अध्यात्म को कई लोग आध्यात्म बोलते हैं, यह मुझे मालूम है लेकिन उनकी संख्या इतनी ज़्यादा है, यह मुझे इन शब्दों पर किए गए फ़ेसबुक पोल से पता चला। उस पोल में क़रीब 40% ने आध्यात्म को सही बताया था। यह ग़लत उच्चारण इतना ज़्यादा प्रचलित है कि कुछ धर्मगुरु भी अध्यात्म की जगह आध्यात्म बोलते हैं। वे ऐसा क्यों बोलते हैं, यह जानने के लिए आगे पढ़ें।
अध्यात्म को आध्यात्म बोलने के पीछे मूल कारण है ‘आध्यात्मिक’ शब्द। आध्यात्मिक शब्द के चलते कुछ लोगों को लगता है कि यह आध्यात्म से बना होगा – आध्यात्म में ‘इक’ जोड़ा तो हुआ आध्यात्मिक, जैसे व्यापार में ‘इक’ जोड़ा तो हुआ व्यापारिक।
लेकिन जैसा कि ऊपर कहा, सही शब्द है अध्यात्म (अधि+आत्म=अध्यात्म)।
व्याकरण के नियम के अनुसार जब किसी अकारांत संज्ञा शब्द के अंत में -इक लगाकर विशेषण बनाया जाता है तो ‘अ’ से शुरू होने वाले शब्दों में ‘अ’ का ‘आ’ हो जाता है। इस नियम के ढेरों उदाहरण हैं जिनका हम हर दिन इस्तेमाल करते हैं। कुछ उदाहरण देखें –
- धर्म से धार्मिक
- तर्क से तार्किक
- संसार से सांसारिक
- परिवार से पारिवारिक
- दर्शन से दार्शनिक
- प्रदेश से प्रादेशिक
- तत्काल से तात्कालिक
इसी तरह अध्यात्म से आध्यात्मिक।
क्या आपने किसी को भी धर्मिक, तर्किक, संसारिक, परिवारिक, प्रदेशिक या तत्कालिक बोलते सुना है? नहीं सुना होगा। जो लोग नियम नहीं जानते, वे भी इन्हें सही-सही बोलते-लिखते हैं।
लेकिन यहीं एक ट्विस्ट है जिसका मुझे इन शब्दों पर रिसर्च करते हुए परसों ही पता चला। मुझे पता चला कि अध्यात्म से आध्यात्मिक के साथ-साथ अध्यात्मिक भी होता है। कम-से-कम संस्कृत में तो होता ही है। आप्टे के संस्कृत शब्दकोश में दोनों हैं और दोनों का एक ही अर्थ है (देखें चित्र)।
मैं संस्कृत का जानकार नहीं हूँ। इसीलिए मैंने अपने भाषामित्र योगेंद्रनाथ मिश्र से संपर्क साधा और पूछा कि क्या संस्कृत में अध्यात्मिक भी होता है। सुनकर वे भी चकित हुए। उन्हें ख़ुद भी इस शब्द की जानकारी नहीं थी। इसलिए उन्होंने अपने पास उपलब्ध ग्रंथों की मदद ली और बताया कि संस्कृत में अध्यात्मिक और आध्यात्मिक दोनों रूप हैं। यह बताने के बाद उन्होंने इन दो रूपों के कारणों के बारे में जो निष्कर्ष दिया, वह बहुत ही उपयोगी लगा।
मिश्र जी ने मोनियर-विलियम्ज़ के शब्दकोश के हवाले से अध्यात्मिक और आध्यात्मिक शब्दों की यह रचना प्रक्रिया बताई।
- अध्यात्म+इक=आध्यात्मिक (ऊपर बताए गए नियमानुसार प्रारंभिक ‘अ’ का ‘आ’ हो गया)।
- अधि+आत्मिक(आत्म+इक)=अध्यात्मिक (अधि और आत्मिक में यण संधि से धि में उपस्थित इ का य् हो गया)।
उन्होंने इस सिलसिले में कुछ और उदाहरण दिए। जैसे –
- त्रिमास+इक=त्रैमासिक (‘इ’ से शुरू होने वाले शब्दों के अंत में ‘इक’ लगाने पर शुरुआती ‘इ’ का ‘ऐ’ हो जाता है)।
- त्रि+मासिक (मास+इक)=त्रिमासिक (मासिक से पहले त्रि उपसर्ग लगा हुआ है जिसमें कोई परिवर्तन नहीं होगा)।
मिश्रजी के इन उदाहरणों से मेरे सामने सालों से खड़े कई प्रश्नों का हल मिल गया। प्रश्न यह था कि संविधान के बाद ‘इक’ लगाने से सांविधानिक (सं का सां) होना चाहिए, फिर संवैधानिक क्यों लिखा जाता है? इसी तरह प्रशासन के बाद भी ‘इक’ लगने पर प्राशासनिक (प्र का प्रा) होना चाहिए, परंतु प्रचलन में है प्रशासनिक। अनुवंश के बारे में भी भ्रम था कि उससे आनुवंशिक होगा या अनुवांशिक?
