बहुत साल पहले की बात है। फ़रीदाबाद में एक कॉलोनी में विमान गिर पड़ा। जब यह ख़बर आई तो हमारे फ़रीदाबाद रिपोर्टर ने अपने ब्यूरो इनचार्ज को फोन किया। घंटी बजी तो फ़ोन उठाया उनकी पत्नी ने। ब्यूरो इनचार्ज अपना मोबाइल घर पर ही भूल गए थे और थोड़ा दूर गए हुए थे खाने का कुछ सामान लाने। उस रोज़ रात का खाना बाहर से मँगाने का तय हुआ था।
पत्नी को जब पता चला कि इतना बड़ा हादसा हो गया है और पतिदेव करीब 7-8 किलोमीटर दूर रेस्तराँ से खाना लाने गए हैं तो वह सोच में पड़ गईं। वहाँ से आते-आते तो उनको देर हो जाएगी और उनको सूचना देने का भी कोई तरीका नहीं है। उन्होंने ज़्यादा नहीं सोचा, अपनी स्कूटी उठाई और निकल गईं रेस्तराँ की ओर ताकि पति को जल्द से जल्द सूचना मिल जाए और वह तुरंत स्पॉट तक पहुँच जाएँ।
पता नहीं, ब्यूरो इनचार्ज ने इस घटना को कैसे लिया होगा। क्या उन्होंने इसके लिए अपनी पत्नी को थैंक्स कहा होगा या इसे बीवी का फ़र्ज़ समझकर इग्नोर कर दिया होगा! लेकिन जब मुझे यह जानकारी मिली तो मेरी आँखों में ख़ुशी के आँसू आ गए। मुँह से निकला – वाह! और साथ ही कुछ पत्नियाँ और कुछ दृश्य आँखों के सामने नाच उठे।
याद आ गई बहुत पुरानी बात। मेरे एक मित्र थे जो अपने ग़ुस्से के लिए बदनाम थे और दो-एक जगह से इसी वजह से नौकरी से निकाले भी जा चुके थे। उनकी पत्नी जो शादी के बाद पटना रहती थीं, उन दिनों दिल्ली आई हुई थीं जहाँ उन्हें एक छोटे-मोटे स्कूल में लाइब्रेरियन की नौकरी मिली थी। दिल्ली आते ही उन्हें पता चला कि कि पतिदेव ने एक साल से मुझसे कुछ कर्ज़ ले रखा है। उन्होंने पहला लक्ष्य यह तय किया कि अपनी सैलरी से मेरा वह कर्ज़ अदा करें।
वह सुबह 5 बजे उठती थीं, अपने और पति के लिए खाना बनाती थीं, तैयार होती थीं और साढ़े 6 बजे के आसपास घर से निकल जाती थीं ताकि समय से स्कूल पहुँच सकें। लक्ष्मीनगर में 6×7 फ़ुट का छोटा-सा एक कमरा था जहाँ वे दोनों रहते थे।
मैं जब भी उनके घर जाता, उन्हें देखकर दंग रह जाता। चेहरे पर कभी भी कोई शिकायत नहीं, कभी मेरे या किसी और के सामने पति की शिकायत नहीं की। बाद के सालों में उनका पति दफ़्तर में मारपीट करने के कारण घर पर ख़ाली बैठ गया लेकिन वह पहले की तरह ही ख़ुश हैं। यह अलग बात है कि उनके पास अच्छी-खासी सरकारी नौकरी है और अच्छा-ख़ासा फ़्लैट है। बेटा आईआईटी में है।
ऐसी ही एक और महिला याद आती हैं। दिल्ली में मेरे कमरे के ऊपर वाले फ़्लैट में रहती थीं। हाउसवाइफ़ थीं – पति अकेला कमानेवाला। दो बच्चे जिनमें एक के साथ कुछ समस्या थी। लगातार इलाज की ज़रूरत रहती थी। लेकिन जब भी वह सामने होतीं, हमेशा चेहरे पर मुस्कान। कभी पैसों की तंगी का ज़िक्र नहीं किया। कभी उनके घर में कोई कमी भी नहीं दिखी। इतनी ही आमदनी और इतने ज्यादा ख़र्चों में भी एक घर तक ख़रीद लिया। हमेशा हँसती रहती थीं और जब अपने पति की बात करतीं, उनके चेहरे पर लज्जामिश्रित मुस्कान आ जाती।
अपनी बात कहूँ तो मुझे वह सीन कभी नहीं भूलता जब एक दिन मेरी पत्नी मेरा लंच बॉक्स लेकर दौड़ती-भागती-हाँफती बस स्टॉप तक आई थी। तब मैं गुड़गाँव ऑफ़िस में काम करता था। वहाँ कैंटीन का खाना मुझे सूट नहीं करता था और पत्नी ने तय किया था कि वह सुबह उठकर खाना बना दिया करेगी।
हमारी स्टाफ़ बस सवा सात तक स्टॉप पर आ जाती थी और मैं कोशिश करता था कि 7:10 तक स्टॉप पर पहुँच जाऊँ ताकि बस न छूट जाए। उस दिन मैं हड़बड़ी में लंच बॉक्स भूल गया। वापस लौटता तो बस मिस हो जाती और फिर मुझे कार से 40 किलोमीटर जाना पड़ता। मैंने सोचा – चलो, कैंटीन में ही खा लेंगे। तभी देखा – पत्नी घर की तरफ़ से दौड़ती हुई आ रही है। फ़िल्मों में कई सीन देखे हैं जब हीरो-हेरोइन एक-दूसरे की तरफ बाँहें फैलाए दौड़े चले आ रहे हैं। लेकिन यह दृश्य उन सारे दृश्यों से ज्यादा रोमैंटिक था। वह सड़क के बीच के डिवाइडर तक आई और रेलिंग के उस पार से हाँफते हुए लंच बॉक्स मेरे हाथों में थमाया। मैंने उसकी आँखों में देखा जिसमें थोड़ी-सी शिकायत और ढेर सारा प्यार था। लेकिन वह मेरी आँखों में आए आँसू नहीं देख पाई क्योंकि उसे लौटकर बाक़ी काम भी निबटाना था।
ऐसी ही होती हैं पत्नियाँ – अपने ऊपर सारे घर की ज़िम्मेदारी लिए हुए। सबकुछ सँभाले हुए – पति, बच्चे और कभी-कभी तो नौकरी और दफ़्तर भी। ये मधुबाला या ऐश्वर्या राय जैसी सुंदर नहीं होतीं लेकिन अगर कोई मन से देखे तो इनसे सुंदर कोई महिला भी नहीं होगी। ये अपने पति को कभी ‘आइ लव यू’ भी नहीं कहतीं लेकिन हर रोज़, हर पल अपनी चिंता, अपने काम से वह यही बात तो कहती रहती हैं।
लेकिन हममें से कितने लोग उनका यह अनकहा ‘आइ लव यू’ सुनते हैं? कितने लोग जवाब में एक प्यारी-सी स्माइल देते हैं और अपना दिल उनके पैरों में रख देते हैं?