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हिंदी क्लास

क्लास 12 – आई या आयी, गई या गयी, नई या नयी?

पहले से आगाह कर दूँ कि इस क्लास में आपको कोई साफ़-साफ़ जवाब नहीं मिलेगा कि ‘आई’ और ‘गई’ लिखना सही है या ‘आयी’ और ‘गयी’। लेकिन मुझे उम्मीद है कि इस क्लास के बाद आपमें से बहुत-से लोगों की परेशानी समाप्त हो जाएगी जो इस सवाल से कई सालों से उलझन में हैं।

सबसे पहले मैं उन शब्दों की छोटी-सी लिस्ट सामने रख देता हूँ जिनको लेकर संदेह है।

  1. गई या गयी, गए या गये, आई या आयी, आए या आये, आएँगे या आयेंगे, जाएँगे या जायेंगे, हुए या हुये, रोए या रोये, करवाई या करवायी, नयी या नई, किराये या किराए, रुपये या रुपए आदि।
  2. दीजिए या दीजिये, कीजिए या कीजिये, लीजिए या लीजिये, पीजिए या पीजिये, करिए या करिये, चाहिए या चाहिये, धराशायी या धराशाई, दुखदाई या दुखदायी, आदि।
  3. शुभकामनाएँ या शुभकामनायें, बलाएँ या बलायें, भाषाएँ या भाषायें, दुविधाएँ या दुविधायें आदि।

ऊपर की तीन सूचियों में से पहली दो सूचियाँ उन शब्दों की हैं जिनमें क्रियाएँ हैं, विशेषण हैं, संज्ञाएँ हैं और अव्यय भी हैं और जिनको व्याकरण की किताबों में अलग-अलग तरह से डील किया जाता है। लेकिन मैं व्याकरण के हिसाब से इनके बारे में नहीं बताऊँगा (उसके लिए भाई योगेंद्रनाथ मिश्र हैं) क्योंकि उनको समझाना और समझना सबके लिए मुश्किल होगा। मेरी क्लासें व्याकरण की क्लासें कम, सहूलियत की क्लासें ज़्यादा हैं।

तीसरी सूची उन शब्दों की है जो बहुवचन बनाने पर बनते हैं। इनके बारे में मैं अंत में बताऊँगा।

इऩ शब्दों के दो-दो रूप क्यों?

सबसे पहले तो आप यह जान लें कि इन शब्दों को लेकर यह चक्कर शुरू क्यों हुआ कि इसके दो-दो रूप प्रचलित हो गए। वजह यह कि कुछ शब्द थे जो व्याकरण के हिसाब से ‘यी’ अथवा ‘ये’ से अंत होते थे लेकिन जब उनको बोलते थे तो जो ध्वनि निकलती थी, वह ‘ई’ या ‘ए’ से मिलती थी। जैसे आप बोलिए – प्रज्ञा कल चली गयी। ‘गयी’ ही बोलिए, ‘गई’ नहीं। क्या आप आसानी से बोल पा रहे हैं? क्या बोलने में असुविधा नहीं हो रही?

हो रही होगी। शब्दों के इस रूप को श्रुतिरूप कहते हैं जहाँ लिखने में उनकी स्पेलिंग अलग होती है मगर बोलते समय अलग ध्वनि निकलती है। यही वजह है कि नयी दिल्ली नई दिल्ली हो गया और सभी अख़बारवाले अपने मास्टहेड पर और डेटलाइन में यही लिखने लगे। स्थिति यहाँ तक आ गई है कि मैं इस पोस्ट में नयी लिख रहा हूँ तो माइक्रोसॉफ्ट वर्ड का स्पेलचेकर उसे ग़लत बता रहा है जबकि नयी किसी भी दृष्टि से ग़लत नहीं है।

हल नं. एक – ‘या’री है ईमान मेरा

तो पहला हल जो व्याकरण के हिसाब से बिल्कुल सही है, वह यह कि जिन शब्दों के पुल्लिंग एकवचन रूप में ‘या’ चलता हो, उनके स्त्रीलिंग रूपों में यी चलाएँ और जिनमें पुल्लिंग रूप में आ चलता है, उनके स्त्रीलिंग रूप में ई चलाएँ। इस हिसाब से आयी (क्योंकि पु. में आया), गयी (क्योंकि पु. में गया), नयी (क्योंकि पु. में नया), रोयी (क्योंकि पु. में रोया) और करवायी (क्योंकि पु. में करवाया) लिखा जाएगा। हम आआ या गआ तो कभी लिखते नहीं हैं, सो इस नियम से आयी-गयी समेत कई शब्दों के मामले में दुविधा ख़त्म हो जाएगी। इससे ‘हुयी लिखें या हुई’ यह सवाल भी हल हो जाएगा क्योंकि पुल्लिंग में हुआ लिखते हैं, सो स्त्रीलिंग में हुई होगा, हुयी नहीं।

