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एकला चलो

उसने पूछा था – क्या मुझे सचमुच मरना ही पड़ेगा?

उन दिनों मैं संपादकीय पेज की चिट्ठियाँ छाँटा करता था जब मुझ वह चिट्ठी मिली। चिट्ठी लिखने वाली थी 22 साल की एक लड़की जिसके माता-पिता उसकी जबरन शादी किए दे रहे थे। वह इस शादी के ख़िलाफ़ थी क्योंकि वह शादी करके अपने बच्चे पैदा करने के बजाय अनाथ बच्चों की माँ बनना चाहती थी। उसने नवभारत टाइम्स के संपादक से मदद माँगते हुए अंत में लिखा था – आप ही बताइए, क्या इस लड़की को सचमुच मरना ही पड़ेगा क्योंकि आप इस पत्र को इतना महत्वपूर्ण नहीं समझते।

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एकला चलो

शादी से पूर्व शारीरिक संबंध, न जुर्म है, न चारित्रिक पतन

आज से बीस-तीस साल पहले बॉलिवुड और टॉलिवुड की फ़िल्मों में हेरोइन रह चुकी ख़ुशबू सुंदर ने 2005 में एक पत्रिका को दिए गए इंटरव्यू में कहा था कि किसी भी शिक्षित युवक को यह उम्मीद नहीं करनी चाहिए कि उसकी दुल्हन कुँवारी होगी। उनके इस बयान की यह कहते हुए काफ़ी आलोचना हुई कि वे विवाहपूर्व यौन-संबंध की वकालत कर रही हैं। आइए, समझते हैं कि ख़ुशबू जैसे लोग जब विवाह-पूर्व सेक्स की बात करते हैं तो उनकी मंशा क्या होती है।

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एकला चलो

ख़ुद को कैसे माफ़ करूँ?

हाल ही में एक किताब पढ़ी – Tuesdays with Morrie. मॉरी एक बुज़ुर्ग टीचर हैं जिन्हें ऐसी बीमारी हुई है कि उनकी मौत निश्चित है। ऐसे में उनका एक पुराना छात्र हर मंगलवार को उनके पास आता है और ज़िदगी के उनके अनुभवों के बारे में ज्ञान लेता है। हर हफ़्ते एक नया टॉपिक होता है। एक हफ़्ते मोरी उससे क्षमा के बारे में बात करते हैं और कहते हैं, मरने से पहले ख़ुद को माफ़ करो और फिर बाक़ी सबको।

लेकिन क्या ख़ुद को माफ़ करना इतना आसान है?

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