Categories
एकला चलो

शादी से पूर्व शारीरिक संबंध, न जुर्म है, न चारित्रिक पतन

आज से बीस-तीस साल पहले बॉलिवुड और टॉलिवुड की फ़िल्मों में हेरोइन रह चुकी ख़ुशबू सुंदर ने 2005 में एक पत्रिका को दिए गए इंटरव्यू में कहा था कि किसी भी शिक्षित युवक को यह उम्मीद नहीं करनी चाहिए कि उसकी दुल्हन कुँवारी होगी। उनके इस बयान की यह कहते हुए काफ़ी आलोचना हुई कि वे विवाहपूर्व यौन-संबंध की वकालत कर रही हैं। आइए, समझते हैं कि ख़ुशबू जैसे लोग जब विवाह-पूर्व सेक्स की बात करते हैं तो उनकी मंशा क्या होती है।

तमिल अख़बार में छपे ख़ुशबू के बयान के विरुद्ध अलग-अलग जगहों पर कई केस किए गए जिनपर मद्रास उच्च न्यायालय ने इकट्ठा सुनवाई का आदेश दिया। मामला अंततः सुप्रीम कोर्ट में गया जिसने 2010 में अपना निर्णय सुनाते हुए कहा कि अगर दो वयस्क व्यक्ति स्वेच्छा से एकसाथ रहना चाहते हैं तो इसमें अपराध कैसा!

उसी दौरान ख़ुशबू के समर्थन में हमारे एक साथी विवेक आसरी ने नवभारत टाइम्स में एक ब्लॉग लिखा था। उस ब्लॉग पर कई कॉमेंट आए लेकिन एक ऐसा भी आया जिसे हमने पब्लिश नहीं किया। कोई सचिन नाम के सज्जन (?) ने लिखा था कि मुझे अपनी वाइफ़, बहन या कज़न का नंबर दीजिए, मैं उनके साथ सेक्स करना चाहता हूँ। 

इससे पहले मेरे एक लेख (10 मिनट का सेक्स और 24 घंटों का प्यार) पर भी कुछ पाठकों ने लिखा था कि अपनी वाइफ़ का नंबर दीजिए ताकि मैं उनसे संपर्क कर सकूँ।

हमने ऐसे कॉमेंट नहीं छापे क्योंकि वे बहस को बहुत ही पर्सनल और छिछले स्तर पर ले जाते हैं। लेकिन फिर लगा, इन पाठकों को जवाब दिया जाना ज़रूरी है, और इन जैसों को समझाना भी ज़रूरी है कि जब कोई लड़की यह कहती है कि शादी से पहले सेक्स में कोई ख़राबी नहीं है, तो इसका यह मतलब क़तई नहीं है कि वह शारीरिक सुख के लिए बुरी तरह तड़प रही है और सड़क पर जो भी पहला व्यक्ति उसे मिलेगा, उसके सामने वह अपने कपड़े उतारकर खड़ी हो जाएगी। न ही वह वेश्या है कि किसी का फ़ोन आएगा और वह पैसे के बदले में उसे अपना शरीर सौंप देगी। इसलिए सचिन जैसे पाठको से मेरा कहना है – सॉरी, आपके लिए यहाँ कोई चांस नहीं है। अगर आपको अपनी सेक्स की भूख मिटानी है तो अपनी पत्नी के पास जाएँ और कुँवारे है रेड लाइट एरिया में।

आइए, समझते हैं कि शादी से पहले या शादी के बग़ैर सेक्स संबंध बनाने की वकालत का क्या मतलब है? यही कि हम समाज और धर्म के ठेकेदारों के बनाए इस नियम को नहीं मानते कि आप अपना शरीर केवल उसी व्यक्ति को दोगे जिसने आपके साथ सात फेरे लिए हैं या निकाह किया है। वजह यह कि 13-14 साल की उम्र में किसी भी लड़की (या लड़के) का शरीर जवान होने लगता है। अब अगर वह 25-30 साल से पहले शादी नहीं करती (नहीं करता), या कभी भी शादी नहीं करती (नहीं करता) तो वह इतने सालों तक सेक्स के सुख से क्या इसी कारण वंचित रहे कि उसने समाज के नियम के तहत किसी को अपना पति (या पत्नी) नहीं चुना है? यानी उसे सेक्स का सुख पाना है तो शादी करनी ही होगी? और शादी के बग़ैर उसने किसी से संबंध बनाए तो वह चरित्रहीन हो जाएगी (हो जाएगा)???

