गुरु या गुरू? यह सवाल कुछ लोगों को परेशान करता है कि इसमें रु होगा या रू। लेकिन कुछ अन्य लोगों को यह बिल्कुल परेशान नहीं करता। इसलिए नहीं कि वे सही स्पेलिंग जानते हैं, बल्कि इसलिए कि उनको पता ही नहीं कि र में भी बाक़ी व्यंजनों की तरह उ की दो मात्राएँ होती हैं। गुरु हो या शुरू, वे तो बस र की दाहिनी तरफ़ एक चुटिया लगा देते हैं और समझ लेते हैं कि काम हो गया। हक़ीक़त क्या है, जानने के लिए पढ़ें।
जब मैंने गुरू और गुरु पर फ़ेसबुक पोल किया तो मुझे मालूम था कि यह एक आसान पोल है और ज़्यादातर वोट सही जवाब पर पड़ेंगे। वही हुआ भी। दो-तिहाई से कुछ ज़्यादा यानी 72% ने सही जवाब पर वोट दिया यानी गुरु पर। एक-तिहाई से कुछ कम यानी 28% ने गुरू के पक्ष में राय दी।
गुरु क्यों सही है? क्योंकि संस्कृत में यही है और हिंदी में भी वही है (देखें चित्र)।
अब प्रश्न बस यह है कि कुछ लोग गुरु को गुरू क्यों बोलने लगे। मेरे अनुसार इसके तीन में से कोई एक या एकाधिक कारण हो सकते हैं।
- पहला कारण : हिंदी की प्रकृति दीर्घ स्वरांत की है यानी आख़िर में यदि कोई ह्रस्व स्वर है तो उसे दीर्घ के रूप में बोला जाता है। संस्कृत से हिंदी में आए कई शब्दों में हम यह परिवर्तन देखते हैं जैसे अश्रु का आँसू, दस्यु का डाकू और लड्डु का लड्डू। हो सकता है, इसी कारण कुछ लोग गुरु को गुरू बोलते हैं और वैसा ही लिखते भी हैं।
- दूसरा कारण : ‘शुरू’ जो अरबी से हिंदी में आया है, उसमें अंत में ‘रू’ है। संभव है, शुरू से मिलता-जुलता होने के कारण कई लोग गुरु को भी गुरू बोलने-लिखने लगे हों जैसे – गुरू, हो जा शुरू।
- तीसरा कारण : एक वजह यह भी हो सकती है कि अधिकतर हिंदीभाषियों को पता ही नहीं है कि रु और रू में कोई अंतर भी है। ईमानदारी से कहूँ तो प्राथमिक कक्षाओं तक मुझे भी यह जानकारी नहीं थी। र की दाहिनी तरफ़ एक पोनी टेल लगा देते थे और समझ लेते थे कि हो गया काम। यह तो नवीं-दसवीं से जब हिंदी शब्दकोश देखने की आदत लगी, तब जाकर यह मालूम हुआ कि रु और रू दोनों अलग-अलग हैं और कुछ शब्दों में रु आता है (जैसे रुपया) और कुछ में रू (जैसे रूमाल)। जब आगे चलकर पत्रकारिता जगत में क़दम रखा तो जाना कि रु और रू को एक ही समझने वालों की तो यहाँ भरमार है।
गुरु सही है, यह मैंने आपको शब्दकोशों के हवाले से बताया। लेकिन एक और रोचक जानकारी आपको देना चाहूँगा कि संस्कृत के हिसाब से गुरू भी सही है बशर्ते दो गुरुओं की बात हो रही हो। यानी एकवचन में गुरु, द्विवचन में गुरू (देखें चित्र)। हिंदी में द्विवचन होता नहीं है और एकवचन से बहुवचन बनाने के यहाँ नियम भी अलग हैं, इसलिए एक हो तो गुरु, दो हों तो गुरु और दो से अधिक हों तो भी गुरु।
