कुछ शब्दों के दो-दो रूप चलते हैं। ऐसा ही एक शब्द है – छुपना-छुपाना और छिपना-छिपाना। जब इन शब्दों पर फ़ेसबुक पोल किया गया तो मुक़ाबला बहुत क़रीबी रहा। 53% ने कहा – छुपाना। 47% का कहना था – छिपाना। सही क्या है, जानने के लिए आगे पढ़ें।
सही क्या है, यह जानने के लिए हमें छुपाना और छिपाना के बजाय छुपना और छिपना को अपनी खोज का आधार बनाना होगा क्योंकि इन्हीं से छुपाना और छिपाना बने हैं। इसके लिए मैंने हर बार की तरह शब्दकोशों का सहारा लिया हालाँकि शब्दकोश भी इस मामले में एकमत नहीं दिखे।
शब्दसागर में छिपना को प्राथमिकता दी गई है, छुपना को नहीं। छिपना की एंट्री में उसका स्रोत और अर्थ दिया हुआ है। उधर छुपना में लिखा है- दे. छिपना (देखें चित्र)।
यानी शब्दसागर के अनुसार छिपना ही मूल शब्द है।
स्कोर : छिपना-1, छुपना-0
प्लैट्स में छिपना और छुपना दोनों एकसाथ हैं यानी उसमें दोनों को बराबर महत्व दिया गया है।
प्लैट्स की वोटिंग के बाद अंतिम परिणाम रहा –
छिपना-2, छुपना-1
लेकिन अभी अंतिम फ़ैसला हुआ नहीं है क्योंकि अभी तो शब्द का स्रोत तलाशना बाक़ी है।
क्षिप् या क्षि से बना छिपना?
शब्दसागर के अनुसार यह बना है क्षिप से। लिखा है ‘क्षिप डालना’ (देखें ऊपर का चित्र फिर से)। लेकिन मुझे किसी भी संस्कृत कोश में क्षिप का अर्थ ‘ओट या आवरण में रहना’ नहीं मिला। क्षिप या क्षिप् का अर्थ फेंकना, भेजना आदि ही है (देखें चित्र)।
प्लैट्स में इसका स्रोत दिया हुआ है – क्षोप्य जो क्षि धातु से बना बताया गया है। प्लैट्स के अनुसार क्षोप्य से प्राकृत में छिप्प(इ) और छुप्प(इ) बने जिनसे हिंदी में छिपना और छुपना आया (देखें चित्र)।
मेरे लिए बड़ी दुविधा हो गई। शब्दसागर और प्लैट्स कह रहे हैं कि छिपना या छुपना शब्द क्षिप/क्षिप् या क्षि धातु से आया है लेकिन संस्कृत के शब्दकोशों में क्षिप/क्षिप् या क्षि धातु का छुपने या छिपने से कोई रिश्ता नहीं बताया गया है। ऐसे में शब्द का सही स्रोत कैसे मिले और स्रोत नहीं मिले तो कैसे तय हो कि सही शब्द छिपना है या छुपना?
मैंने फिर ‘फ़ोन अ फ़्रेंड’ का सहारा लिया और अपने भाषामित्र योगेंद्रनाथ मिश्र से संपर्क साधा ताकि वे इस विषय में कोई रोशनी डाल सकें। उन्होंने अपने स्तर पर संस्कृत के कुछ और कोश पलटे और जो लिखा, वह इस प्रकार है।
छद् धातु से बना है छिप?
योगेंद्र जी लिखते हैं –
‘प्लैट्स ने ‘क्षि’ धातु से छिपना/छुपना को जोड़ा है। लेकिन आप्टे के कोश में ‘क्षि’ धातु नहीं है। मोनियर विलियम्ज़ में ‘क्षि’ धातु है। परंतु उसका अर्थ छिपना नहीं है। ‘क्षि’ का अर्थ रुकना, ठहरना, प्रतीक्षा करना, निवास करना है। ‘क्षिप्’ का अर्थ आपने (ऊपर) देख ही लिया है। ऐसे में छिपना/छुपना को ‘क्षिप्’ या ‘क्षि’ से नहीं जोड़ा जा सकता।‘
योगेंद्र जी के ख़्याल मे छिपना/छुपना के मूल में ‘छद्’ धातु है, जिसका अर्थ है ढँकना, परदा करना, छिपाना। वे बताते हैं, ‘छद् से छदति रूप बनता है। छदति रूप अपभ्रंश तक आते-आते छवइ/छिवइ में परिवर्तित होता है। व् तथा प् दोनों ओष्ठ्य ध्वनियाँ हैं। इस कारण व् का प् में तथा प् का व् में परिवर्तन भी अपभ्रंश में देखने को मिलता है। इस तरह से छिवइ के छिपइ में परिवर्तन की संभावना की जा सकती है। और फिर इ/ई का उ तथा उ का इ/ई में परिवर्तन अपभ्रंश में आम बात है।‘
योगेंद्र जी की बातों में दम नज़र आता है लेकिन शब्दसागर और प्लैट्स को भी हम इग्नोर नहीं कर सकते। इसलिए हम इन दोनों मतों में जो भिन्नता है, उसकी उपेक्षा करते हैं और जो समानता है, उसके आधार पर आगे बढ़ते हैं।
छिप मूल शब्द, उससे बना है छुप?
