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आलिम सर की हिंदी क्लास शुद्ध-अशुद्ध

85. जिसका दाम हो ज़्यादा, वह महँगा है या मँहगा?

महँगा और मँहगा पर पोल करते हुए मैं हिचकिचा रहा था क्योंकि मुझे लग रहा था कि इस बार तो जवाब पूरी तरह एकतरफ़ा रहेंगे। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। नतीजे से पता चला कि हर चार वोटरों में से एक इस शब्द को ग़लत लिख रहा है। आप किनमें हैं, तीन में या एक में?

विकल्प दो थे। महँगा और मँहगा। 74% ने कहा, महँगा सही है और 26% की राय थी कि मँहगा होना चाहिए। जैसा कि ऊपर बताया, बहुमत सही है।

आम तौर पर मैं सही जवाब की तलाश में यह पता करने की भी कोशिश करता हूँ कि यह शब्द कैसे बना होगा और कई बार उस चर्चा के दौरान ही पता चल जाता है कि सही शब्द क्या और क्यों है। परंतु इस बार ऐसा नहीं हो पा रहा है क्योंकि हिंदी शब्दसागर के अनुसार यह शब्द जिससे बना है, वह है संस्कृत का महार्घ (महा+अर्घ) जिसमें कोई पंचमवर्णी ध्वनि (ङ्, ञ्, ण्, न् और म्) है ही नहीं (देखें चित्र)। अगर मूल शब्द में ऐसी कोई ध्वनि होती तो हम चट से कह देते कि अनुनासिक ध्वनि का चिह्न यानी चंद्रबिंदु उस पंचमवर्ण से पहले वाले वर्ण पर लगेगा।

आप जानते होंगे कि आम तौर पर संस्कृत शब्दों में मौजूद पंचमवर्णी ध्वनियाँ हिंदी में आकर अपने से पहले वर्ण (स्वर) को अनुनासिक कर देती हैं जैसे दन्त से दाँत, अन्त्र से आँत, ग्रन्थि से गाँठ, पङ्क्ति से पाँत, जङ्घा से जाँघ, कण्टक से काँटा आदि। वैसे यह भी सच है कि हिंदी में कई ऐसे शब्द हैं जिनमें अनुनासिक ध्वनि पाई जाती है लेकिन उनके मूल संस्कृत शब्दों में कोई पंचमवर्णी ध्वनि नहीं है। जैसे अक्षि से आँख, सर्प से साँप, कक्ष से काँख आदि।

अक्षि, सर्प या कक्ष में कोई पंचमवर्णी ध्वनि नहीं है, फिर भी इनसे बने हिंदी शब्दों के शुरुआती स्वर (आँ.., साँ.., काँ..) अनुनासिक हो गए हैं। इसलिए महार्घ का महँगा बनना भी इस कारण अस्वाभाविक या अपवाद नहीं कहा जा सकता कि उसमें कोई पंचमवर्णी ध्वनि नहीं है। सवाल सिर्फ यह है कि बदला हुआ शब्द मँहगा होगा या महँगा।

मैंने इसके बारे में सोचा कि कहीं से कोई क्लू मिल जाए। लेकिन असफल रहा। हाँ, ऊपर जो शब्द उदाहरण के तौर पर दिए हैं, उनमें मुझे एक ट्रेंड दिखा। ट्रेंड यह कि उन सबमें जो वर्ण ग़ायब हो रहा है, अनुनासिक ध्वनि उससे ठीक पहले वाले वर्ण में लग रही है। जैसे दन्त में न् ग़ायब हो रहा है तो अनुनासिक ध्वनि उससे पहले वाले वर्ण यानी दा पर है। इसी तरह अक्षि में क् की ध्वनि ग़ायब है तो अनुनासिक ध्वनि उससे पहले वाले वर्ण यानी आ पर लगी। यही बात सर्प के साथ है। र् ग़ायब है तो सा अनुनासिक हो रहा है।

इस हिसाब से महार्घ में र् की ध्वनि ग़ायब हो रही है तो अनुनासिक ध्वनि उससे पहले वाले वर्ण यानी ह पर लगनी चाहिए यानी शब्द बनेगा महँगा, न कि मँहगा।

हिंदी का ट्रेंड – चंद्रबिंदु शुरू में या अंत में

मेरे ख़्याल से जिन लोगों ने मँहगा को सही बताया है, वे भी बोलते सही होंगे – महँगा – लेकिन वे इस कारण कऩ्फ़्यूज़ हो जाते होंगे कि हिंदी में अधिकतर शब्दों में पहले या आख़िरी वर्ण में अनुनासिक ध्वनि का चिह्न यानी चंद्रबिंदु लगा होता है, बीच वाले पर नहीं। ऐसे शब्द बहुत कम होंगे जिनमें बीच के वर्ण पर चंद्रबिंदु लगता हो।

मुझे एक शब्द याद आ रहा है जो महँगा की तर्ज़ पर ही है – लहँगा। दूसरा, उसाँस जो उच्छ्वास का परिवर्तित रूप है। तीसरा याद आ रहा है मेहँदी जो संस्कृत के मेन्धी या मेन्धिका से बना है (देखें चित्र)। और कोई शब्द आपको याद रहा हो तो बताएँ। मुझे अपनी समझ को विकसित/संशोधित करने में मदद मिलेगी।

मेहँदी से याद आया, सुविख्यात ग़ज़ल गायक मेहदी हसन के नाम में कई लोग बिंदी या चंद्रबिंदु लगा देते हैं। लेकिन यह ग़लत है क्योंकि उनका नाम मेहदी है और इसका मेहँदी से कोई लेना-देना नहीं है।

मेहदी (मूल अरबी शब्द मह्दी) का अर्थ है – दीक्षित, जिसे धर्म के सही मार्ग पर चलने की हिदायत मिली हो। अब आपमें से कोई पूछ सकता है कि यह मह्दी मेहदी कैसे बना, तो इसका जवाब यह है कि वैसे ही जैसे महबूबा मेहबूबा बन गया। दरअसल ‘ह’ की ध्वनि कई शब्दों में अपने से पहले वाले अ स्वर को ए में बदल देती है जैसे यह का ये या बहन का बेन। लेकिन इसपर शब्द पहेली 8 में चर्चा कर चुके हैं। चाहें तो पढ़ सकते हैं।

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