भींगना सही है या भीगना? जब इस विषय पर फ़ेसबुक पोल किया गया तो 76% यानी तीन-चौथाई से कुछ ज़्यादा ने कहा – भीगना सही है जबकि 24% अर्थात एक-चौथाई से कुछ कम ने भींगना के पक्ष में वोट दिया। शब्दकोश की मानें तो भीगना सही है। लेकिन भीगना सही है, इसका मतलब क्या यह हुआ कि भींगना ग़लत है? जानने के लिए आगे पढ़ें।
भीगना और भींगना में कौन सही है, इसपर मैंने तीन शब्दकोशों को कन्सल्ट किया।
1. प्लैट्स के शब्दकोश में भीगना और भींगना दोनों हैं और दोनों का एक ही अर्थ दिया हुआ है।
2. हिंदी शब्दसागर में भीगना के साथ भींगना भी है मगर भींगना (भीँगना) की एंट्री में कोई अर्थ बताने के बजाय कोश भीगना पर जाने का इशारा करता है (देखें चित्र)। यानी प्राथमिकता भीगना को दी गई है।
3. वर्धा के शब्दकोश में भीगना है, भींगना है ही नहीं।
इन परिणामों से निष्कर्ष क्या निकला? निष्कर्ष यह कि भीगना के बारे में सब एकमत हैं लेकिन भींगना के बारे में मतभेद है। एक इसे शब्दकोश में डालने लायक मानता ही नहीं, दूसरा मानता है और तीसरा उसे सही शब्द मानते हुए भी प्राथमिकता भीगना को ही देता है। इससे हम क्या समझें और क्या राय बनाएँ?
जब भी मेरे सामने किन्हीं दो शब्दों को लेकर दुविधा उत्पन्न होती है तो मैं शब्द के स्रोत की तरफ़ जाता हूँ। इस मामले में भी मैंने वही उपाय अपनाया। लेकिन अफ़सोस, इस मुद्दे पर भी कोश बँटे हुए हैं। प्लैट्स इसे अभ्यंग (प्राकृत अब्भिंग/अब्भिंगे) से उपजा बताता है तो शब्दसागर इसे अभ्यंज से।
आप समझ ही रहे होंगे कि ये दोनों संस्कृत के शब्द हैं। आप्टे के शब्दकोश में दोनों (अभ्यंगः और अभ्यंजनम्) का एक ही अर्थ दिया हुआ है।
मैं नहीं जानता कि संस्कृत के इन दोनों शब्दों का आपस में क्या संबंध है। क्या वे अलग-अलग बने हैं या एक शब्द दूसरे का परिवर्तित रूप है? लेकिन फ़िलहाल इसमें दिमाग़ लगाने की ज़रूरत नहीं क्योंकि हमारे आज के सवाल का उससे कोई ख़ास लेना-देना नहीं है। हमारा सवाल बस यह है कि ‘भी’ अनुनासिक है या नहीं और इसका जवाब इन दोनों ही शब्दों में समान रूप से छुपा हुआ है।
आपने देखा होगा कि अभ्यंज और अभ्यंग, दोनों में पंचमवर्ण है यानी नासिक्य ध्वनि हैं। अभ्यंज (अभ्यञ्ज) में ञ् है तो अभ्यंग (अभ्यङ्ग) में ङ् है। इस लिहाज़ से इनसे बने शब्द में भी नासिक्य ध्वनि होनी चाहिए।
हमारे पास इसके ढेरों उदाहरण हैं जहाँ संस्कृत शब्दों की नासिक्य (पंचमवर्णी) ध्वनि हिंदी में आकर पिछले स्वर को अनुनासिक कर देती है जैसे चन्द्र से चाँद, दन्त से दाँत, कण्टक से काँटा, वण्टन से बाँटना, पिण्ड से पींड, सिञ्चन से सिंचाई (सिँचाई) आदि।
इसलिए मुझे लगता है कि अभ्यंग (संस्कृत) से पहले अब्भिंग/अब्भिंगे (प्राकृत) होते हुए भींगना (हिंदी) बना होगा और उसके बाद ही भीगना हुआ होगा। अगर ऐसा है तो मेरे हिसाब से दोनों ही शब्द सही ठहरते हैं। वैसे भी प्लैट्स में दोनों शब्द हैं। शब्दसागर में भी हैं।
इस शब्द पर रिसर्च करते हुए मुझे एक और रोचक जानकारी मिली। भींगना के ही अर्थ वाला एक और शब्द है भींजना। इस शब्द का हिंदी में अब शायद कम उपयोग होता है (मैं तो नहीं ही करता) लेकिन बाँग्ला में भींगने के अर्थ में यही शब्द है – ভিজা (भिजा)। तो क्या यह हो सकता है कि अभ्यंग से भींगना बना और अभ्यंज से भींजना? पता नहीं, संस्कृत के जानकार ही इसका बेहतर जवाब दे सकते हैं।