सवाल उर्दू का शब्द है, अरबी के सुआल से बना है। उर्दू में इसका बहुवचन बनता है सवालात। इसी तरह ख़याल का बहुवचन है ख़यालात। तो क्या हिंदी में सवाल और ख़याल का बहुवचन सवालात और ख़यालात किया जाए या हिंदी के हिसाब से सवाल और ख़याल ही रखा जाए? इस क्लास में इन्हीं मुद्दों का जवाब देने की कोशिश की गई है।
आगे बढ़ने से पहले एक क़िस्सा सुनाना चाहता हूँ जो मैंने सालों पहले सुना था। एक सज्जन थे जिन्हें उर्दू थोड़ी कम आती थी लेकिन शायरी सुनने-सुनाने का शौक़ बहुत था। एक शे’र उन्होंने कहीं पढ़ा था –
मेरा जनाज़ा निकला, साथ उसके सारा ज़माना निकला, लेकिन वो नहीं निकला, जिसके लिए मेरा जनाज़ा निकला
उन्होंने इसे याद कर लिया और अगली बार जब दोस्तों की महफ़िल जमी तो उन्होंने अपनी तरफ़ से यह शे’र पेश कर दिया। गड़बड़ी बस यह हो गई कि उनको जनाज़ा शब्द याद नहीं रहा। उन्होंने जो शे’र पढ़ा, वह इस तरह था –
मेरा ज़नाना निकला, साथ उसके सारा ज़माना निकला, लेकिन वो नहीं निकला, जिसके लिए मेरा ज़नाना निकला
हँसी आई? नहीं आई? जिनको हँसी नहीं आई, उनको लगता है, ज़नाना का अर्थ नहीं मालूम। ज़नाना का वास्तविक अर्थ तो होता है स्त्रियों का, स्त्री-संबंधी जैसे ज़नाना डिब्बा (लेडीज़ कोच) लेकिन पूर्वी भारत में ज़नाना शब्द पत्नी के लिए इस्तेमाल होता है। इसका यह अर्थ लेंगे, तभी ऊपर के शे’र का आनंद आएगा।
यह लतीफ़ा मैंने आपको क्यों सुनाया? इसलिए कि आज हम उर्दू शब्दों की बात करेंगे और जानेंगे कि उर्दू के बहुवचन शब्दों को हिंदी में कैसे लिखा जाए। क्या वैसे ही जैसे उर्दू या अरबी-फ़ारसी में लिखा-बोला जाता है या वैसा जैसा कि हिंदी का व्याकरण कहता है? जैसे ज़नाना शब्द को लें। इसका मूल शब्द है ज़न जिसका मतलब है स्त्री या पत्नी और बहुवचन है ज़नाँ या ज़नान। लेकिन प्रश्न यह है कि क्या हमें हिंदी में औरतों के लिए ज़नान शब्द का इस्तेमाल करना चाहिए।
ज़न और ज़नान तो हिंदी में वैसे भी इस्तेमाल नहीं होते लेकिन कुछ शब्द ऐसे हैं जो बहुत प्रचलित हैं। जैसे अफ़सरान जो है अफ़सर का बहुवचन या ख़यालात जो है ख़याल का बहुवचन।
आगे बढ़ने से पहले थोड़ा ज्ञान ले लें कि उर्दू-फ़ारसी-अरबी में शब्दों के बहुवचन कैसे बनाए जाते हैं। मैं यहां कोई लंबे-चौड़े नियम-क़ायदे नहीं बताऊँगा, बस कुछ उदाहरण दूँगा जिनसे आपको कुछ अंदाज़ा हो जाए। इन उदाहरणों में मैंने इऩ शब्दों के हिंदी में प्रचलित रूप लिए हैं, न कि अरबी-फ़ारसी के मूल रूप और यह बताने की कोशिश की है कि अगर हम उनको अरबी-फ़ारसी के हिसाब से बहुवचन बनाएँ तो क्या बनेगा। आप देखेंगे कि कुछ मामलों में शब्द के पीछे -आन, -आत आदि लग रहा है तो कुछ में आगे-पीछे दोनों जगह बदलाव देखने को मिल रहे हैं।
- शब्द के बाद -आन। उदा. अफ़सर से अफ़सरान, साहब से साहबान।
- शब्द के बाद -ईन। उदा. मुसलिम से मुसलमीन, हाज़िर से हाज़रीन।
- शब्द के बाद -आत। उदा. सवाल से सवालात, जज़्बा से जज़्बात।
- शब्द में व्यापक परिवर्तन। उदा. शेर से अशआर, हाकिम से हुक्काम, मसला से मसाइल।
अब मुद्दा यह कि यदि हमें हिंदी में मसला का बहुवचन करना है तो क्या हम मसाइल लिखेंगे या मसले लिखेंगे। इसी तरह जब ख़याल (या ख़्याल) का बहुवचन करना है तो ख्यालों/ख़यालों लिखेंगे या ख़्यालात/ख़यालात लिखेंगे?
