यदि आपको किसी कहानी या नाटक में ऊपर शीर्षक में दिया गया संवाद लिखना पड़े तो आप क्या लिखेंगे? हूँगा या होऊँगा? जब यही सवाल फ़ेसबुक पर रखा गया तो 82% के विशाल बहुमत ने ‘होऊँगा’ के पक्ष में राय दी। क्या वे सही हैं? अगर सही हैं तो क्या मुंशी प्रेमचंद और निराला जैसे लेखक ग़लत थे जिन्होंने अपनी रचनाओं में बीसियों जगह हूँगा लिखा है? आज की चर्चा इन्हीं दो शब्दों पर है। रुचि हो तो आगे पढ़ें।
हिंदी से अगर निर्जीव वस्तुओं के लिंग का मसला छोड़ दें तो यह भाषा बहुत ही आसान है। संज्ञा हो, सर्वनाम हो, विशेषण हो या क्रिया हो, सबके नियम बने हुए हैं कि कहाँ किसका रूप बदलेगा या नहीं बदलेगा और बदलेगा तो कैसे। मसलन चलना और लिखना को लें। चलना से भूतकाल में ‘चला‘ होता है तो लिखना से ‘लिखा‘ होता है – दोनों में धातु (चल और लिख) के बाद ‘आ‘ लग जाता है। इसी तरह भविष्यकाल में ‘मैं’ के साथ की क्रिया बनानी हो तो दोनों में ‘ऊँगा‘ जुड़ जाता है जैसे चलना से चलूँगा और लिखना से लिखूँगा। सिंपल है।
लेकिन कुछ क्रियाओं को इस पैटर्न से कुछ लेना-देना नहीं है। मसलन लेना और देना को ही लें। इनको भूतकाल में लिखना हो तो चला/लिखा की तरह इनका रूप लेआ/देआ नहीं होता। हो जाता है – लिया और दिया। इसी तरह ‘मैं’ के साथ भविष्यकाल का क्रियारूप बनाना हो तो चलूँगा/लिखूँगा की तरह लेऊँगा/देऊँगा नहीं होता, हो जाता है लूँगा और दूँगा।
कुछ ऐसा ही हाल ‘होना‘ क्रिया के मामले में भी है। अब सोना का एक भविष्यकालीन रूप है ‘सोएगा’ और धोना का ‘धोएगा’। लेकिन उससे मिलते-जुलते शब्द होना का भविष्यकालीन रूप ‘होएगा’ नहीं होता, होता है होगा यानी यहाँ धातु के बाद ‘ए‘ नहीं लगता। ‘मैं’ के साथ बनने वाली क्रिया का हाल तो और भी ग़ज़ब है। चलूँगा/लिखूँगा की तरह नियमतः उसमें भी ‘ऊँगा‘ जुड़ना चाहिए। लेकिन यह ऊँगा ‘हो‘ के साथ जुड़ेगा (होऊँगा) या ‘हूँ‘ के साथ जुड़ेगा (हूँगा), इसपर विवाद है। कुछ लोग होऊँगा लिखते हैं और कुछ लोग हूँगा। आज हम इसी पर बात करेंगे कि ‘मैं’ के साथ जब होना क्रिया लगेगी तो होऊँगा होगा या हूँगा।
लेकिन यह फ़ैसला करना उतना आसान नहीं है जितना बाक़ी शब्दों के मामले में होता है क्योंकि उनके मामले में हम शब्दकोशों की मदद लेकर बता सकते हैं – क्या सही है और क्या ग़लत। मगर यहाँ ‘होना’ क्रिया के उत्तमपुरुष (first person) एकवचन (singular) यानी ‘मैं’ के भविष्यकालीन (future tense) रूप का पता करना है और किसी भी शब्दकोश में हर क्रिया के वचन, काल, पुरुष के आधार पर अलग-अलग रूप नहीं दिए होते। इसलिए किसी शब्दकोश से सामान्यतः पता नहीं चल सकता कि इन दोनों में से कौनसा रूप सही और कौनसा ग़लत है। हाँ, व्याकरण इसमें मदद कर सकता है और यदि कामताप्रसाद गुरु के ‘हिंदी व्याकरण’ को जज बनाया जाए तो सही है ‘होऊँगा’।
गुरुजी ने अपने ग्रंथ में ऐसे कई उदाहरण दिए हैं और हर जगह ‘होऊँगा’ ही लिखा है, ‘हूँगा’ नहीं (देखें चित्र)।
तो क्या ‘हिंदी व्याकरण’ के आधार पर ‘होऊँगा’ के प्रयोग को सही मान लिया जाए और ‘हूँगा’ के प्रयोग को ग़लत? क्या तब भी जब नागरी प्रचारिणी सभा के हिंदी शब्दसागर ने अपने उदाहरण-वाक्यों में ‘हूँगा’ के प्रयोगों को सम्मानजनक स्थान दिया है?