ऊपर मैंने शुरू का ज़िक्र किया। अक्सर प्रश्न उठता है कि शुरू से शुरुआत होगा या शुरूआत। हमारे सीनियर कहते थे कि शुरू में रू है लेकिन शुरुआत में रु होगा। हमने भी यही बात अपने जूनियरों को बताई और आज शायद यही बात वे नए पत्रकारों को बता रहे होंगे। कोई तीन साल पहले इसके बारे अपने फ़ेसबुक प्रोफ़ाइल पेज से एक पोल भी किया था और उसमें शुरुआत को सही बताया था। लेकिन उसी पोस्ट के जवाब में उर्दू के एक जानकार ने बताया कि उर्दू में शुरूआत ही है, शुरुआत नहीं। उन्होंने मद्दाह के उर्दू-हिंदी शब्दकोश का एक चित्र भी शेयर किया और मैंने उर्दू के अन्य शब्दकोशों में भी देखा तो पाया कि उर्दू में शुरूआत ही है (देखें चित्र)।
तो फिर शुरुआत कहाँ से आया? मेरी समझ से इसका श्रेय ज्ञानमंडल के शब्दकोश को जाता है क्योंकि इसी में यह स्पेलिंग है। हिंदी शब्दसागर में शुरू तो दिया हुआ है मगर शुरुआत या शुरूआत नहीं। चूँकि इन दोनों शब्दकोशों को प्रामाणिक माना जाता है, इसलिए हिंदी जगत ने ज्ञानमंडल में दी हुई शुरुआत वाली स्पेलिंग ही अपना ली (देखें चित्र)।
ज्ञानमंडल की एंट्री देखकर मैं जो समझ पाया हूँ, उसके अनुसार कोशकार का तर्क यह है –
1. मूल अरबी शब्द शुरुअ है (रु) इसलिए उसका बहुवचन होगा शुरुआत (जैसे सवाल का सवालात, काग़ज़ का काग़ज़ात आदि)। वैसे वे यह बताना नहीं भूलते कि हिंदी में शुरुआत का एकवचन के तौर पर ही इस्तेमाल होता है।
2. शुरुअ के अंत में मौजूद अ के हट जाने से उसका उच्चारण दीर्घ हो गया। जैसे अंग्रेज़ी के टुअर (Tour) या सिअरीज़ (Series) का हिंदी में उच्चारण टूर और सीरीज़ हो जाता है, कुछ-कुछ उसी तरह।
मैं अरबी नहीं जानता, उर्दू भी नहीं जानता। इसलिए इसके बारे में कोई मत नहीं दूँगा। लेकिन इतना कहना चाहूँगा कि शुरूआत को अब मैं ग़लत नहीं मानता। हिंदी समेत हर भाषा में कुछ शब्दों के दो-दो रूप चलते हैं। शुरुआत और शुरूआत के मामले में भी दोनों ही चलें।
फिर से रु और रू को लेकर व्याप्त दुविधा के बारे में थोड़ी-सी चर्चा। मुझसे कई लोगों ने पूछा कि क्या इसका कोई फ़ॉर्म्युला है जिससे पता चले कि कहाँ रु होगा और कहाँ रू। मैंने इसके बारे में अपने शुरुआत/शुरूआत वाले पोस्ट में कुछ सुझाव दिए थे। उन्हीं को यहाँ दोहरा देता हूँ क्योंकि आपमें से अधिकतर ने उसे नहीं पढ़ा होगा।
शुरू में अधिकतर रु
1. शब्द के आरंभ में – अधिकतर प्रचलित शब्द रु से शुरू होते हैं। रू से शुरू होनेवाले शब्द कम हैं। सो उन शब्दों को दिमाग़ में बिठा लीजिए जो रू से शुरू होते हैं। नीचे ऐसे शब्दों की छोटी-सी लिस्ट देखें।
- रूँधना, रूखा, रूठना, रूढ़, रूसना, रूप, रूबरू, रूह, रूमाल, रूस।
- इसमें कुछ अंग्रेज़ी के शब्द जोड़ने हों तो रूम, रूल, रूड, रूमर आदि जोड़ सकते हैं।
