सृजन शब्द तो आप जानते ही होंगे। इसका अर्थ है रचना, उत्पत्ति Creation. इसी से बनते हैं सृजनात्मक, सृजनशील जैसे शब्द। ऐसे में यदि कोई ज्ञानी व्यक्ति आपसे कहे कि सृजन शब्द ग़लत है, सही शब्द है सर्जन तो आप क्या करेंगे? मान लेंगे? क्या सृजन की जगह सर्जन और सृजनात्मक की जगह सर्जनात्मक का प्रयोग शुरू कर देंगे? आज की चर्चा इसी विषय पर है – सृजन को कुछ लोग क्यों ग़लत बताते हैं? और क्या वह वाक़ई अशुद्ध है?
आज की चर्चा का विषय है – सृजन/सृजनात्मक सही हैं या सर्जन/सर्जनात्मक? या दोनों सही हैं?
इस बात का जवाब इस बात पर निर्भर करता है कि आप अतिशुद्धतावादी हैं या प्रचलनवादी। यदि अतिशुद्धतावादी हैं तो सृजन और सृजनात्मक सिरे से ग़लत हैं क्योंकि सृजन जैसा कोई शब्द संस्कृत में है ही नहीं, न ही संस्कृत के नियमों के तहत ऐसा कोई शब्द बन सकता है। अब जब सृजन ही ग़लत है तो सृजनात्मक शब्द सही कैसे हो सकता है! सही है तो सर्जन (सर्जनम्) जो संस्कृत के नियमानुसार बना है (देखें चित्र)। उसी से सर्जनात्मक भी बन सकता है।
सर्जन दरअसल संस्कृत के सृज् धातु से बना है। यह उसी नियम से बना है जिस नियम से नृत् से नर्तन, दृश् से दर्शन और वृष् से वर्षण बने हैं। लेकिन पता नहीं कैसे हिंदी में सर्जन नहीं चला। उसकी जगह सृजन चल गया… (देखें चित्र) और इतना चल गया कि सर्जन बिल्कुल ग़ायब ही हो गया। आज की तारीख़ में आप सर्जन बोलेंगे तो लोग अंग्रेज़ी का सर्जन समझेंगे यानी शल्यचिकित्सक।
रोचक बात यह है कि अधिकतर लोग सृजन को संस्कृत का मूल शब्द समझते हैं और इसी कारण उसके साथ जो प्रत्यय लगाते हैं, वे भी संस्कृत के ही हैं। जैसे सृजनशील, सृजनात्मक, सृजनशक्ति आदि।
लेकिन कुछ लोग आज भी सृजन को अशुद्ध मानते हुए सर्जन शब्द का ही प्रयोग करते हैं और उनके मुताबिक सही शब्द होगा सर्जनात्मक। नीचे आचार्य पृथ्वीनाथ पांडेय की राय पढ़ें जो उन्होंने अपने एक लेख में रखी है।
‘सृजन’ निरर्थक शब्द है। ‘सृज्’ धातु मे ‘ल्युट्’ प्रत्यय के योग से ‘सर्जन’ (रचना, सृष्टि तथा कृति) शब्द की उत्पत्ति होती है। हमारे देश मे जितने भी विद्वज्जन (विद्वत्जन और विद्वत्जनों अशुद्ध है।) हैं, वे ‘सृजन’ शब्द का प्रचार-प्रसार करते आ रहे हैं, वे बता सकते हैं– आप यदि ‘सृजन’ शब्द को शुद्ध मानते हैं तो ‘विसर्जन’ के स्थान पर ‘विसृजन’ का व्यवहार क्यों नहीं करते? … समस्तरीय अनेक शब्द हैं; जैसे– अर्जन, गर्जन, तर्पण, कर्षण इत्यादिक। ये सभी शब्द उसी नियम के अन्तर्गत बँधे हुए हैं, जिसके अन्तर्गत ‘सर्जन’ शब्द अनुशासित लक्षित होता है। (दिखायी पड़ता है।)
डॉ. पांडेय की राय सही हो सकती है लेकिन किसी भी भाषा में कई ऐसे शब्द होते हैं जिनकी व्युत्पत्ति व्याकरण-सम्मत नहीं होती लेकिन वे प्रचलित हो जाते हैं तो उन्हें भाषा से निर्वासित नहीं किया जा सकता। मसलन मुकेश को लीजिए। व्याकरण के अनुसार इस नाम का कोई अर्थ नहीं है न ही संस्कृत साहित्य में कहीं इस नाम का कोई व्यक्ति या पात्र है। मगर यह नाम चल रहा है।
इसीलिए कोशकारों ने व्याकरण के पचड़े में न पड़ते हुए सृजन और सर्जन दोनों को सही माना है और हिंदी में शब्दकोशों में दोनों शब्द मिलते हैं। इसी तरह सृजनात्मक और सर्जनात्मक दोनों को जगह दी है। जिसे जो पसंद हो, वह उसका प्रयोग करे (देखें चित्र)।
सृजन और सर्जन की तरह एक और शब्दयुग्म है जिसमें यह घपला हुआ है। वह है शाप और श्राप। इनमें से संस्कृत का शब्द कौन है, यह पहचानने में कई लोग भूल कर जाते हैं। जब मैंने इसपर फ़ेसबुक पोल किया था तो हर पाँच में से दो लोगों ने ग़लत जवाब दिया था। यदि आपको भी शाप और श्राप में संदेह है तो वह पोस्ट पढ़ सकते हैं।