चंद्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी ‘उसने कहा था’ में लहना सिंह को आजीवन याद रहता है कि किशोरावस्था में वह जिस लड़की को ‘तेरी कुड़माई हो गई’ कहकर छेड़ा करता था, उसने सालों बाद मिलने पर क्या वचन माँगा था। लहना सिंह अपनी जान देकर भी उस वचन को निभाता है। मेरी किशोरावस्था में भी ‘उसने कहा था’ वाला क्षण आया था। लेकिन उसने मुझसे कोई वचन नहीं माँगा था बल्कि बहुत ही शिकायती लहजे में कहा था – तुम तो बहुत गिरे हुए निकले, नीरेंद्र। बरसों-बरस कैसे मैं इस कलंक को ढोता रहा और फिर कैसे उसी लड़की की बदौलत इस कलंक से मुक्त हुआ, इसकी रोचक दास्तान आज के ब्लॉग में है। रुचि हो तो पढ़ें।
आठवीं कक्षा की बात है। लड़के-लड़कियों का एक समूह ख़ाली पीरियड में गपशप कर रहा था जिसमें वह भी थी और मैं भी था। अचानक उसने कहा, ‘ये अंग्रेज़ लोग प्रेम करते हैं तो गिर क्यों जाते हैं?’
सब चौंके। अंग्रेज़ आख़िर प्रेम करते वक़्त गिरेंगे क्यों? हम सब दिमाग़ दौड़ाने लगे। जब एकाध मिनट तक किसी को कोई जवाब नहीं सूझा तो उसने ख़ुद ही पहेली सुलझाते हुए कहा, ‘अंग्रेज़ी में कहते हैं न – to FALL in love. यानी प्यार मे गिरना…’ वह मुस्कुरा रही थी।
सब हँस पड़े। ज़ाहिर था कि वह मज़ाक़ कर रही थी।
लेकिन क्या वह वाक़ई मज़ाक़ कर रही थी? कहीं वह सच में तो ऐसा नहीं मानती थी कि जो प्यार करते हैं, वे गिर जाते हैं, पतित हो जाते हैं?
इस प्रश्न का जवाब मुझे क़रीब तीन साल बाद मिला जब मैंने एक चिट्ठी लिखकर उसे बताया कि मैं तुमसे प्यार करता हूँ… दिन भर तुम्हारे बारे में सोचता रहता हूँ… तुम्हारी तस्वीर को देख-देखकर कविताएँ लिखता हूँ… तुम्हें भविष्य में अपना जीवनसाथी बनाना चाहता हूँ…
और उसने जवाब में केवल एक लाइन कही – तुम तो बहुत ‘गिरे हुए’ लड़के निकले, नीरेंद्र!
उसके नाम का खुलासा मैं यहाँ नहीं करूंगा लेकिन पहचान के लिए उसका नाम रख लेते हैं समिता। समिता क्लास की, और मुझे तो लगता था कि दुनिया की सबसे सुंदर लड़की थी। दुबली-पतली, पढ़ने में सबसे तेज़। मेरे पास ही बैठती थी। हममें प्रतिस्पर्धा चलती थी कि कौन अव्वल आता है। मेरी आवाज़ की दीवानी थी। फ़रमाइश करके अपना पसंदीदा गाना गवाती थी और बाक़ी लड़के इसीलिए मुझसे जलते भी थे। मुझे लगता था कि वह भी मुझे पसंद करती है लेकिन तीन साल तक कुछ कहने की हिम्मत नहीं पड़ी।
क्लास 10 के बाद हम अलग हो गए। उससे मिलना बंद हो गया। लेकिन मेरे ख़्यालों में उसका आना बंद नहीं हुआ। एक दिन मैं अपने एक राज़दार दोस्त के साथ हमारी कॉमन फ्रेंड मेधा के घर गया और उसे अपना प्रेमपत्र थमा दिया। पत्र पढ़कर वह केवल मुस्कुराई। बोली, ‘मैं उसे दे दूँगी।’
मेरे घर में तब फ़ोन नहीं था। दोस्त ने ही कुछ दिन बाद मेधा को फ़ोन किया। पूछा, ‘मैं अपने दोस्त को क्या जवाब दूँ?’ वह बोली, ‘तुम्हारे दोस्त को कभी जवाब नहीं मिलेगा।’ ज़्यादा कुरेदने पर उसने कहा, ‘समिता बोली कि मैं तो उसे अपने भाई जैसा समझती थी…’
शॉक लगना ही था। लगा। लेकिन मेरे दोस्त ने हिम्मत नही हारी। उसने एक दिन समिता को डायरेक्ट फ़ोन किया। कहा, ‘मैं नीरेंद्र का दोस्त बोल रहा हूँ। हम उसे स्कूल की तरफ से कुछ फ़ाइनैंशल ज़िम्मेदारी सौंप रहे हैं। आप उसके साथ पढ़ी हैं तो हम आपसे उसके बारे में राय जानना चाहते हैं।’
पहले तो वह टालती रही। फिर बोली, ‘नीरेंद्र तो बहुत ही गिरा हुआ लड़का निकला। आश्चर्य की बात है कि उसने मुझे लव लेटर लिखा…’
गिरा हुआ लड़का? क्योंकि मैंने उससे प्यार करने का अपराध किया था? I had FALLEN in love with her – इसलिए? इतने सालों तक मैं उसे अच्छा लड़का लगता रहा। तब तक अच्छा लगता रहा जब तक मैंने उसे लव लेटर नहीं लिखा। लिख दिया तो गिर गया। बाक़ी सहपाठी उसके बारे में जाने क्या-क्या बातें करते थे लेकिन वे अच्छे लड़के थे क्योंकि उन्होंने अपना राज़ राज़ ही रखा। मैंने उसके सामने दिल खोल दिया तो मैं पतित हो गया!