रोज़मर्रा काम में आने वाले कुल जमा 15-20 शब्द होंगे जिनमें रू शुरू में आता है। आप इनसे और शब्दों की स्पेलिंग भी बना सकते हैं जो इन्हीं शब्दों से बने हैं जैसे आरूढ़, रूपक, रूहानी, रूसी, रूलर आदि। अब यह लिस्ट आपने देख ली तो समझिए कि किसी शब्द के शुरू में रु है या रू, इसकी समस्या आपकी ख़त्म हो गई क्योंकि बाक़ी सारे शब्दों में आप रु लगा सकते हैं चाहे वह रुपया हो या रुस्तम।
2. शब्द के अंत में – अंत में कहाँ रु होगा और कहाँ रू, इसकी कोई लिस्ट नहीं बनाई है मैंने। लेकिन एक समझ के आधार पर कह सकता हूँ कि यदि शब्द तत्सम (संस्कृत) है तो रु होगा, तद्भव और विदेशी (उर्दू) है तो रू होगा। कुछ उदाहरणों पर ग़ौर फ़रमाएँ।
- तरु, गुरु, अश्रु, शत्रु, भीरु, चारु, सुचारु।
- घुँघरू, डमरू, उतारू, बाज़ारू, रूबरू, जोरू, दवा-दारू, आबरू।
ऊपर रूसना शब्द से याद आया एक मज़ेदार वाक़या। बात मेरी किशोरावस्था की है जब मैं कोलकता में रहता था (अभी भी वहीं हूँ)। एक दिन मैंने एक पोस्टर देखा। लिखा था – रूस गईलें सैयाँ हमार। नाम से लगता था, भोजपुरी फ़िल्म है। पोस्टर पर राकेश पांडे और पद्मा खन्ना के परिचित चेहरे भी दिख रहे थे। लेकिन यह समझ में नहीं आया कि सैयाँ के रूस जाने पर यह कैसी फ़िल्म बनी है। बंगाली फ़िल्म होती तो समझ में भी आता कि हीरो का बाप कॉम्युनिस्ट पार्टी का नेता रहा होगा और हीरो उच्च शिक्षा के लिए रूस चला गया होगा। लेकिन भोजपुरी फ़िल्म का रूस से क्या रिश्ता? बहुत सोचा, कुछ खोपड़ी में नहीं घुसा।
वह तो बाद में किसी बिहारी सहपाठी से चर्चा की तो पता चला कि यहाँ रूस जाने का मतलब Russia नामक देश में जाना नहीं है, बल्कि (साजन के) ‘रूठ’ जाने से है। यहाँ रूसना का अर्थ है रूठना।
ऊपर आपने Rumour के उच्चारण पर ध्यान दिया? सही उच्चारण रूमर ही है लेकिन हम भारतीय ह्यूमर (Humour) की तर्ज़ पर Rumour को (र्+यूमर) बोलते हैं। अंग्रेज़ी में र्+यू की ध्वनि नहीं है। इसलिए Andrew का उच्चारण भी ऐंड्रू होगा, न कि ऐंड्र्यू। अंग्रेज़ी में U का उच्चारण कहाँ क्या होता है, इसके बारे में आप मेरी इंग्लिश क्लास में जान सकते हैं जिसका लिंक नीचे दिया हुआ है।
4 replies on “107. गुरु सही है या गुरू – र् के साथ उ है या ऊ?”
super knowledge
जी श्रीमान,
आपने बहुत अच्छा बताया…पर एक मजबूत तर्क के साथ नहीं,
उदाहरणार्थ
रविन्द्र और रवींद्र शब्दों को लेकर
हम कह सकते हैं कि रविन्द्र 100%अशुद्ध
जबकि रवींद्र 100%शुद्ध है
…..रवि+इन्द्र=रवींद्र इस में दीर्घ स्वर संधि है
नमस्ते। मुझे लगता है कि गुरु और गुरू में गुरु सही है, यही मैंने इस पोस्ट में बताया है। कारण, संस्कृत में गुरु ही है और वहीं से यह शब्द आया है। बाक़ी संधि के बारे में या रविंद्र/रवींद्र के बारे में तो इस पोस्ट में बात ही नहीं हुई। कृपया बताएँ कि आपका इशारा किस तरफ़ है ताकि मैं भी समझ सकूँ और अगर मेरी कोई चूक है तो उसे सुधार सकूँ।
बेहतरीन टिप्पणी सर!