दोनों मत समान रूप से यह मानते हैं कि मूल शब्द छिप है और उसी से छुप बना है – आरंभ में ही बना या बाद में, इसपर मतभेद हो सकता है। योगेंद्र जी के अनुसार अपभ्रंश में ऐसे बहुत सारे शब्द मिलते हैं जिनमें इ और ई स्वरयुक्त शब्द उ स्वर में बदल गए। लेकिन सच कहूँ तो मुझे ऐसे शब्द बहुत कम नज़र आए। सामान्य ट्रेंड यही है कि इ या ई से शुरू होने वाले संस्कृत शब्द जब हिंदी में आए तो वे ई में बदले, न कि उ में। उदाहरण देखें : जिह्वा से जीभ, इष्टिका से ईंट, मिष्ट से मीठा, कृषक से किसान, कीट से कीड़ा आदि।
ऐसे शब्द बहुत कम है, बिल्कुल नहीं के बराबर, जिनमें इ या ई स्वर से शुरू होने वाला कोई संस्कृत शब्द उ में बदल गया हो। मुझे केवल एक शब्द याद आ रहा है – ऊख।
ऊख इक्षु से बना है। इसके दो रूप हैं – ईख और ऊख।
मराठी में भी गन्ने को ऊस या ऊँस कहते हैं। डॉ. भोलानाथ तिवारी की किताब ‘हिंदी भाषा का इतिहास’ के अनुसार ‘उत्तर भारत में इक्षु से इक्खू और उससे ईख हुआ तो पश्चिम (महाराष्ट्री) में यह इक्षु से उच्छु से ऊस या ऊँस हो गया।’
मराठी में ऐसे और भी शब्द हो सकते हैं जिनमें इ या ई से शुरू होने वाले संस्कृत शब्द उ या ऊ में बदल गए। मुझे केवल एक शब्द याद आ रह है – उंदीर जो संस्कृत के इंदुर (चूहा) से बना है। गुजराती में भी चूहे को उंदर कहते हैं।
मराठी में ऋ का रु उच्चारण क्यों?
कहने का अर्थ यह कि इ या ई की मात्रा वाले शब्दों का उच्चारण उ या ऊ में बदलने की परंपरा गुजराती और मराठी में ज़्यादा दिखती है, उत्तर भारतीय हिंदी में कम। हो सकता है, इसी परंपरा के कारण वहाँ ऋ का उच्चारण रु होता है जबकि उत्तर भारत में ऋ का उच्चारण रि है। उत्तर भारत में कृपा को क्रिपा बोला जाता है जबकि मराठी या गुजराती में क्रुपा।
परंतु इससे हमारी पहेली का हल नहीं हुआ। पहेली यह कि छिपना शब्द छुपना में कैसे बदला। अगर इ का उ में बदलने का ट्रेंड पश्चिम में है तो उत्तर भारत में छिपना छुपना कैसे हो गया।
मेरे पास इसका एक ही उत्तर है कि मेरे पास इसका कोई उत्तर नहीं है। हमारे सामने दो विकल्प हैं। पहला यह कि हम प्लैट्स और योगेंद्र जी की इस धारणा को मान लें कि शुरू से ये दोनों रूप चल रहे थे और आगे जाकर भी दोनों रूप बने रहे। दूसरा विकल्प यह है कि हम छिप को प्रारंभिक और छुप को परिवर्तित शब्द मानें।
हमारे गुजराती और मराठी भाई-बहन अगर हमें ऊँस और उंदर जैसे और शब्द बता सकें जहाँ संस्कृत के इ या ई से शुरू होने वाले शब्द उ या ऊ में बदल गए तो हमारा ज्ञानवर्धन होगा।