आपमें से कई पाठक पुरुष होंगे और जानते होंगे कि 14-15 साल की उम्र से ही सेक्स की इच्छा कितनी ताक़तवर हो जाती है। आपमें से सभी ने शादी से पहले इस इच्छा की पूर्ति के लिए उपलब्ध तरीके अपनाए होंगे – कोई रेडलाइट एरिया गया होगा और पैसे देकर अपनी भूख मिटाई होगी, किसी को कोई फ़ीमेल पार्टनर मिल गया होगा और बाक़ियों ने अकेले में छुपकर मास्टरबेट किया होगा। पॉर्न साइट्स तो आपमें से अधिकतर पुरुषों ने देखी होंगी। तो आप तो चरित्रहीन नहीं हुए यह सब करके।

कहने का मतलब यह कि जब हम पुरुषों को यह सेक्शुअल अर्ज हो सकता है, और उसको मिटाने के लिए सबकुछ कर सकते हैं तो लड़कियों को क्यों नहीं हो सकता? और अगर वे यह अर्ज मिटाने के लिए उपलब्ध तरीक़े अपनाती हैं तो किसी को एतराज़ क्यों होना चाहिए!

फिर से दूसरे पैरे में कही गई बात तक आता हूं। सेक्स की इच्छा का और उपलब्ध तरीक़ों को मतलब यह नहीं है कि वे इसके लिए अपने-आपको सचिन जैसों के हवाले कर देंगी। वे वेश्याएं नहीं हैं, न ही वे सेक्स की भूखी हैंवे बस इस सिद्धांत पर डटी हैं कि अगर उन्हें कोई ऐसा मिला जिससे उनको संबंध बनाने का मन हुआ तो वे बनाएँगी बिना उससे शादी रचाए और आपको या किसी को उनपर उँगली उठाने का कोई हक़ नहीं है।

आख़िर में उन लोगों को, जिन्हें नहीं पता है, मैं बता दूँ कि इस देश में दो बालिग़ लोगों का आपसी सहमति से शारीरिक संबंध बनाना कोई अपराध नहीं है। ख़ुशबू के मामले में फ़ैसला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने भी यही कहा है। इसलिए जो शादी से पहले ब्रह्मचारी बने रहना चाहते हैं, वे रहें – उनको किसी ने नहीं रोका है। लेकिन जो इससे इतर सोचते हैं, उनको रोकने या टोकने का अधिकार किसी को नहीं है।

मुझे तो लगता है कि ये जो खुद को संस्कारी और लंगोट का पक्का बताते फिरते हैं, ऐसी लड़कियों को बुरा-भला कहते रहते हैं, उनको दरअसल खुन्नस इस बात की होती है कि यह लड़की जो बहुत ही आधुनिक है, लड़कों के साथ घुलती-मिलती है, हँसती-बोलती है, वह मुझको भाव क्यों नहीं दे रही है। तो ऐसे में वे अपनी झेंप मिटाने के लिए इन लड़कियों पर उँगली उठाने लगते हैं – यह तो चालू है, चरित्रहीन है, छिनाल है।

वही ‘अंगूर खट्टे हैं’ वाली कहानी…

यह लेख 15 जुलाई 2010 को नवभारत टाइम्स के एकला चलो ब्लॉग सेक्शन में न वे वेश्याएँ हैं, न सेक्स की भूखी हैं… के नाम से  प्रकाशित हुआ था। यह लेख उसका संशोधित रूप है।

पसंद आया हो तो हमें फ़ॉलो और शेयर करें

अपनी टिप्पणी लिखें

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Social media & sharing icons powered by UltimatelySocial