मुहम्मद रफ़ी के वह मशहूर गीत आपने ज़रूर सुना होगा – जहाँ डाल-डाल पर सोने की चिड़िया करती है बसेरा। इस गीत के शुरू में यह गुरुस्तुति है – गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरः गुरु साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवै नमः। इसमें अंत में जो नमः है, रफ़ी साहब ने उसका उच्चारण नम्ह (नम्+ह) की तरह किया है जबकि कई लोग इसे नमह्(न+मह्) बोलते हैं। आख़िर क्या बोलना सही है – नम्ह या नमह? आइए, जानते हैं।
नमः के उच्चारण पर जब मैंने फ़ेसबुक पोल किया दो बिल्कुल विपरीत परिणाम आए। हिंदी कविता पर 58% नमह् (न+मह्) के पक्ष में थे तो मेरे प्रोफ़ाइल पर किए गए पोल में उससे कुछ ज़्यादा 64% – लोग दूसरे विकल्प यानी नम्ह (नम्+ह) के पक्ष में दिखे। आप समझ सकते हैं कि इसके उच्चारण पर कितना मतभेद है।
नमः का सही उच्चारण क्या है, इसका दो तरह से पता लगाया जा सकता है। एक शब्दकोश से, दूसरा व्याकरण से। पहले व्याकरण से पता करते हैं।
व्याकरण के रास्ते यह पता लगाना बहुत ही आसान है अगर आप नमः में लगे विसर्ग (दो बिंदियों) का उच्चारण जानते हों। विचार केवल यह करना है कि विसर्ग का उच्चारण ‘ह्’ है या ‘ह’ यानी ह की ध्वनि के साथ स्वर (ह्+अ) लगा हुआ है या नहीं। अगर स्वर नहीं है तो उसका उच्चारण नमह् (न+मह्) होगा, और अगर स्वर है तो उसका उच्चारण हिंदी की प्रकृति के अनुसार नम्ह (नम्+ह) और संस्कृत की प्रकृति के अनुसार नमह (न+म+ह) होगा।
लेकिन विसर्ग का उच्चारण समझने के लिए सबसे पहले यह जानना ज़रूरी है कि विसर्ग है क्या। स्कूल में जो हिंदी व्याकरण पढ़ा था (अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अः), उसके हिसाब से मैं यही समझता था कि अनुस्वार और विसर्ग स्वर हैं। लेकिन आगे जाकर पता चला कि विसर्ग (और अनुस्वार) तो व्यंजन हैं मगर कुछ अंतर के साथ (देखें चित्र)। अंतर यह कि बाक़ी व्यंजन ध्वनियों के उच्चारण में स्वर उनके बाद लगता है (क्+अ=क) लेकिन विसर्ग (और अनुस्वार) के मामले में स्वर पहले लगता है (अ+:=अ:)।
एक वाक्य में कहूँ तो विसर्ग के उच्चारण के लिए उससे ‘पहले कोई स्वर’ होना चाहिए, जबकि बाक़ी व्यंजन ध्वनियों में उनके ‘बाद’। यानी नमः में आए विसर्ग के साथ यदि कोई स्वर होगा तो वह विसर्ग से पहले (म् में लगा अ) ही होगा, बाद में नहीं।
जब नमः के विसर्ग के बाद कोई स्वर नहीं है तो वह ध्वनि ह् ही हो सकती है, ह (ह्+अ) नहीं। यानी उच्चारण होगा – नमह् (न+मह्)।
इसी बात को शब्दकोश से भी समझा जा सकता है। वैसे आप्टे के संस्कृत कोश में नमः नहीं है। वहाँ नमस् है जिसका एक रूप है नमः। इस कोश से नमः का उच्चारण समझने का कोई उपाय नहीं है। लेकिन हिंदी शब्दसागर में इसके उच्चारण को आसानी से समझा जा सकता है। इसमें नमः का रोमन लिप्यंतर किया गया है – namaḥ (देखें चित्र)। यहाँ h के बाद कोई vowel यानी स्वर नहीं है। तो साफ़ है कि उच्चारण नमह् ही है, नम्ह नहीं।
आज हमने विसर्ग के उच्चारण पर बात की मगर विसर्ग के इस्तेमाल को लेकर भी काफ़ी भ्रम है। जैसे मृतप्राय या मृतप्रायः, पुनश्च या पुनश्चः, आयुष्मान भवः या भव? इन तीनों पर पहले चर्चा हो चुकी है। अगर आप पढ़ना चाहें तो नीचे दिए गए लिंकों पर क्लिक या टैप करें।