इस मामले में शुद्धतावादी उर्दू-फ़ारसी-अरबी शब्दों को हूबहू लेने की वकालत करेंगे तो सुगमतावादी आसानी का पक्ष लेंगे। और आसानी तो इसी में है कि शब्द चाहे जिस किसी भाषा से आया है, जब वह हिंदी में चल रहा है तो हिंदी का व्याकरण ही उसपर लागू होना चाहिए।
आइए, इसे अंग्रेज़ी के उदाहरणों से समझाता हूँ। स्कूल शब्द अंग्रेज़ी से आया और हिंदी में रच-बस गया है। अब यदि हमें लिखना हो — ‘कल शहर के सारे स्कूल बंद रहेंगे’, तो क्या हम ‘…स्कूल बंद रहेंगे’ लिखेंगे या ‘…स्कूल्ज़ बंद रहेंगे’ लिखेंगे? इसी तरह ‘दूसरे और चौथे शनिवारों को बैंकों में छुट्टी रहती है’, यह लिखेंगे या ‘…बैंक्स में छुट्टी रहती है’, यह लिखेंगे? भई, अंग्रेज़ी के ग्रैमर के मुताबिक़ तो स्कूल (school) का बहुवचन स्कूल्ज़ (schools) होना चाहिए और बैंक (bank) का बैंक्स (banks)। लेकिन ऐसा हम नहीं करते और इससे हमें कोई दिक़्क़त भी नहीं है।
इसी तरह इंग्लिश में भी जो हिंदी शब्द गए हैं जैसे चपाती (chapatti) तो वे इसका बहुवचन करते समय चपातियाँ नहीं बोलते होंगे कि Give me two chapattiyan। वे कहते होंगे – Give me two chapattis क्योंकि उनके व्याकरण में बहुवचन बनाने के लिए शब्द के बाद -s या -es लगाया जाता है।
इन मिसालों के बाद निष्कर्ष यही निकला कि हमें अंग्रेज़ी के शब्दों की तरह ही उर्दू-फ़ारसी-अरबी से आए शब्दों का बहुवचन भी अपने हिसाब से करना चाहिए। मसला का मसले, ख़्याल का ख़्यालों, शे’र का शे’रों।
लेकिन कुछ मामलों में समस्या आ जाती है। जैसे जज़्बात। एकवचन है जज़्बा (अरबी – जज़्बः)। बहुवचन है जज़्बात। लेकिन कई लोग ऐसे प्रयोग भी करते हैं – ‘अपने जज़्बातों को क़ाबू में रखो’। अब यह तो बहुवचन का भी बहुवचन हो गया। इसी तरह काग़ज़ात। शब्द है काग़ज़। बहुवचन है काग़ज़ात। यदि कहें कि ‘क्या तुमने सारे काग़ज़ातों पर नज़र मार ली है?’ तो यहाँ भी बहुवचन का बहुवचन यानी डबल बहुवचन हो जाएगा।
मेरे हिसाब से जब हम काग़ज़ात और जज़्बात का इस्तेमाल करें तो याद रखें कि ये ख़ुद में ही बहुवचन हैं और इनका और बहुवचन नहीं करें। आप ध्यान दीजिए, हम ‘अपना जज़्बात सँभालो’ नहीं कहते; कहते हैं — अपने जज़्बात सँभालो (यानी जज़्बात का बहुवचन के रूप में इस्तेमाल करते है)। इसी तरह कहते हैं – ‘मेरे काग़ज़ात पूरे हो गए हैं’। साफ़-साफ़ काग़ज़ात बहुवचन दिख रहा है।
ऐसा ही एक शब्द है वारदात (मूल शब्द वारिदात)। अरबी में यह बहुवचन है मगर हिंदी-उर्दू में एकवचन। उदा. ‘चौक में कल रात एक भयंकर वारदात हो गई।’ यहाँ वारदात शब्द का इस्तेमाल एकवचन के तौर पर हुआ है क्योंकि एक वारदात की बात हो रही है। इसलिए इसका बहुवचन करते समय वारदातें और वारदातों लिखा जा सकता है।
जाते-जाते याद आया, उर्दू का एक शब्द है जवाहरात (आपने सुना होगा – हीरे-जवाहरात)। अब बताइए, यह एकवचन है या बहुवचन। ऊपर की क्लास ध्यान से पढ़ी होगी और समझी होगी तो लपककर बोलेंगे, बहुवचन क्योंकि इसके आख़िर में -आत लगा है। गुड! तो अब यह भी बता दीजिए कि जवाहरात का एकवचन क्या होगा। जवाहर/जवाहिर? नहीं! सच तो यह है कि जवाहर/जवाहिर ख़ुद बहुवचन है जिसका एकवचन शब्द है जौहर जिससे बनता है जौहरी। यानी जौहर (एकवचन) से बहुवचन बना जवाहिर (बहुवचन) लेकिन भाइयों ने उसका भी बहुवचन कर दिया जवाहरात (डबल बहुवचन)।