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एकला चलो

छोड़कर जाने वाली प्रेमिका को दिल से कहें – थैंक यू

अगर आपकी प्रेमिका आपको किसी दिन टाटा-बाइ-बाइ बोल दे तो आप क्या करेंगे? क्या आप उसकी जान ले लेंगे जैसा कुछ लोग करते हैं? या उसके साथ-साथ अपनी भी जान दे देंगे जैसा कुछ और लोग करते हैं? या उसकी अंतरंग तस्वीरें जो कभी उसने आपके लिए खींची या खिंचवाई थीं, उनको सोशल मीडिया पर शेयर करके अपना प्रतिशोध लेंगे? या फिर ऐसा कुछ भी न करते हुए शरीफ़ों की तरह उसपर बेवफ़ा का लेबल चिपकाकर ज़िंदगी भर उससे नफ़रत करते रहेंगे? 

अगर मेरे बारे में पूछें तो मैं ऐसा कुछ नहीं करूँगा। बल्कि जाते-जाते उसे थैंक यू कहूँगा उन तमाम लमहों के लिए जो उसने मेरे साथ गुज़ारे।

यह इसलिए कि मेरा मानना है कि यह जो नॉन-कमिटमंट है, जिसके कारण कोई किसी को बीच में ही छोड़कर चला जाता है, वही किसी भी प्यार – खासकर रोमैंटिक प्यार – की सबसे बड़ी ख़ूबी है। जैसे डाली पर उगा हुआ फूल यह कमिटमंट नहीं देता कि वह हमेशा खिला रहेगा या हमेशा ख़ुशबू बिखेरता रहेगा, वैसे ही रूमानी प्यार भी इस शर्त से बँधा नहीं होता कि हमेशा क़ायम रहेगा। मगर दोनों का असर एक-सा है – जादुई और स्वप्निल। इसकी तुलना आप प्लास्टिक के फूलों से करके देखिए – जो हमेशा बने रहते हैं लेकिन क्या वे वैसा आनंद देते हैं जैसा कि डाली पर उगा हुआ फूल देता है?

इस प्यार का सीधा-सा फ़ॉर्म्युला है – कोई आपको अच्छा लगता है और आप भी उसे अच्छे लगते हैं – और प्यार हो जाता है। इस प्यार का आधार कोई ख़ून का रिश्ता नहीं है, कोई सात फेरे नहीं हैं, कोई रोज़गार की मजबूरी नहीं है, इसलिए यही सबसे ईमानदार और सच्चा प्यार है। यह प्यार माँगता नहीं है कि तुम मेरी पत्नी हो इसलिए मुझे प्यार करो या तुम मेरे बेटे हो इसलिए मेरी सेवा करो या तुम मेरे भाई हो इसलिए मेरा साथ दो। इस प्यार में भी लेना-देना होता है मगर यह बिना माँगे होता है इसलिए इसका नशा सबसे ज़्यादा होता है।

लेकिन यह नशा कई बार उतर भी जाता है – कभी सात दिन में, कभी सात महीनों में और कभी सात साल में। नशा उतरने के तीन मुख्य कारण होते हैं। एक तो यह कि शुरू में जो इंसान बहुत अच्छा लगता था, आगे जाकर उसकी कमियाँ सामने आ जाती हैं और वह उतना अच्छा नहीं लगता। दूसरा यह कि जो प्यार बिना कमिटमंट के शुरू हुआ था, उसमें कमिटमंट की माँग होने लगे, शर्तें लादी जाने लगें – इससे मत मिलो, ऐसा मत करो, यह मत पहनो। और तीसरा, दुनियावी कारणों से किसी को अपना प्यार छोड़ना पड़े जैसे छोटी बहन की शादी में बाधा, घरवालों या समाज का दबाव या एक सुखी-समृद्ध जीवन की चाह।

कारण चाहे जो हों, मेरा मानना है कि जो सफ़र बिना किसी कमिटमंट के शुरू हुआ था, उसमें किसी भी साथी को किसी भी स्टेशन पर उतरने का हक़ है। जो प्रेमिका इसी जन्म के लिए नहीं, बल्कि अगले सभी जन्मों के लिए आपको पाने की प्रार्थना अपने भगवान से कर चुकी हो, वह भी अगर एक दिन कहे कि आपका मेरे जीवन में अब कोई स्थान नहीं रहा तो आप कहें – नो प्रॉब्लम। बल्कि अतीत में जितने भी पल या घंटे या दिन उसने आपके साथ बाँटे, उसके लिए उसे धन्यवाद दें क्योंकि वे पल आपकी और उसकी ज़िंदगी के सबसे ख़ुशनुमा पल थे। हाँ, उससे उसके फ़ैसले का कारण ज़रूर पूछें। अगर वह कहे कि आप पहले जैसे नहीं रहे तो आप विश्लेषण करें कि आपमें क्या नकारात्मक बदलाव आए जो उसे दुखी और नाराज़ कर गया – इस हद तक कि उसने आपको छोड़ने का फ़ैसला कर लिया। आपका विश्लेषण भविष्य में आपके काम आएगा। अगर वह अपनी कोई मजबूरी बताए तो उस मजबूरी को समझें और उसे अपने रास्ते जाने दें। लेकिन भूले से भी उस पर दबाव न डालें कि वह आपको प्यार करती रहे क्योंकि प्यार ज़िंदगी की तरह होता है – वह या तो होता है या फिर नहीं होता। जैसे इंसान मर जाए तो आप उसको ज़िंदा नहीं कर सकते, उसी तरह किसी के मन से अगर आपके प्रति प्यार ख़त्म जाए तो आप उसे फिर से जीवित नहीं कर सकते।

वही फूल वाली मिसाल फिर से देता हूं। प्यार का फूल जब मुरझा जाए तो उसको खिलाने की कोशिश छोड़ दें। चाहें तो उस मुरझाए फूल को सहेजकर अपनी किसी डायरी में दबा दें जैसे राजेश खन्ना ने ‘आनंद’ फिल्म में किया था। वहाँ वह हमेशा रहेगा – आपकी यादों की तरह।

एक और रास्ता है – किसी और फूल के खिलने का इंतज़ार करें। लेकिन याद रखिए – यह फूल भी किसी दिन मुरझा सकता है। अगर फूलों के मुरझाने और उसकी पीड़ा से बचना ही चाहते हैं तो एक तीसरा रास्ता भी है – शादी कर लें। प्लास्टिक के ये फूल ज़िंदगी भर आपका साथ देंगे, हाँ, समय-समय पर उन्हें धोना-पोंछना पड़ेगा। ये फूल सुंदर भी होंगे, पर्मानंट भी लेकिन इसमें वह सुगंध कभी नहीं होगी जो डाली में लगे फूल में थी।

यह लेख 25 अक्टूबर 2009 को नवभारत टाइम्स के एकला चलो ब्लॉग सेक्शन में प्रकाशित हुआ था। यह लेख उसका संशोधित रूप है।

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