जी हाँ! हिंदी शब्दसागर में भले ही एंट्री लेवल पर न ‘होऊँगा’ है, न ही ‘हूँगा’ लेकिन दूसरी प्रविष्टियों के साथ उदाहरण के तौर पर दिए गए ऐसे कई वाक्य हैं जिनमें दोनों का प्रयोग हुआ है। ‘होऊँगा’ भी और ‘हूँगा’ भी। नीचे ये वाक्य देखें।
ऊपर ‘हूँगा‘ के प्रयोग वाले जो तीन उदाहरण-वाक्य आप देख रहे हैं, उनमें से एक वाक्य हिंदी कथा जगत के महानायक और क़लम के सिपाही प्रेमचंद का लिखा हुआ है। वह वाक्य है – मैं बहुत ममनून हूँगा अगर आप इसपर अपनी राय फरमावें।
मैंने गूगल सर्च किया और मुझे ऐसे और उदाहरण मिले जिनमें मुंशी प्रेमचंद ने ‘हूँगा’ का ही प्रयोग किया है। नीचे दो वाक्य देखिए जो उनके उपन्यास ‘प्रेमाश्रम‘ और कहानी ‘रौशनी‘ से लिए गए हैं।
इनके अलावा जैनेंद्र कुमार, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला और मैथिलीशरण गुप्त जैसी साहित्यिक हस्तियों ने भी अपनी रचनाओं में ‘हूँगा’ का प्रयोग किया है। नीचे देखें निराला जी की एक कविता ‘शेष’ का हिस्सा।
अन्य साहित्यकारों की ऐसी कई रचनाएँ आपको इस लिंक पर मिल सकती हैं जहाँ ‘हूँगा’ का प्रयोग हुआ है। इनके अलावा भी ऐसी सैकड़ों रचनाएँ होंगी जिनमें लेखकों ने ‘हूँगा’ का प्रयोग किया है।
यह सही है कि ये सारे लेखक पिछली सदी के हैं और अब दिवंगत हो चुके हैं। लेकिन ऐसा नहीं है कि आज के लेखक ऐसा प्रयोग नहीं कर रहे। मशहूर फ़िल्मकार और शायर गुलज़ार की ग़ज़ल का यह शेर पढ़ें जिनमें ‘हूँगा’ का इस्तेमाल हुआ है।
नीचे पढ़ें पूरी ग़ज़ल।
कहने का अर्थ यह कि भले ही कामताप्रसाद गुरु ने अपनी किताब में ‘होऊँगा’ को सही बताया हो मगर उनके जीवनकाल में और उनके गुज़रने के बाद भी साहित्यजगत में ‘हूँगा’ का ख़ूब इस्तेमाल हुआ है। और वह भी नामी-गिरामी साहित्यकारों द्वारा। इसलिए इसे ग़लत ठहराना मुझे उचित नहीं लगता।
अब आती है बारी हमारे विश्लेषण की कि क्यों इस शब्द के दो-दो रूप चल रहे हैं। मेरा निवेदन है कि जिन पाठकों की इस विश्लेषण में रुचि नहीं हो, वे यहीं से विदा ले लें क्योंकि यह फ़ैसला तो हो ही गया है कि प्रचलन के आधार पर दोनों रूप सही ठहराए जा सकते हैं।
प्रचलन के अलावा अन्य किन आधारों पर मैं इन दोनों रूपों को सही मानता हूँ, यह जानने में जिनकी रुचि हो, वे अब आगे पढ़ें।
मेरे भाषामित्र योगेंद्रनाथ मिश्र से जब मैंने इस विषय में चर्चा की तो उन्होंने कहा कि वचन, पुरुष और काल के आधार पर किसी क्रिया के क्या-क्या रूप बनेंगे, यह उस क्रिया के धातु रूप से तय होता है। यह तो आपको मालूम ही होगा कि किसी क्रिया से ‘ना’ हटाने के बाद जो हिस्सा बचता है, वही उसका धातु है।
