अपमान के लिए उर्दू का एक शब्द हिंदी में बहुत चलता है लेकिन उसका कोई एक रूप नहीं है। कोई उसे बेइज्जती कहता है तो कोई बेज्जती। कुछ लोग ज में नुक़्ता लगाकर भी बोलते हैं – बेइज़्ज़ती। आज हम यही जानेंगे कि इनमें से कौनसा रूप सही है।
जब इसपर एक फ़ेसबुक पोल किया गया तो क़रीब दो-तिहाई वोट बेइज़्ज़ती के पक्ष में पड़े जबकि 30% वोट लोगों ने बेइज्जती को सही बताया।
सही शब्द है बेइज़्ज़ती जो इज़्ज़त से बना है यानी इसमें (नुक़्ते वाले) ज़ है, ज नहीं। चूँकि मूल शब्द इज़्ज़त में भी (नुक़्ते वाले) ‘ज़’ हैं सो बेइज़्ज़ती में भी वही ‘ज़’ हैं।
मगर चूँकि भारत में बड़ी तादाद में लोग ‘ज़’ का इस्तेमाल नहीं करते इसलिए बेइज्जती भी ठीकठाक प्रचलित है। हमारे पोल से भी यही मालूम हुआ कि कम-से-कम 30% लोग इसे सही मानते हैं। व्यापक हिंदी समाज में इनका अंश कहीं अधिक हो सकता है।
बेइज़्ज़ती का एक और विकृत और अजीब रूप प्रचलित है – बेज्जती हालाँकि हमारे पोल में उसको ज़रा भी समर्थन नहीं मिला। किसी साहित्यिक पुस्तक या पत्रिका में आपको यह शब्द मिलेगा भी नहीं लेकिन बोलचाल में और ख़ासकर इंटरनेट इससे भरा पड़ा है। सोशल मीडिया को तो छोड़िए, दैनिक भास्कर और ABP न्यूज़ जैसी वेबसाइटें बेज्जती लिखकर ख़ुद अपनी बेइज़्ज़ती करा रही हैं। (देखें चित्र)।

यानी पहले बेइज़्ज़ती से बेइज्जती हुआ और अब उसमें भी ‘इ’ ग़ायब होकर बेज्जती रह गया।
ऐसा क्यों हुआ? क्यों बेइज्जती से ‘इ’ ग़ायब हुआ – मैंने इसपर काफ़ी माथापच्ची की लेकिन कोई हल नहीं निकला हालाँकि इस सोच-विचार में बेइज़्ज़ती जैसा ही एक और शब्द मिला। मज़े की बात यह कि उसका रूप तो बेज्जती से भी अधिक बिगड़ा हुआ है।
वह शब्द है बेमंटी जिसका मतलब है बेईमानी। मुझे नहीं पता कि आपने यह शब्द सुना है या नहीं मगर हमारे बचपन में यह शब्द बहुत चलता था। अभी भी नेट पर यह शब्द दिख जाता है (देखें चित्र)।

अब बेईमानी से बेमंटी कैसे हुआ, यह लोकभाषा के जानकार ही बता सकते हैं।
आपको भी ‘बे’ या किसी और उपसर्ग से शुरू होने वाले ऐसे शब्द याद आते हों जिनमें मूल शब्द में मौजूद स्वतंत्र स्वर (अ, इ, ई, उ आदि) ग़ायब हुआ हो तो बताएँ।
मुझे केवल एक शब्द याद आ रहा है। जमाअत जो हिंदी में जमात हो गया।
