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236. सूद के लिए क्या है सही – ब्याज या व्याज?

सूद या interest के लिए हिंदी का जो प्रचलित शब्द है, वह ब्या है या व्या? जब इस संबंध में फ़ेसबुक पर एक पोल किया गया तो 88% ने कहा, सही है ब्याज। शेष 12% ने व्याज के पक्ष में वोट किया। इस वोटिंग से पता चलता है कि अधिकतर लोग ब्याज का इस्तेमाल करते हैं। मगर क्या व्याज का प्रयोग ग़लत है, ख़ासकर तब जब हिंदी के शब्दकोश कहते हैं कि ब्याज शब्द संस्कृत के व्याज से ही आया है? जानने के लिए आगे पढ़ें।

ब्याज सही है, यह तो हम सब जानते हैं और शब्दकोश भी यही कहते हैं। हिंदी शब्दसागर में भी ब्याज ही दिया हुआ है। लेकिन कुछ लोग व्याज का भी प्रयोग करते हैं जैसा कि हमारे पोल से भी साबित हुआ। गुजराती, मराठी और यहाँ तक कि पंजाबी में व्याज/वियाज का इस्तेमाल होता है। यही नहीं, हिंदी के जो शब्दकोश ब्याज को सही बताते हैं, वे भी कहते हैं कि यह संस्कृत के व्याज से आया है। अब जब संस्कृत में व्याज शब्द है (देखें चित्र) तो वही व्याज हिंदी में क्यों नहीं चल सकता?

हिंदी शब्दसागर में ब्याज का अर्थ और स्रोत।

इसलिए नहीं चल सकता कि संस्कृत में व्याज शब्द तो है मगर उसका अर्थ सूद नहीं है। उसका अर्थ है – धोखा, चाल, छल, चालबाज़ी (देखें चित्र)।

आप्टे के संस्कृत-हिंदी कोश में व्याज का अर्थ।

सूद के लिए संस्कृत में दूसरे बहुत सारे शब्द हैं जैसे उदय, कुसीदवृद्धिः, कलांतरम्, वार्धुष्यम् (अत्यधिक ब्याज) आदि।

हिंदी शब्दसागर में भी जहाँ ब्याज का अर्थ सूद दिया हुआ है, वहीं व्याज का अर्थ वही दिया हुआ है जो संस्कृत में है – मन में कुछ और बात रखकर ऊपर से कुछ और कहना या करना यानी छल-कपट (देखें चित्र)।

हिंदी शब्दसागर में व्याज का अर्थ।

ऐसे में यह प्रश्न उठ सकता है कि यदि ब्याज संस्कृत के व्याज से आया है तो दोनों के अर्थों में इतना अंतर क्यों है।

मैंने संस्कृत के विद्वानों से चर्चा की और वे संस्कृत का ऐसा कोई टेक्स्ट नहीं दिखा सकते जिसमें सूद के अर्थ में व्याज शब्द का प्रयोग हुआ हो। हाँ, हिंदी शब्दसागर में कबीर और तुलसी के ऐसे दोहे दिए गए हैं जिनमें ब्याज शब्द का प्रयोग है सूद के अर्थ में।

कलि का स्वामी लोभिया,
मनसा धरी बधाइ। 
दैंहि पईसा ब्याज कौं,
लेखां करतां जाइ॥

कबीर

भावार्थ : कलियुग का यह स्वामी कैसा लालची हो गया है! लोभ बढ़ता ही जाता है इसका। ब्याज पर यह पैसा उधार देता है और लेखा-जोखा करने में सारा समय नष्ट कर देता है।

सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा।
दिन चलि गए ब्याज बड़ बाढ़ा॥
अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली।
तुरत देउँ मैं थैली खोली॥

तुलसी

भावार्थ : वह मानो हमारे ही मत्थे काढ़ा था। बहुत दिन बीत गए, इससे ब्याज भी बहुत बढ़ गया होगा। अब किसी हिसाब करनेवाले को बुला लाइए, तो मैं तुरंत थैली खोलकर दे दूँ।

हमने ऊपर देखा कि संस्कृत के व्याज का वह अर्थ नहीं है जो हिंदी के ब्याज का है। इससे दो निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं।

  • पहला, हिंदी का ब्याज संस्कृत के ब्याज से नहीं आया है।
  • दूसरा, हिंदी का ब्याज संस्कृत के व्याज (छल, कपट, चालबाज़ी) से ही आया है। हो सकता है कि शुरू के दौर में ब्याज लिया जाता होगा मगर उसे आर्थिक-सामाजिक या नैतिक तौर पर ग़लत नहीं माना जाता रहा हो भले ही उसकी दर कुछ भी हो। स्मृतियों में ब्याज की दर को वस्तु, उपयोग और जाति के आधार पर तय किया गया है मसलन व्यापारिक लेनदेन के लिए कम और समुद्री व्यापार के लिए अधिक, ब्राह्मणों से न्यूमतम और शू्द्रों से अधिकतम। (ब्याज के संबंध में मनुस्मृति समेत अलग-अलग स्मृतियों में क्या कहा गया है, यह जानने के लिए यहाँ क्लिक/टैप करें।)
  • हो सकता है, बाद के दौर में सूदख़ोरी के ज़रिए ग़रीबों और ज़रूरतमंदों को छलने और लूटने को नैतिक तौर पर ग़लत माना गया और इसीलिए कि छल और कपट का अर्थ देने वाले व्याज को सूद का समानार्थी मान लिया गया।

ब्याज के साथ एक शब्द आता है बट्टा। ब्याज-बट्टा। बट्टा का अर्थ है – व्यवहार या लेनदेन में किसी वस्तु के मूल्य में होने/की जाने वाली कमी। दूसरे शब्दों में दलाली, दस्तूरी। जैसे माल बिक जाने पर बट्टा काटकर आपको दाम दे दिया जाएगा।

बट्टा का ज़िक्र मैंने यहाँ इसलिए किया कि जब मैंने दक्षिण भारत की भाषाओं में सूद का पर्याय खोजा तो मुझे कन्नड़ में वड्डी और तमिल में वट्टि मिला (देखें चित्र)। हो सकता है कि यह वड्डी/वट्टि बट्टा से ही बना हो।

तमिल में सूद का पर्याय।
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