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आलिम सर की हिंदी क्लास शुद्ध-अशुद्ध

168. गुल माने फूल, गुल माने गुलाब या गुल माने दोनों?

‘फूल खिले हैं गुलशन-गुलशन’ में गुल का मतलब साफ़ है – फूल। लेकिन गुलक़ंद में गुल का मतलब क्या है – क्या कोई भी फूल या केवल गुलाब? और गुलाब में जो गुल है, उसका अर्थ क्या है? फिर एक शब्द है बिजली गुल होना। यहाँ गुल का क्या अर्थ है? और शोरग़ुल? आज की क्लास इसी गुल और ग़ुल शब्दों पर। रुचि हो तो पढ़ें।

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167. जंग में सबकुछ जायज़ है तो ज़ंग में क्यों नहीं?

कुछ लोगों कन्फ़्यूज़ हो जाते हैं कि उर्दू से आए शब्दों में कहाँ नुक़्ता लगेगा और कहाँ नहीं। जल्दी होगा या ज़ल्दी, जबरन होगा या ज़बरन, जंग सही है या ज़ंग। जल्दी और जबरन में तो उन्हें स्पेलचेक से मदद मिल जाती है जो ज़ल्दी और ज़बरन लिखने पर उनके नीचे लाल रेखा दिखा देता है। लेकिन जंग और ज़ंग में ऐसा नहीं होता क्योंकि दोनों शब्द सही हैं हालाँकि उनके अर्थ अलग-अलग हैं। आज की क्लास इसी पर।

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166. सही शब्द क्या है – साहिब, साहब, साहेब या साब?

साहिब, साहब या साहेब? जब मैंने यह सवाल फ़ेसबुक पर पूछा तो 57% ने साहब को सही बताया। 29% के अनुसार साहिब और 14% के मुताबिक़ साहेब सही है। कुछ साथियों ने एक से अधिक विकल्पों को सही बताया। इनमें से सही क्या है, जानने के लिए आगे पढ़ें।

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165. दर्शक का अर्थ देखने वाला, दिखाने वाला या दोनों?

दर्शक का अर्थ क्या है? देखने वाला या दिखाने वाला? आप सोचेंगे, यह क्या सवाल हुआ? हर कोई जानता है कि दर्शक का अर्थ होता है देखने वाला। मगर मेरा प्रश्न है कि यदि दर्शक का अर्थ केवल देखने वाला है तो फिर संस्कृत और हिंदी के शब्दकोशों में उसका अर्थ दिखाने वाला भी क्यों लिखा हुआ है? इस चर्चा में जानिए, कब दर्शक का अर्थ दिखाने वाला होता है।

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164. शहादत का मूल अर्थ क़ुर्बानी नहीं है, क्या है?

शहीद और शहादत के अर्थ तो आप जानते ही होंगे। शहीद यानी वह व्यक्ति जिसने अपने राष्ट्र, देश, समुदाय, विचारधारा या आदर्श  के लिए अपनी जान क़ुर्बान कर दी हो और शहादत का अर्थ है उसकी वह क़ुर्बानी। लेकिन शहीद और शहादत का एक और अर्थ है जिसका बलिदान या क़ुर्बानी से कोई लेना-देना नहीं। बल्कि शुरू-शुरू में शहीद और शहादत का यही अर्थ चलता था और आज भी अदालतों में वही अर्थ चलता है। बलिदान का अर्थ तो बाद में आया।  क्या था शहीद और शहादत का मूल अर्थ, जानने के लिए आगे पढ़ें।

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