हड़ताल शब्द तो आपने सुना ही होगा और इसका मतलब क्या है, यह भी आप जानते होंगे। लेकिन यह शब्द बना कैसे? हड़ का क्या मतलब है और ताल का क्या अर्थ है? क्या इसका हड़काने से कोई संबंध है? क्या इसका हड़कंप से कुछ लेना-देना है? या किसी और ही शब्द का बिगड़ा या बदला हुआ रूप है हड़ताल? जानने के लिए आगे पढ़ें।
पिछली शब्दपहेली के लिए होंठ और होट पर रिसर्च करते हुए मेरी नज़र हड़ताल पर पड़ी और मुझे पता चला कि हड़ताल शब्द किससे बना है। आज मैं वही जानकारी आपके साथ शेयर करने वाला हूँ।
हड़ताल शब्द हड़ और ताल से नहीं बना है जैसा कि पहली नज़र में लगता है। यह बना है हट्ट और ताल से। हट्ट संस्कृत का शब्द है जिसका मतलब है हाट या बाज़ार और ताल का मतलब है ताला।
जब टैक्स में बढ़ोतरी या किसी और कारण से अपनी नाराज़गी जताते हुए दुकानदार अपनी दुकानें या कामकाज बंद कर दें तो उस अवस्था को हट (हाट)+ताल (ताला) नाम दिया गया (देखें चित्र)। आगे चलकर यह हड़ताल हो गया।
हटताल अकेला ऐसा शब्द नहीं है जिसमें मूल शब्द का ‘ट’ आगे चलकर ‘ड़’ में बदल गया हो। ऐसे और भी कई शब्द हैं जिनमें से कुछ शब्द नीचे पेश हैं।
- भाटक से भाड़ा
- भाट से भाँड़
- वट ये बड़
- वटी से बड़ी
- कटु से कड़ुआ/कड़वा
- कटाह से कड़ाह
- घट से घड़ा
- घटी से घड़ी
- कटक से कड़ा
- जटा से जड़
- वाटिका से बाड़ी
- घोटक से घोड़ा
एक शब्द खड़ाऊँ भी है जिसके बारे में शब्दसागर के कोशकार का अनुमान है कि यह खटखट से बना होगा, यानी उस ध्वनि से जो खड़ाऊँ पहनकर चलने से होती है (देखें चित्र)।
ऊपर के इन तमाम शब्दों में ‘ट’ की ध्वनि ‘ड़’ में क्यों बदली, इसके बारे में मैं पक्के तौर पर कुछ नहीं कह सकता। समझ में केवल यह आता है कि स्पर्श वर्णों के पाँचों वर्ग (कवर्ग से पवर्ग तक) में अक्सर पहली ध्वनि तीसरी ध्वनि में बदल जाती है। जैसे काक का काग, भक्त का भगत, प्रकट का प्रगट। तकनीकी भाषा में कहें तो हर वर्ग की अघोष/अल्पप्राण ध्वनि के सघोष/अल्पप्राण ध्वनि में बदलने की प्रवृत्ति दिखाई देती है।
इसी क्रम में टवर्ग की अघोष/अल्पप्राण ध्वनि ‘ट’ उसी वर्ग की सघोष/अल्पप्राण ध्वनि ‘ड’ में बदल जाती है। मगर यह परिवर्तन केवल ‘ड’ तक नहीं रुकता, वह आगे ‘ड़’ तक जाता है। मसलन घोटक से पहले घोडा (प्राकृत) बना, उसके बाद वह घोड़ा बना। यही बात संभवतः बाक़ी शब्दों के मामले में भी है।