Categories
आलिम सर की हिंदी क्लास शुद्ध-अशुद्ध

165. दर्शक का अर्थ देखने वाला, दिखाने वाला या दोनों?

दर्शक का अर्थ क्या है? देखने वाला या दिखाने वाला? आप सोचेंगे, यह क्या सवाल हुआ? हर कोई जानता है कि दर्शक का अर्थ होता है देखने वाला। मगर मेरा प्रश्न है कि यदि दर्शक का अर्थ केवल देखने वाला है तो फिर संस्कृत और हिंदी के शब्दकोशों में उसका अर्थ दिखाने वाला भी क्यों लिखा हुआ है? इस चर्चा में जानिए, कब दर्शक का अर्थ दिखाने वाला होता है।

जैसा कि ऊपर लिखा है, हर कोई जानता है कि दर्शक का अर्थ ‘देखने वाला’ होता है। जैसे लेखक का अर्थ होता है ‘लिखने वाला’, गायक का अर्थ होता है ‘गाने वाला’, पाठक का अर्थ होता है ‘पढ़ने वाला’। लेकिन दर्शक बाक़ी शब्दों से इस नाते अलग है कि इसका अर्थ ‘दिखाने वाला’ भी होता है जबकि लेखक, गायक और पाठक का अर्थ लिखवाने वाला, पढ़वाने वाला और गवाने वाला नहीं होता (देखें चित्र)।

संस्कृत कोश में दर्शक का अर्थ।
हिंदी शब्दसागर में दर्शक का अर्थ।

अब प्रश्न उठता है कि भले ही शब्दकोशों में इसका अर्थ ‘दिखाने वाला’ दिया गया हो मगर क्या हम इस अर्थ में दर्शक का प्रयोग कभी करते हैं। इसका जवाब यह है कि दर्शक जब अकेले आता है तो उसका अर्थ ‘देखने वाला’ ही होता है लेकिन अगर वह समास के तौर पर यानी किसी और शब्द के साथ जुड़कर आता है तो उसका अर्थ ‘दिखाने वाला’ हो जाता है जैसे मार्गदर्शक या पथप्रदर्शक।

मार्गदर्शक में दर्शक का अर्थ क्या है? क्या मार्ग देखने वाला या दिखाने वाला? इसी तरह पथ(प्र)दर्शक का मतलब क्या है? निश्चित रूप से पथ दिखाने वाला, न कि पथ देखने वाला।

यानी हिंदी में हम दर्शक का दोनों अर्थों में प्रयोग करते हैं – देखने वाला और दिखाने वाला।

चलिए, दर्शक के दोनों अर्थ हैं, यह तो समझ में आ गया। मगर यह समझ में नहीं आया कि आख़िर ऐसा क्यों है। जब गायक, लेखक या पाठक के दो-दो अर्थ नहीं होते तो दर्शक के दो अर्थ क्यों?

जवाब के लिए मैंने अपने एक वॉट्सऐप ग्रूप में यह सवाल डाला तो वहाँ संस्कृत के विद्वानों ने जो बताया और मैं जो थोड़ा-बहुत समझ पाया, वह नीचे प्रस्तुत है।

1. दृश् (देखना) धातु के साथ ण्वुल् प्रत्यय लगने से दर्शक बनता है और उसका अर्थ होता है देखने वाला।

2. उसी दृश् धातु के साथ जब प्रेरणार्थक णिच् और ण्वुल प्रत्यय जुड़ते हैं तो भी दर्शक शब्द ही बनता है मगर तब उसका अर्थ हो जाता है दिखाने वाला।

अब ये ण्वुल् और णिच् प्रत्यय मेरे सिर के ऊपर से गुज़र गए लेकिन नेट से सर्च करके जो पढ़ा, उससे पता चला कि किसी धातु के साथ ण्वुल् प्रत्यय जुड़ने से जो शब्द बनता है, उसके अंत में ‘अक’ वाली ध्वनि आती है। जैसे नायक, लेखक, पाठक आदि। इसी कारण दृश् में ण्वुल् प्रत्यय जुड़ने से दर्शक बना। 

अब रहा णिच् प्रत्यय का मामला तो यह प्रत्यय प्रेरणार्थक क्रिया (जब कोई काम किसी और से करवाया जाए) बनाने में लगता है और उससे बनने वाली क्रियाओं के अंत में ‘इ’ ध्वनि आती है।

मगर दर्शक में तो कहीं ‘इ’ ध्वनि है नहीं। तो इसके बारे में पता चला कि पाणिनि सूत्र णेरनिटि से णिच् (यानी इ ध्वनि) का लोप हो जाता है। 

संक्षेप में – 

दृश्+ण्वुल्=दर्शक (देखने वाला)

दृश्+णिच्+ण्वुल्=दर्शक (दिखाने वाला)

दोनों स्थितियों में दर्शक रूप ही बनता है। इसीलिए इसके दो अर्थ है।

ऐसे और कितने शब्द हैं हिंदी में, मुझे नहीं मालूम। एक ‘शेष’ शब्द याद आ रहा है जिसके दो विपरीत अर्थ हैं – 1. समाप्त या अंतिम और 2. बचा हुआ। उदाहरण – उनके जाने के बाद सबकुछ शेष (समाप्त) हो गया। अब केवल उनकी स्मृतियाँ शेष (बची हुई) हैं।

अंग्रेज़ी में ऐसे शब्दों को Contronym कहते हैं। उसमें ऐसे बीसियों शब्द हैं। मसलन Cleave, Oversight, Dust, Apology, Left आदि। और शब्द देखने के लिए यहाँ क्लिक या टैप करें।

पसंद आया हो तो हमें फ़ॉलो और शेयर करें

अपनी टिप्पणी लिखें

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Social media & sharing icons powered by UltimatelySocial