फ़र्ज़ का एक अर्थ तो आप जानते ही होंगे – कर्तव्य। लेकिन फ़र्ज़ के कुछ और अर्थ भी हैं। जैसे इब्ने इंशा ने लिखा है – ‘फ़र्ज़ करो हम अहल-ए-वफ़ा हों, फ़र्ज़ करो दीवाने हों। फ़र्ज़ करो ये दोनों बातें झूठी हों, अफ़साने हों।’ इसी तरह मिर्ज़ा ग़ालिब का एक शेर है – ‘क्या फ़र्ज़ है कि सबको मिले एक-सा जवाब, आओ न, हम भी सैर करें कोह-ए-तूर की।’ इन दोनों में फ़र्ज़ का मतलब कर्तव्य नहीं है। तो क्या हैं कर्तव्य के अलावा फ़र्ज़ के दूसरे अर्थ, आज इसी के बारे में बात करेंगे। रुचि हो तो पढ़ें।