शादी का झूठा वादा करके जो पुरुष किसी स्त्री से संबंध बनाता है, उसकी मानसिकता और एक बलात्कारी की मानसिकता में कोई अंतर नहीं है। दोनों में ही स्त्त्री के शरीर से खेलने की मंशा होती है। फ़र्क़ बस इतना है कि एक में शारीरिक बल का इस्तेमाल करते हुए किसी के शरीर से खेला जाता है, तो दूसरे में शादी के मीठे वादे की सेज सजाकर वही काम किया जाता है। इसी कारण एक में लड़की पूरी ताक़त से विरोध करती है, दूसरे में ख़ुशी-ख़ुशी सहयोग करती है। लेकिन दोनों में समानता यही है कि अगर ताक़त का ज़ोर नहीं होता तो बलात्कार नहीं होता और शादी का भरोसा न होता तो सहवास भी नहीं होता।