इसके बाद आता है बाक़ी शब्दों का मामला जिनके पुल्लिंग एकवचन रूप या तो हैं ही नहीं या उनसे कोई अंदाज़ा नहीं लगता। जैसे जाएँगे/जायेंगे का सवाल इस नियम से हल नहीं होगा क्योंकि आप पुल्लिंग एकवचन में वह जाएगा भी लिखा पाते हैं और वह जायेगा भी। लीजिए-लीजिये और आइए-आइये जैसे शब्दों का हल भी इससे नहीं निकलता क्योंकि इनका अलग से कोई पुल्लिंग एकवचन रूप है ही नहीं। स्त्री को भी लीजिए/लीजिये कहेंगे और पुरुष को भी लीजिए/लीजिये कहेंगे। लेकिन चूँकि आपने सूची नंबर 1 में ‘य’ को पूरी तरह से अपनाया है, सो मेरी सलाह है कि इनमें भी ‘य’ को अपना लें। टंटा ही ख़त्म। हर जगह य लगाएँ (हुयी को छोड़कर) – दीजिये, पीजिये, चाहिये, करिये, दुखदायी, धराशायी आदि। जैसा कि मैंने कहा, ये सारे शब्द व्याकरण की दृष्टि से फ़िट हैं सो कोई आपको टोक नहीं सकता कि आप इनको ऐसे क्यों लिख रहे हैं।

लेकिन यह आप तभी कर सकते हैं जब आप अपनी मन-मर्ज़ी के राजा हों, अपना ब्लॉग लिखते हों या फ़ेसबुक पर पोस्ट लिखते हों या फिर किसी अख़बार या वेबसाइट के संपादक हों जहाँ आप जो कहें, वही नियम है।

हल नं. 2 – ‘ए’ भाई, यही सोचकर लिखो

यदि आप किसी टीम में काम करते हैं और वहाँ नयी दिल्ली को नई दिल्ली लिखा जा रहा है तो आप अपनी ‘य’ से यारी वहाँ नहीं चला सकते। सो वहाँ के लिए मैं दूसरा नियम बताता हूँ। हर जगह ई या ए चलाएँ (जैसा कि मैं करता हूँ)। लिखिए आई, गई, जाएँ, खाएँ, लीजिए, पीजिए, करिए। कोई अगर कहे कि शब्दकोश में तो यह शब्द नहीं हैं तो उनको बताइए कि सुनने में तो यही आता है और चूँकि हिंदी में जो लिखा जाता है, वही बोला जाता है और जो बोला जाता है, वही लिखा जाता है, इसलिए ई और ए लिखना ही ठीक है। यहाँ चूँकि हर जगह ई और ए लिखना है इसलिए आपकी दुविधा हमेशा के लिए ख़त्म।

बस इतना ध्यान रहे कि नयी दिल्ली की जगह नई दिल्ली लिखने के चक्कर में आप हर हिंदी शब्द में ‘यि’ या ‘यी’ को ‘इ’ या ‘ई’ न कर दें कि कल किसी वेबसाइट में मुझे नायिका की जगह नाइका लिखा देखने को मिले। ध्यान दीजिए, यह प्रयोग केवल ‘अंतिम अक्षर’ या जाएँगे, पीएँगे जैसी क्रियाओं में ‘बीच के अक्षर’ तक सीमित रखें। संज्ञा शब्दों को छेड़ने की कोशिश न करें नहीं तो कोई सीमा ही नहीं रहेगी कि किन-किन शब्दों को बदलेंगे।

हल नं. 3 – ‘ईयी’जुली सरकार

इन दो अतियों (यानी सभी में ये/यी और सभी में ए/ई) के बीच का भी एक रास्ता है जिसे हम मध्यमार्गी रास्ता कह सकते हैं। राजनीतिक भाषा में मिलीजुली सरकार। हल यह है कि आप उन सभी शब्दों में जिनके एकवचन पुल्लिंग रूप में ‘या’ है, उनके स्त्रीलिंग या अन्य रूपों में ‘ये’ और ‘यी’ ही रखें। बाक़ी शब्दों में ‘ई’ या ‘ए’ चलाएँ। इससे ‘लिए’ (for) और ‘लिये’ (took) का झगड़ा भी सुलझ जाएगा और संज्ञा-विशेषण कुछ समझने का पचड़ा भी नहीं रहेगा।

जैसे नया (विशेषण) का स्त्रीलिंग नयी, लिया (क्रिया) का बहुवचन लिये (स्त्रीलिंग में लियी मत लिख दीजिएगा), किराया (संज्ञा) का एकारांत रूप किराये। इनके अलावा दीजिए, कीजिए, आइए, जाइए, चाहिए आदि में जिनका कोई आकारांत पुल्लिंग रूप नहीं नज़र आता, उनमें बेहिचक ए लिखिए। दुखदायक होता है, सो दुखदायी लिखें। नायक होता है सो नायिका लिखें। शायिका शयन की रिश्तेदार है तो शायिका ही होगा। लेकिन इसके लिए आपको कोई शब्द कैसे बना, किससे बना, यह जानकारी होनी ज़रूरी है।