मिश्रजी से मिले इस आधारभूत ज्ञान के बाद मैंने हलका-सा रिसर्च किया और पाया कि किसी क्रिया का उत्तमपुरुष-एकवचन-भविष्यकालीन (मसलन मैं पढ़ूँगा) रूप तय करते समय तीन तरह की श्रेणियाँ बनती हैं।
1. पहली श्रेणी में वे धातु हैं जो एकाधिक वर्णों से निर्मित हैं और जिनके अंत में ‘अ‘ है जैसे चलना, हँसना, लिखना, पढ़ना, करना, जोड़ना, पलटना आदि। आप देखेंगे कि इन सभी धातुओं के अंत में ‘अ‘ है – चल, हँस, लिख, पढ़, कर, जोड़, पलट आदि।
2. दूसरी श्रेणी में वे धातु हैं जिनमें एक या एक से अधिक वर्ण हैं और इन सबमें अथवा इनके अंत में ‘अ’ के अलावा कोई अन्य स्वर है। मसलन आना, जाना, खाना, गाना, छाना, पाना, भाना, लाना, सताना, पीना, जीना, सीना, चूना, छूना, खेना, सेना, खोना, ढोना, धोना, बोना, रोना, सोना, होना।
3. तीसरी श्रेणी में केवल दो शब्द हैं – देना और लेना। इन्हें तीसरी श्रेणी में इसलिए रका गया है कि ये रूप में तो हैं तो दूसरी श्रेणी की क्रियाओं की तरह मगर इनका आचरण कुछ अलग है।
इन तीनों ही श्रेणियों की क्रियाओं का उत्तमपुरुष-एकवचन-भविष्यकालीन रूप बनाते समय धातु के अंत में ‘ऊँगा’ लग जाता है। अंतर बस यह है कि पहली श्रेणी के धातुओं में यह ‘ऊँगा’ मूल धातु के साथ एकाकार हो जाता है जैसे चल से चलूँगा, हँस से हँसूँगा जबकि दूसरी श्रेणी में धातुओं के बाद ‘ऊँगा’ अलग से दिखता है जैसे आऊँगा, पिऊँगा, सोऊँगा आदि।
तीसरी श्रेणी के दोनों शब्दों ‘लेना’ और ‘देना’ में एक अलग ही प्रक्रिया चलती है। इन दोनों क्रियाओं में भी यदि दूसरी श्रेणी का नियम चलता तो लेना से लेऊँगा और देना से देऊँगा होना चाहिए था, लेकिन यहाँ ये ‘लूँगा’ और ‘दूँगा’ हो जाते हैं। कहने का मतलब यह कि इन दोनों में जब ‘ऊँगा’ जुड़ता है तो ‘ले’ और ‘दे’ का रूप ही बदल जाता है जबकि बाक़ी श्रेणियों की क्रियाओं में धातु का रूप नहीं बदलता।
अब हम अपने मूल सवाल पर आते हैं जो ‘होना’ से जुड़ा है। ‘होना’ क्रिया दूसरी श्रेणी में आती है और इस श्रेणी के बाक़ी धातुओं की तरह इसमें अलग से ‘ऊँगा’ जुड़ना चाहिए। जब जुड़ेगा तो सोना/सोऊँगा, धोना/धोऊँगा की तरह होना चाहिए – होना/होऊँगा।
इस आधार पर हम कह सकते हैं कि होऊँगा ठीक है। शीर्षक वाक्य को लिखा जाएगा – कल कहाँ तुम होगी और कहाँ मैं होऊँगा!
