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एकला चलो

बिन बुलाया मेहमान जो जाने का दिन नहीं बताता

गौतम बुद्ध ने कहा था – दुख है। दुख का कारण है। दुख का कारण इच्छा है। तो क्या इसका मतलब यह है कि जब तक इच्छाएँ रहेंगी, तब तक दुख रहेगा? अगर हाँ तब तो दुख को समाप्त करने का या दुखों से मुक्ति का एक ही मार्ग दिखता है – इच्छाओं का नाश। मगर क्या इच्छाओं के नाश के बाद ज़िंदगी का कोई मक़सद बचता है? आख़िर इच्छाओं की पूर्ति ही तो हमें सुख भी देती है…

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एकला चलो

ख़ुद को कैसे माफ़ करूँ?

हाल ही में एक किताब पढ़ी – Tuesdays with Morrie. मॉरी एक बुज़ुर्ग टीचर हैं जिन्हें ऐसी बीमारी हुई है कि उनकी मौत निश्चित है। ऐसे में उनका एक पुराना छात्र हर मंगलवार को उनके पास आता है और ज़िदगी के उनके अनुभवों के बारे में ज्ञान लेता है। हर हफ़्ते एक नया टॉपिक होता है। एक हफ़्ते मोरी उससे क्षमा के बारे में बात करते हैं और कहते हैं, मरने से पहले ख़ुद को माफ़ करो और फिर बाक़ी सबको।

लेकिन क्या ख़ुद को माफ़ करना इतना आसान है?

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