आप कहेंगे, मैंने तो तीन-तीन तरीक़े बता दिए लेकिन किसी एक को सही नहीं ठहराया। तो उसका कारण यह कि मैं उत्तरी कोरिया का शासक तो हूँ नहीं कि जो मैं कहूँगा, कल से सब उसी को मान लेंगे। इसलिए मैंने तीनों तरीक़े बताए – यी/ये वाला भी और ई/ए वाला भी और यी/ई/ये/ए वाला भी।

साहिर लुधियानवी की लिखी एक क़व्वाली याद आ रही है – ये मस्जिद है, वो बुतख़ाना, मक़सद तो है दिल को समझाना, चाहे ये मानो, चाहे वो मानो। आज की क्लास के लिए मैंने इसमें थोड़ा-सा फेरबदल किया है। मेरा कहना है – किसी एक नियम को अपना लो, उसे अपने ज़ेहन में बिठला दो, चाहे ‘ये’ मानो, चाहे ‘ए’ मानो।

रामचंद्र परमहंस भी कह गए हैं – जोतो मोत, तोतो पथ (जितने मत, उतने पथ)। सो आप कोई भी रास्ता अपनाएँ, किसी भी तरह से इन शब्दों को लिखें, उनके अर्थ में कोई अंतर नहीं आनेवाला है। गयी लिखें या गई, मतलब तो वही रहेगा। लेकिन आपके दिमाग़ में यदि कोई ख़ाक़ा होगा तो आपको हर शब्द पर माथापच्ची नहीं करनी होगी और यही मेरी क्लास का पहला और आख़िरी मक़सद है।

हाँ, अगर आप पूछें कि मेरा पसंदीदा ऑप्शन कौनसा है (हालाँकि मैं उसे फ़िलहाल अपना नहीं रहा क्योंकि मैं भी ज़माने के साथ चलने में भरोसा करता हूँ) तो मैं कहता तीसरा। मुझे ‘गया’ को देखते हुए ‘गयी’ लिखने में कहीं गड़बड़ी नज़र नहीं आती, बल्कि सुविधाजनक लगता है। अब रहा यह तर्क कि हम ‘गयी’ नहीं, ‘गई’ बोलते हैं सो ‘गई’ लिखा जाना चाहिए तो फिर कहाँ-कहाँ और किस-किस शब्द को बदलेंगे? फिर तो हिंदी में जहाँ-जहाँ ‘यि’ या ‘यी’ है, उन सब शब्दों में ‘इ’ या ‘ई’ करना होगा जैसे नाइका, शाइका, धराशाई, दुखदाई।

अब बात तीसरी सूची की जिसमें बहुवचन वाले शब्द हैं। तो उसके बारे में मैं अपनी पिछली क्लास में बता चुका हूँ लेकिन यहाँ फिर से बता देता हूँ। बहुवचन में ‘याँ’ अथवा ‘यों’ केवल उन शब्दों में आएगा जो

  1. इ-ईकारांत हैं यानी जिनके अंत में छोटी इ या बड़ी ई की मात्रा है।
  2. जिन शब्दों के अंत में ही य (कोई भी लिंग) अथवा या (केवल पुल्लिंग शब्दों में) है।
  3. बाक़ी सबमें ‘एँ’ या ‘ओं’ ही आएगा।

उदाहरण देख लें।

इ या ई की मात्रा से अंत होने वाले शब्द : खिलाड़ी से खिलाड़ियों, लड़की से लड़कियाँ और लड़कियों, कवि से कवियों, बधाई से बधाइयाँ और बधाइयों।

य से अंत होने वाले सभी शब्द अथवा या से अंत होने वाले पुल्लिंग शब्द : गाय (स्त्री.) से गायों, कर्तव्य (पु.) से कर्तव्यों, गवैया (पु.) से गवैयों।

लेकिन हत्या (स्त्री.) से हत्यों या हत्यायों नहीं क्योंकि हत्या स्त्रीलिंग है। (ऊपर लिखा फिर से पढ़ें – या से अंत होनेवाले केवल पुल्लिंग शब्दों में बहुवचन में यों लगेगा, स्त्रीलिंग में नहीं)। कुछ और शब्द खुद ही सोचकर आज़मा लें, समझ पक्की हो जाएगी।अब बाक़ी शब्द देखें। शुभकामना (स्त्री.) से शुभकामनाएँ, कला (स्त्री.) से कलाएँ, हत्या (स्त्री.) से हत्याएँ और हत्याओं, देवता (पु.) से देवताओं, राजा (पु.) से राजाओं, गऊ (स्त्री.) से गउओं, डाकू (पु.) से डाकुओं। सभी में एँ या ओं है।

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