साल-दर-साल मैं यह कलंक का धब्बा लेकर जीता रहा। कई बार मन किया कि उससे यह सवाल पूछूँ कि क्या प्यार करने से आदमी गिर जाता है। मगर मौक़ा नहीं मिला।
बीच में ख़बर मिली कि उसने सांसारिक जीवन छोड़ दिया है और ऋषिकेष के स्वामी रामसुखदास जी की शरण में चली गई है। उन्हीं की टोली के साथ जगह-जगह जाती है। कभी-कभार कोलकाता में अपने घर पर भी आ जाती है। मैं भी नियमित रूप से कोलकाता जाता था लेकिन मेरे पास न उसका टेलीफ़ोन नंबर था न मेधा का। मेधा अपना पुराना घर भी बदल चुकी थी।
पंद्रह साल बाद कहीं से मुझे मेधा का नंबर मिला। उससे बात की। उसने पूछा, ‘समिता से बात हुई?’ मैंने कहा, ‘नहीं।’ उसने मुझे समिता का नंबर दिया। तब मोबाइल नहीं हुआ करते थे। लैंडलाइन नंबर ही था।
मैंने धड़कते दिन से नंबर लगाया। फ़ोन उसके पिताजी ने उठाया। मैंने पूछा, ‘समिता से बात हो सकती है?’ ‘आप कौन बोल रहे हैं?’ उन्होंने जानना चाहा। मैंने कहा, ‘नीरेंद्र नागर। हम लोग स्कूल में साथ पढ़े थे।’ उन्होंने समिता को बुलाया।
‘जय श्रीराम,’ उधर से आवाज़ आई।
‘मैं नीरेंद्र बोल रहा हूँ। नीरेंद्र नागर…’
उसे याद नहीं आया। पूछा, ‘नागर जी?’
‘नीरेंद्र नागर। हम लोग स्कूल में साथ पढ़े थे, मेधा ने तुम्हारा नंबर दिया…’ अब यह तो मैं कह नहीं सकता था कि मै वही हूँ जिसने कभी तुम्हें लव लेटर लिखा था।
‘अच्छा, नरेंद्र????’ उसे जैसे याद आया। पूछा, ‘कैसे हो? क्या कर रहे हो?’
नरेंद्र शब्द खटका मुझे… यानी वह मेरा सही नाम भी भूल गई थी।
मैंने कहा, ‘नवभारत टाइम्स में हूँ, दिल्ली में…’
‘अच्छा, अख़बार में हो? अख़बार वाले तो सब झूठ ही लिखते हैं…’
वे राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद वाले दिन थे जब सभी हिंदुत्ववादियों को अख़बारवाले दुश्मन ही नज़र आते थे। समिता भी उन्हीं में थी।
मैंने यह सुनने के लिए फ़ोन नहीं किया था। सोचता था, कुछ पुराने दिनों की बातें करेंगे। मगर वह तो शायद दूसरी ही दुनिया की हो गई थी। वह शायद यह भी भूल चुकी थी कि मैंने उसे कभी प्रेमपत्र लिखा था।
बाद में मेधा से उसके घर पर बात हुई। समिता को लेकर वह चिंतित थी। बोली, जब उसके माता-पिता नहीं रहेंगे तो उसका क्या होगा? मैंने उसे प्रस्ताव दिया कि मैं समिता से शादी करने को तैयार हूँ। वह यह सुनकर ख़ुश हुई। बोली, ‘उसे तुमसे अच्छा पति नहीं मिलेगा। मैं उससे और उसके माता-पिता से बात करती हूँ।’
लेकिन जैसा कि बाद में पता चला, वह तैयार नहीं हुई।
मैंने फिर डायरेक्ट अप्रोच लगाया। दिल्ली पहुँचकर उसे फ़ोन किया। कहा, ‘मेधा ने कोई बात की होगी।’ उसने कहा, ‘हाँ। मुझे अच्छा लगा कि तुम ऐसा सोचते हो। लेकिन मैंने तो दीक्षा ले ली है। मेरे लिए दैहिक संबंध वर्जित है। मैं किसी से विवाह नहीं कर सकती।’
मैंने कहा, ‘मैं तैयार हूँ। मैं कोई शारीरिक संबंध नहीं रखूँगा। मैं बस यही चाहता हूँ कि तुम मेरे साथ रहो।’
उसने कहा, ’अगर तुम्हारा मन है कि मैं तुम्हारे साथ रहूँ तो ऐसा करो कि पहले तुम शादी कर लो। फिर मैं तुम्हारे साथ रह लूँगी।’
बड़ा विचित्र प्रस्ताव था। साफ़ था कि वह शालीन तरीके से ‘ना’ कह रही थी। बात वहीं ख़त्म हो गई।
लेकिन उसकी यह बात सुनने के बाद मेरे मन की वह पीड़ा भी ख़त्म हो गई। मुझे विश्वास हो गया कि समिता की नज़रों में अब मैं एक ‘गिरा हुआ’ लड़का नहीं हूँ। मेरे लिए यही काफ़ी था।
यह लेख 18 नवंबर 2009 को नवभारत टाइम्स के एकला चलो ब्लॉग सेक्शन में प्रकाशित हुआ था। यह लेख उसका संशोधित रूप है।