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आलिम सर की हिंदी क्लास शुद्ध-अशुद्ध

195. बड़ों से क्या मिलता है – आशीर्वाद या आर्शीवाद?

यह प्रश्न मुझे स्कूल के ज़माने से ही परेशान किया करता था। मेरे पिताजी आशिर्वाद लिखते थे और माँ आर्शीवाद। कुछ बुजुर्गों की चिट्ठियों में आर्शिवाद भी मिलता था और कहीं-कहीं आशीर्वाद भी। ऐसे में यह समझना मुश्किल हो जाता था कि सही क्या है। तब हिंदी के शब्दकोश भी नहीं होते थे घर में। लेकिन आज यह जानना आसान है कि कौनसा शब्द सही है और क्यों। आज की चर्चा इसी शब्द पर। 

शिर्वाद, आर्शिवाद, आशीर्वाद या आर्शीवाद? जब मैंने इन चार संभावित रूपों पर एक फ़ेसबुक पोल किया यह जानने के लिए कि हिंदी जगत में कौनसा शब्द प्रचलित है तो मेरा अनुमान था कि मुक़ाबला कड़ा होगा और सभी पर कुछ-न-कुछ वोट पड़ेंगे। मुझे लग रहा था कि असल मुक़ाबला पहले और तीसरे विकल्प यानी आशिर्वाद और आशीर्वाद के बीच होगा। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। आशीर्वाद के पक्ष में भारी-भरकम 81% वोट पड़े जबकि आशिर्वाद को सही बताने वाले केवल 5% थे। 3% ने आर्शिवाद और 11% ने आर्शीवाद के पक्ष में मतदान किया। आर्शिवाद और आर्शीवाद के पक्ष में वोट डालने वाले इन 14% के बारे में हम अंत में बात करेंगे। पहले आशीर्वाद और आर्शिवाद पर चर्चा करते हैं और जानते हैं कि क्या सही है।

जैसा कि शुरुआत में ही लिखा, आशीर्वाद/आशिर्वाद/आर्शीवाद/आर्शिवाद का प्रश्न मुझे स्कूल के ज़माने से ही परेशान किया करता था। इन चारों में मुझे आशिर्वाद सबसे सही लगता था क्योंकि इसमें शिर (सिर) है। मुझे लगता था कि किसी के ‘सिर’ पर हाथ रखकर ही आशीष दी जाती है और इसी से यह शब्द बना होगा – आ+शिर्+वाद=आशिर्वाद। उन दिनों घर पर हिंदी का कोई शब्दकोश था नहीं कि जाँच लेते। वह तो जब हिंदी के शिक्षक ने उत्तर पुस्तिका में आशिर्वाद को काटकर आशीर्वाद किया, तब पता चला कि सही क्या है।

लेकिन यह आशीर्वाद क्यों सही है और आशिर्वाद क्यों ग़लत, इसकी जानकारी मुझे हाल ही में संस्कृत के कुछ जानकारों से मिली। पता चला कि आशीर्वाद आशीः+वाद से मिलकर बना है और इसका शिर या सिर से कोई लेना-देना नहीं है। मूल संस्कृत शब्द है आशिष्/आशिस् जिसका प्रथमा (कर्ता) एकवचन रूप है आशीः। इसी आशीः और वाद की संधि से आशीर्वाद बनता है। आप जानते ही होंगे कि संस्कृत में वचन और विभक्तियों के अनुसार शब्दरूप बदलते हैं। हिंदी में आशीर्वाद हमेशा आशीर्वाद रहेगा, बहुवचन में आशीर्वादों भी हो सकता है। लेकिन संस्कृत में इसके 13 रूप हैं (देखें चित्र)।

अब आते हैं आर्शिवाद और आर्शीवाद पर जिनके पक्ष में 14% ने अपना मत ज़ाहिर किया है। इन दोनों में रेफ (आधे र का चोटीनुमा चिह्न जो शिरोरेखा के ऊपर लगता है) ‘वा’ के बजाय ‘शि’ और ‘शी’ पर लगा है। लेकिन रेफ की इस अदलाबदली से शब्द का उच्चारण ही बदल जाता है। हो जाता है – आर्+शि+वाद या आर्+शी+वाद।

मुझे लगता है कि जो लोग आर्शिवाद या आर्शीवाद को सही समझते हैं, वे भी इसे आर्+शि+वाद या आर्+शी+वाद नहीं बोलते होंगे। मसला संभवतः उच्चारण का नहीं बल्कि रेफ संबंधी कन्फ़्यूश्ज़न का है।

किसी शब्द में ‘र्’ के उच्चारण के लिए रेफ कहाँ लगाएँ, यह सवाल कुछ लोगों को परेशान करता है और इसकी वजह यह है कि रेफ का उच्चारण ‘पहले’ आता है लेकिन वह शब्द के वर्णक्रम में दिखता ‘बाद’ में है। आशीर्वाद को ही लें। क्रम से देखें तो इसमें पहले ‘आ’ दिखता है, फिर ‘शी’, उसके बाद ‘वा’, फिर उसके सिर पर लगा रेफ (र्) और और अंत में ‘द’ – आ>शी>वा>र्>द। इसी कारण कुछ लोग आशीर्वाद को ‘आ शी वा र् द’ पढ़ लेते हैं। ऐसे लोगों के अनुसार सही स्पेलिंग होनी चाहिए आर्शीवाद  जिसमें पहले ‘आ’, फिर ‘शी’, उसके बाद शी के सिर पर लगा रेफ (र्), तत्पश्चात ‘वा’ और अंत में ‘द’ आता है। उनके मुताबिक़ हो गया ‘आ शी र् वा द’।

रेफ को लेकर कन्फ़्यूश्ज़न का एक बड़ा कारण यह भी है कि रेफ का नियम अनुस्वार के नियम के बिल्कुल उलट है हालाँकि अनुस्वार भी शिरोरेखा के ऊपर लगता है और रेफ भी। मगर अनुस्वार जिस वर्ण के ऊपर होता है, उसके ठीक ‘बाद‘ उससे संबंधित ध्वनि का उच्चारण होता है (हिंदी=हि न् दी) जबकि रेफ जिस वर्ण के ऊपर होता है, उससे ठीक ‘पहले‘ र् का उच्चारण होता है (वर्दी=व र् दी)।

परंतु ऐसी परेशानियाँ हर भाषा में हैं और कुछ नियम जानकर और लगातार पढ़ते-लिखते वे समस्याएँ धीरे-धीरे दूर हो जाती हैं।

आशीर्वाद से याद आया। अगर किसी को दीर्घायु होने का आशीर्वाद देना हो तो संस्कृत में क्या कहेंगे – आयुष्मान् भव या आयुष्मान् भवः? इसपर पहले चर्चा हो चुकी है। आपसे मिस हो गई हो तो तो इस लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं –

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