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आलिम सर की हिंदी क्लास शुद्ध-अशुद्ध

114. गुलाब की पंखुड़ी-सा है, वह होंठ है या होठ है?

होंठ लिखना सही है या होठ? या ये दोनों ग़लत हैं और सही शब्द हैं होंट या होट! जब मैंने इसपर फ़ेसबुक पोल किया तो 56% ने होंठ को सही बताया। होठ के समर्थक 38% थे। होंट को सही मानने वाले बहुत कम थे – 6% जबकि होट के पक्ष में एक भी वोट नहीं पड़ा। सही क्या है, यह जानने के लिए आगे पढ़ें।

सही शब्द है होंठ। कम-से-कम शब्दकोशों का तो यही मानना है। वैसे हिंदी शब्दसागर ने दोनों रूप दिए हैं मगर वरीयता होंठ को ही दी है। होठ की एंट्री में लिखा है – दे. होंठ। इसलिए मैंने भी इसे ही सही माना है।

लेकिन होठ क्यों ग़लत है, इसका कारण मुझे समझ में नहीं आता। मेरी दलील नीचे पेश है।

अगर स्रोत शब्द की बात करें तो उससे होठ ही बनना चाहिए क्योंकि ओष्ठ (संस्कृत) में कोई नासिक्य ध्वनि नहीं है। अगर मूल शब्द में नासिक्य ध्वनि हो (जैसे ङ्, ञ्, ण्, न् या म्) तो परिवर्तित शब्द में अनुनासिक ध्वनि की मौजूदगी समझ में आती है। मसलन दंत से दाँत बना क्योंकि दंत (दन्त) में द के बाद न् है; ग्रंथि से गाँठ बना क्योंकि ग्रंथि (ग्रन्थि) में ग्र के बाद न् है। इसी तरह कंटक से काँटा बना क्योंकि कंटक (कण्टक) में क के बाद ण् है; पंक्ति से पाँत बना क्योंकि पंक्ति (पङ्क्ति) में प के बाद ङ् है; बंक से बाँका बना क्योंकि बंक (बङ्क) में ब के बाद भी ङ् है। इन सबमें अनुनासिक ध्वनि (जिसका चिह्न चंद्रबिंदु है) आने का कारण दिखता है। मगर होंठ में क्यों? ओष्ठ में तो ऐसी कोई ध्वनि है ही नहीं।

क्या ओष्ठ से होठ नहीं बनना चाहिए जिस तरह छत्र से छाता, द्राक्षा से दाख, पत्र से पात या पत्ता, सप्त से सात आदि बने। यहाँ तक कि अष्ट जो ओष्ठ से बहुत-कुछ मिलता-जुलता है, उससे भी आठ बना, आँठ नहीं। लेकिन ओष्ठ से होंठ बन गया।

वैसे होंठ अकेला शब्द नहीं जहाँ अज्ञात कारणों से प्रारंभिक वर्ण के साथ अनुनासिक ध्वनि आती है। अक्षि से आँख, उष्ट्र से ऊँट, पक्ष से पंख और पाँख, सर्प का साँप आदि ऐसे कुछ शब्द हैं जहाँ मूल शब्द में कोई नासिक्य ध्वनि नहीं है, फिर भी उनके तद्भव रूप में अनुनासिक या नासिक्य ध्वनि है। होंठ भी इसी तरह का एक शब्द प्रतीत होता है।

होंठ के साथ एक और भी अनूठापन है। वह यह कि होंठ में हम ‘अ’ को ‘ह’ में बदलते देख रहे हैं जबकि आम तौर पर ‘ह’ की ध्वनि ‘अ’ में बदलती है। उदाहरण  – ‘यह’ का ‘ये’ में बदलना, अल्लाह का अल्ला हो जाना, गुजराती और बांग्ला में ‘हम’ (या ‘अहम’) का ‘अमे’ और ‘आमरा’ हो जाना (देखें चित्र), तमिल में हृदय का इदयम् हो जाना, महाप्राण (हकार-युक्त जैसे फ, भ आदि) ध्वनियों को अल्पप्राण (हकार-मुक्त जैसे प, ब आदि) में बदल जाना।

अंग्रेज़ी में भी H से शुरू होने वाले कई शब्दों में हम ‘अ’ का उच्चारण (Honest=ऑनिस्ट, Hour=आवर आदि) देखते हैं। Hospital भी जब हिंदी/उर्दू में आया तो वह अस्पताल बना, हस्पताल नहीं।

और अपना इंडिया? वह भी तो हिंद में मौजूद ‘ह’ के ग़ायब होने से बना है – सिंधु>हिंद (Hind)>Indos>India.

निष्कर्ष यह कि ‘ह’ का ‘अ’ में बदलना सामान्य प्रवृत्ति है मगर ‘अ’ का ‘ह’ में परिवर्तन, जैसा कि हम होंठ के मामले में देख रहे हैं, कम ही होता है।

मैंने ‘ह’ सो शुरू होने वाले हिंदी शब्दों की सूची देखी और मुझे केवल दो और ऐसे शब्द मिले जो ‘अ’ से शुरू होते थे लेकिन उनके परिवर्तित रूप में ‘ह’ आ गया था। एक हूठा जो अंगूठा (अंगुष्ठ) से बना था और दूसरा हप्पू (अफ़ीम) जो कैसे बना, इसका अंदाज़ा कोशकार भी नहीं लगा पाया। इसलिए कोश में स्रोत की जगह प्रश्नवाचक चिह्न लगा हुआ है।

इसके अलावा एक और शब्द मिला – फ़ारसी का हस्ती जो संभवतः संस्कृत के अस्तित्व से बना है या उसी का रिश्तेदार है। इसी तरह अंग्रेज़ी का Horde तुर्की के ओर्दू से बना है। यह वही ओर्दू है जिससे उर्दू शब्द का जन्म हुआ है।

उर्दू से याद आया – उर्दू लिखना सही है या उरदू? इसी तरह गरमी या गर्मी? इसपर मैं पहले चर्चा कर चुका हूँ। रुचि हो तो पढ़ें – 

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