लेकिन ‘हूँगा’ के पक्षधर मायूस न हों क्योंकि पिक्चर अभी बाक़ी है। दिलचस्प बात यह है कि हूँगा के पक्ष में सबसे बड़ा तर्क ऊपर दी गई उसी दलील से निकलता है जिस दलील के बल पर हमने होऊँगा को सही ठहराया है।
पॉइंट यह है कि अगर हम सोना/सोऊँगा, धोना/धोऊँगा की तर्ज़ पर होना/होऊँगा को सही बताते हैं तो इन्हीं क्रियाओं के अन्यपुरुष-एकवचन-भविष्यकालीन रूपों के आधार पर ‘होएगा’ को भी सही बताना होगा।
नहीं समझे? चलिए, समझाता हूँ। हम जानते हैं कि ‘सोना’ से ‘सोएगा’ और ‘धोना’ से ‘धोएगा’ होता है तो ‘होना’ से क्या होना चाहिए? ‘होएगा’! मगर क्या हम ‘होएगा’ लिखते या बोलते हैं? नहीं, हम तो लिखते हैं ‘होगा’। (वैसे कामताप्रसाद गुरु ने होवेगा को अपने ग्रंथ में जगह दी है)।
कहने का मतलब यह कि जब नियम की अवहेलना करते हुए ‘होएगा’ की जगह ‘होगा’ बन और चल सकता है तो उसी तरह ‘होऊँगा’ की जगह ‘हूँगा’ क्यों नहीं बन और चल सकता? ख़ासकर तब जब हमारे पास ‘लूँगा’ और ‘दूँगा’ के उदाहरण हैं। जिस तरह ‘लूँगा’ और ‘दूँगा’ बने, वैसे ही ‘हूँगा’ भी बन सकता है। कैसे, यह नीचे समझते हैं।
लेना और देना में ‘ए’ का स्वर ग़ायब हुआ और ‘ऊँगा’ जुड़ गया। बन गए ले-ए+ऊँगा=लूँगा और दे-ए+ऊँगा=दूँगा। इसी तरह होना से ‘ओ’ स्वर हट जाए और ‘ऊँगा’ जुड़ जाए तो बनेगा – हो-ओ+ऊँगा=हूँगा।
‘हूँगा’ के पक्ष में एक और तर्क ‘होना’ के उत्तमपुरुष-एकवचन-वर्तमानकालीन रूप से भी तैयार होता है। नीचे आप कुछ क्रियाओं के ऐसे वर्तमानकालीन और भविष्यकालीन रूप देखें और उनमें समानता खोजें।
- मैं लिखता हूँ, मैं कल भी लिखूँगा।
- मैं लड़ता हूँ, मैं कल भी लड़ूँगा।
- मैं जीता हूँ, मैं कल भी जिऊँगा।
आपने देखा कि इन तीनों मामलों में क्रिया के वर्तमानकालीन रूप से ‘ता’ हट रहा है और उनमें ‘ऊँगा’ जुड़ रहा है। अब देखें कि ‘होना’ का उत्तमपुरुष-एकवचन-वर्तमानकालीन रूप क्या है और उसमें ‘ऊँगा’ जुड़ने से क्या बनेगा।
होना का उत्तमपुरुष-एकवचन-वर्तमानकालीन रूप है – हूँ। वाक्य बनेगा – मैं हूँ।
अब इस ‘हूँ’ में ‘ऊँगा’ मिलाएँगे तो क्या बनेगा?
हूँ+ऊँगा=हूँगा। मैं हूँ, मैं कल भी हूँगा। क्या यह प्रयोग अटपटा लगता है? मुझे तो नहीं लगता।
आज की चर्चा बहुत लंबी हो गई। आपने यह लंबी चर्चा पढ़ते-पढ़ते यहाँ तक पहुँचे/पहुँची हैं तो आपके धैर्य और लगन की प्रशंसा तो करनी ही होगी हालाँकि मैं नहीं जानता कि मैं अपनी बात को ठीक से समझा पाया हूँ या नहीं। यदि अब भी कोई शंका हो तो नीचे टिप्पणी में लिखें।