संक्षेप में यह सवाल उन सभी शब्दों के बारे में उत्पन्न हो सकता था जो एकाधिक शब्दों या उपसर्गों से मिलकर बने हैं। धर्म एक शब्द है, इसलिए उसमें कोई भ्रम नहीं है – धर्म से धार्मिक। इच्छा भी एक शब्द है सो उसमें भी इच्छा से ऐच्छिक बनाने में कोई दुविधा नहीं है। लेकिन बहुत सारे शब्द उपसर्ग लगने से या दो शब्दों के मेल से बने हैं। उन्हीं में दुविधा होती है कि ‘इक’ लगाने पर स्वर परिवर्तन का नियम पहले शब्द (या उपसर्ग) पर लगेगा या बाद वाले शब्द पर। ऊपर वाले ही उदाहरण देखिए।
- संविधान : यह सम्+विधान से मिलकर बना है। अगर पहले हिस्से में परिवर्तन करते हैं तो परिणाम निकलेगा – साम्+विधानिक=सांविधानिक। दूसरे हिस्से में परिवर्तन करते हैं तो बनता है – सम्+वैधानिक=संवैधानिक।
- अनुवंश : यह अनु+वंश से मिलकर बना है। अगर पहले हिस्से में परिवर्तन करते हैं तो परिणाम निकलेगा – आनु+वंशिक=आनुवंशिक। दूसरे हिस्से में परिवर्तन करते हैं तो बनता है – अनु+वांशिक=अनुवांशिक।
निष्कर्ष यह कि दो शब्दों या उपसर्ग वाले शब्दों के अंत में ‘इक’ लगने पर दो तरह के शब्द बन सकते हैं।
- यदि पूरे शब्द (अध्यात्म, प्रशासन, संविधान आदि) के बाद ‘इक’ लगाते हैं तो शुरुआती वर्ण पर प्रभाव पड़ेगा। बनेंगे आध्यात्मिक, प्राशासनिक, सांविधानिक आदि)।
- यदि दूसरे हिस्से (आत्म, शासन, विधान आदि) के अंत में ‘इक’ जोड़ने से हुए उसके रूप परिवर्तन (आत्मिक, शासनिक, वैधानिक आदि) से पहले कोई शब्द या उपसर्ग (अधि, प्र, सम् आदि) लगाते हैं तो शुरुआती वर्ण ज्यों-का-त्यों रहेगा। बनेंगे अध्यात्मिक, प्रशासनिक, संवैधानिक।
अब प्रश्न यह कि जब ऐसे शब्दों के दो रूप बन सकते हैं तो इस्तेमाल कौनसा करें। जवाब – जो चला, सो भला। चूँकि आध्यात्मिक, प्रशासनिक और संवैधानिक शब्द बहुत अधिक चलते हैं, सो उन्हीं का इस्तेमाल किया जाए।