एक ऐसा जंगल जहाँ पशु बिना भय के विचरण कर सकें, उसे क्या कहते हैं – अभयारण्य या अभ्यारण्य? इसका जवाब आप स्वयं दे सकते हैं अगर आप सोचें कि यह शब्द कैसे बना होगा। नहीं समझ में आए तो आगे पढ़ें।
जब मैं अभयारण्य और अभ्यारण्य पर पोल करने का विचार कर रहा था तो ज़रा पसोपेश में था। मुझे मालूम था कि कुछ लोग अभयारण्य को ग़लती से अभ्यारण्य लिखते हैं लेकिन यह नहीं पता था कि ऐसा लिखनेवाले लोग बहुमत में होंगे।
ग़लत जानकारी रखनेवालों की बहुतायत का पता इससे भी चलता है कि देश की सभी बड़ी वेबसाइटों में यह ग़लत शब्द चल रहा है – चाहे वह जागरण हो, भास्कर हो, अमर उजाला हो या नवभारत टाइम्स जहाँ मैं कभी संपादक के तौर पर काम करता था।
हमारे पोल में कुल 58 प्रतिशत ने ‘अभ्यारण्य’ को सही बताया, तो शायद इसीलिए कि तमाम बड़ी-बड़ी वेबसाइटों पर यह ग़लत स्पेलिंग चल रही है और वे वहाँ से ग़लत सीख रहे हैं। दूसरे, हिंदी के बड़े और प्रामाणिक शब्दकोशों में यह शब्द मिलता ही नहीं। हो सकता है, कई लोगों ने शब्दकोशों में खोजा हो और उनको ऐसा कोई शब्द मिला ही नहीं हो।
लेकिन मेरे हिसाब से इस शब्द का सही रूप जानने के लिए आपको शब्दकोश देखने की ज़रूरत ही नहीं है। कोई एक बार भी शब्द के भीतर झाँक ले तो सही शब्द मालूम कर सकता है।
यह तक तो आप समझ ही गए होंगे कि सही शब्द है ‘अभयारण्य’। यह शब्द दो शब्दों की संधि से बना है – अभय और अरण्य। अभय का अर्थ तो आप समझते ही हैं – अ+भय यानी बिना भय के और अरण्य का अर्थ है जंगल। यानी एक ऐसा जंगल जिसमें पशु-पक्षी बिना भय के रह सकें, वह है अभयारण्य। पशु-पक्षी बिना भय के चिड़ियाघर में भी रहते हैं लेकिन वहाँ जालियों में रहना होता है और वह खुले जंगल जैसा वातावरण नहीं होता।
हर भाषा में ऐसे हज़ारों शब्द होते हैं जो दो या अधिक शब्दों से मिलकर बने होते हैं और यदि आप ऐसे शब्दों के भीतर झाँकेंगे तो सही वर्तनी का पता आसानी से लगा पाएँगे। आख़िर ‘अभ्य’ तो कोई शब्द होता नहीं है। शब्द है ‘अभय’ और यह ध्यान आते ही किसी को भी मालूम हो जाएगा कि सही शब्द अभयारण्य है।
शब्दों के भीतर झाँकने और थोड़ा सोच-विचार करने से कैसे सही शब्द तक पहुँचा जा सकता है, इसका एक उदाहरण देता हूँ। जब मैं संपादक था और टीम के सदस्यों का चयन करता था तो उनको ऐसे दस वाक्य देता था जिनमें भाषाई ग़लतियाँ भरी रहती थीं और उनको उन्हें पकड़ना और ठीक करना होता था। इनमें ये दो शब्द मैं ज़रूर डालता था — रस्में और क़स्में। जो सही शब्द जानते थे, वे कस्में को क़समें कर देते थे। जो नहीं जानते थे, वे रहने देते थे।
इसमें उनकी ग़लती नहीं थी क्योंकि क़समें और रस्में बोलने में एक-जैसे हैं। मैं कॉपी चेक करने के बाद उनको बुलाता और पूछता, ‘आपने क़स्में को सही बताया है लेकिन इसका एकवचन क्या होता है?’ वे बताते, ‘क़सम।‘ मैं उनसे कहता, ‘लिखकर बताएँ कि क़सम का बहुवचन क्या होगा?’ वे लिखते, ‘क़समें’। ‘तो फिर क़स्में को क्यों ठीक नहीं किया,’ मेरा अगला सवाल होता, और फिर उनको वह ज्ञान देता जो आज यहाँ दे रहा हूँ कि थोड़ा-सा सोचने से हम सही स्पेलिंग तक पहुँच सकते हैं।
शब्दों पर संदेह करना सीखें
लेकिन यह तभी होगा जब आप शब्दों पर संदेह करना सीखेंगे। जो आप जानते हैं, क्या सब सही जानते हैं – सबसे पहले यह सवाल ख़ुद से करना होगा। और फिर हर शब्द को ख़ुद ही परखना होगा उस तरीक़े से जो मैंने बताया। नहीं पता चले तो शब्दकोश में देखना होगा।
एक उदाहरण देता हूँ हिमालय का। यह एक पहाड़ का नाम है। लेकिन सोचिए, हिमालय नाम कैसे पड़ा। शब्द को तोड़िए – हिम और आलय। हिम का अर्थ बर्फ़, आलय का अर्थ घर। बर्फ़ का घर – हिमालय।
ज़ाहिर है, हर शब्द को आप नहीं तोड़ पाएँगे। कुछ शब्द तो मूल शब्द हैं जैसे मैं अपने कमरे में बैठा आसपास देख पा रहा हूँ — पुस्तक, टेबल, लाइट, पंखा, चादर, अलमारी, लैपटॉप, क़लम, बिस्तर, तकिया, चाय का कप। ये सब आपको याद रखने पड़ेंगे। लेकिन इन्हीं में से कुछ ऐसे हैं जिनसे और शब्द भी बनते हैं। पुस्तकालय (पुस्तक+आलय), टेबल लैंप, लाइटर या लाइटिंग, क़लमदान (क़लम+दान), हमबिस्तर (हम+बिस्तर)।
पुस्तकालय में मौजूद आलय का अर्थ हमने ऊपर डिस्कस किया। ज़रा क़लमदान पर ग़ौर फ़रामाएँ। यहाँ दान का क्या अर्थ है? यह हिंदीवाला दान नहीं है जिसका अर्थ है डोनेशन। यह उर्दूवाला दान है जिसका एक अर्थ है जानकार (क़द्रदान या क़द्रदाँ) और दूसरा अर्थ है रखने की जगह। क़लम रखने की जगह यानी क़लमदान। शमा रखने की जगह शमादान।
इसी तरह हमबिस्तर पर विचार करें। हिंदी में ‘हम’ है ‘मैं’ का बहुवचन। लेकिन यह फ़ारसी का ‘हम’ है जिसका अर्थ है समान। हमबिस्तर का अर्थ हुआ जिनका समान बिस्तर हो यानी जो साथ सोते हों। इसी ‘हम’ से न जाने कितने शब्द बनते हैं – हमजोली, हमशक्ल, हमप्याला, हमसफ़र, हमदर्द, हमउम्र। अगर आपको एक बार ‘हम’ का अर्थ पता चल गया तो आप इन सारे शब्दों का अर्थ ख़ुद ही जान जाएँगे और इनको लिखने में भी ग़लती नहीं करेंगे।जाते-जाते दो शब्द देता हूँ – किंकर्तव्यविमूढ़ और सिंहावलोकन। इस शब्दों के भीतर झाँकें और नीचे कॉमेंट में बताएँ कि आपको क्या दिखा।