थे और विपदा के समय मानव समाज की रक्षा करते थे।

एक अन्य जैन ग्रंथ ‘ज्ञानार्णव’ में सन्मति का प्रयोग ‘सम्माननीय’ के अर्थ में हुआ है।

जहाँ तक संस्कृत का प्रश्न है तो ‘कथासरित्सागर’ में सन्मति का ज़िक्र मिलता है लेकिन वहाँ उसका प्रयोग संज्ञा के बजाय विशेषण के रूप में हुआ है – सद्बुद्धिशाली। श्लोक इस प्रकार है – 

फिर से आते हैं उस भजन पर जिसके संदर्भ में सन्मति और सम्मति पर चर्चा हो रही है।

आपको मालूम होगा कि ‘ईश्वर-अल्लाह तेरो नाम, सबको सन्मति  दे भगवान’, यह मूल भजन में नहीं है। ‘रघुपति राघव राजा राम’ में यह लाइन जोड़कर उसका भाव विस्तार किया गया था ताकि ईश्वर को धार्मिक संप्रदायों के दायरे से मुक्त किया जाए। अब यह पंक्ति स्वयं गाँधीजी ने जोड़ी थी या किसी और ने, यह मुझे नहीं मालूम। लेकिन एक सवाल मन में उठता है कि कहीं ऐसा तो नहीं कि गुजराती में सन्मति शब्द पहले से प्रचलित रहा हो और इसीलिए भजन में इसका इस्तेमाल किया गया हो। जब मैंने ऑनलाइन गुजराती कोश खोजे तो मुझे उनमें यही अर्थ मिला – सद्बुद्धि। (देखें चित्र)।

लेकिन गुजरात से ही एक प्रतिकूल राय यह भी मिली कि गुजराती में सन्मति सम्मति का ही एक रूप है। जैसे विनती गुजराती में विनन्ती हो जाता है (विनती में एक अतिरिक्त न् आ जाता है), उसी तरह सम्मति गुजराती में सन्मति हो गया। इसकी पुष्टि करते हुए गूगल ट्रांसलेट में मुझे સન્મતિ का अर्थ दिखा – अनुमति।

कहने का अर्थ यह कि जब ‘सबको सन्मति दे भगवान’ की लाइन जोड़ी गई थी तो कहीं उस सन्मति का अर्थ सम्मति ही तो नहीं था?

कारण, भगवान यदि किसी को सलाह देगा तो अच्छी ही सलाह देगा। इस नाते कम-से-कम इस संशोधित भजन में ‘सन्मति’ और ‘सम्मति’ का एक ही अर्थ हो सकता है।

 

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