कुछ दिन पहले मैंने एक मशहूर कवि के फ़ेसबुक पेज पर यह लिखा देखा – तुम्हें जाना हो तो/ उस तरह जाना/ जैसे गहरी नींद में/ देह से प्राण जाता है (देखें चित्र)। मुझे पढ़कर कुछ खटका। प्राण जाता है या प्राण जाते हैं? बाद में इसके बारे में फ़ेसबुक पर पोल भी किया जिसमें 95% ने कहा – प्राण जाते हैं। क्या वे सही हैं? अगर हाँ तो प्राण का इस्तेमाल बहुवचन जैसा क्यों किया जाता है? आज की चर्चा इसी पर।
यह सही है कि हिंदी में प्राण का प्रयोग बहुवचन जैसा होता है। उसकी जान निकल गई, यह तो सही है मगर उसका प्राण निकल गया यह सही नहीं है। लिखा जाएगा – उसके प्राण निकल गए। हिंदी शब्दसागर और संस्कृत के कोश में भी इसका उल्लेख है (देखें चित्र)।
ऐसा क्यों होता है, इसका संकेत भी मुझे संस्कृत कोश में ही मिला। उसमें लिखा है कि जीवन आधार के रूप में प्राण पाँच प्रकार के माने गए हैं – प्राण, अपान, समान, व्यान और उदान। इसी कारण इसका प्रयोग बहुवचन में होता है।
हिंदी और संस्कृत के अलावा दूसरी भाषाओं में भी क्या प्राण का बहुवचन के तौर पर प्रयोग होता है, यह मुझे नहीं मालूम। जैसे तुलसीदास की चौपाई के ये दो चरण याद आ रहे हैं –
अब यहाँ ‘जाहुँ’ एकवचन में है या बहुवचन में, यह अवधी के जानकार ही बता सकते हैं। आपमें से कोई यदि अवधी के जानकार हों तो कृपया स्पष्ट करें।
प्राण के अलावा कुछ-एक और शब्द हैं जिनका प्रयोग हमेशा बहुवचन सरीखा होता है। मुझे दो शब्द – हस्ताक्षर और दर्शन याद आ रहे हैं जिनका प्रयोग मैंने हमेशा बहुवचन में सुना-पढ़ा है। जैसे क्या आपने हस्ताक्षर कर दिए हैं? सौभाग्य से भगवान के बहुत अच्छे दर्शन हुए।
कुछ और शब्द हैं जिनका दोनों रूपों में प्रयोग चलता है। जैसे दाम, होश, भाग्य, हाल। कुछ उदाहरण देखें।
- इस ब्रेड का क्या दाम है?
- पेट्रोल के दाम बढ़ गए।
- मरीज़ को होश आ गया है।
- पुलिस को देखते ही उसके होश उड़ गए।
- देखें, मेरा भाग्य मुझे कहाँ ले जाता है।
- शादी के बाद उसके भाग्य जाग गए।
- क्या हाल है अब बेटी का?
- मंत्री बनने के बाद नेताजी के हाल सुधर गए हैं।
ऊपर मैंने दाम शब्द का उदाहरण दिया है। यह दाम शब्द एक मशहूर नीति सूत्र का हिस्सा है। लेकिन वह दाम है या दान? इसपर हम पहले चर्चा कर चुके हैं। अगर आपसे वह चर्चा मिस हो गई हो तो पढ़ें।