हरिद्वार या हरद्वार – यह एक ऐसा प्रश्न है जो मुझे किशोरावस्था से परेशान करता आया है। कारण यह कि जगह का नाम तो ‘हरिद्वार’ ही प्रचलित है लेकिन हर की पौड़ी में ‘हर’ है। यह मैं जानता था कि ‘हरि’ विष्णु के लिए (बोलो हरि, हरि बोल) इस्तेमाल होता है और ‘हर’ महादेव के लिए (हर-हर महादेव)। जब इसपर फ़ेसबुक पोल किया तो 58% ने हरिद्वार और 19% ने हरद्वार के पक्ष में वोट डाला था। बाक़ी 23% ने दोनों को सही ठहराया। आख़िर सही क्या है, जानने के लिए आगे पढ़ें।
हरिद्वार और हरद्वार में सही क्या है, इसकी पहचान धर्मग्रंथों से हो सकती थी। उसमें जो लिखा मिलता, उसी को सही बता देते। लेकिन जैसा कि पता चला, हरद्वार या हरिद्वार कुछ सौ साल पहले का शब्द है और धर्मग्रंथों में यह शब्द नहीं है। धर्मग्रंथों में इस तीर्थ के लिए कपिलस्थान, गंगाद्वार और मायापुर नामों का प्रयोग हुआ है।
आप शायद जानते होंगे कि गंगोत्री से निकलने वाली गंगा क़रीब 250 किलोमीटर लंबे पहाड़ी रास्तों को तय करते हुए यहीं से मैदानी इलाक़ों में प्रवेश करती है और शायद इसी कारण इसे गंगाद्वार (गंगा का द्वार) कहा गया है।
महाभारत में कई जगहों पर तीर्थ के रूप में गंगाद्वार का ज़िक्र आया है। वनपर्व में एक स्थान पर ऋषि धौम्य तीर्थों का ज़िक्र करते हुए गंगाद्वार का उल्लेख करते हैं जहाँ से गंगा तेज़ गति से प्रवाहित होती है।
चीनी यात्री ह्वेन त्सांग जो 629 ई. में भारत आए, उनके यात्रा वृत्तांत में इस जगह को मो-यू-लो बताया गया है जो संभवतः मायापुर का ही चीनी लिप्यंतर है। ह्वेन त्सांग मो-यू-लो के उत्तर में एक मंदिर का ज़िक्र करते हैं और उसे गंगाद्वार बताते हैं। माया नाम का ज़िक्र गरुड़ पुराण में भी हैं जिसमें इसे सात पवित्र स्थलों में से एक बताया गया है।
अयोध्या मथुरा माया काशी कांची अवंतिका।
पुरी द्वारावती चैव सप्तैता मोक्षदायिकाः॥
‘माया’ का उल्लेख अबुल फ़ज़ल ने भी अपनी किताब आईन-ए-अकबरी में किया है।
अंग्रेज़ों के दस्तावेज़ों में हरद्वार (Hardwar) नाम ही मिलता है (देखें चित्र)।
अंग्रेज कवयित्री और उपन्यासकार लटीशा इलिज़बथ लैंडन (1802-1838) ने इस तीर्थस्थल पर एक कविता लिखी है, उसमें उसका शीर्षक Hurdwar लिखा है।
इन सबसे यही लगता है कि इस तीर्थ का नाम पहले गंगाद्वार, फिर माया, फिर हरद्वार और अंत में हरिद्वार हुआ।
हरद्वार और हरिद्वार नामों के पीछे तर्क यही है कि केदारनाथ और बदरीनाथ के लिए यात्रा यहीं से शुरू होती है इसलिए इसे हरद्वार (शिव का द्वार) और हरिद्वार (विष्णु का द्वार) नाम मिला। इसके अलावा इस जगह के बारे में शिव (गंगा अवतरण स्थल) और विष्णु (पदचिह्न) दोनों से जुड़ी कथाएँ हैं। इसलिए इस जगह से दोनों का नाम जुड़ा होना अस्वाभाविक नहीं है।
अब अंत में फ़ैसले का समय। सही क्या है? आपने ऊपर के चित्रों में देखा कि ब्रिटिश काल में हरद्वार ही चलता था लेकिन भारत सरकार ने हरिद्वार को स्वीकार किया है (देखें चित्र में रेलवे स्टेशन का नाम)।
वैसे आप्टे का संस्कृत कोश हरि के दोनों अर्थ बताता है – विष्णु और शिव (देखें चित्र)। इसलिए हमें हरिद्वार ही स्वीकार कर लेना चाहिए जिससे दोनों अर्थ निकलते हैं।
रोचक बात यह है कि विष्णु और शिव के अलावा भी हरि के 22 अर्थ हैं – इंद्र, इंद्र का घोड़ा, सूर्य, चंद्र, मेढक, तोता, बंदर और न जाने क्या-क्या (देखें ऊपर का चित्र)। मुझे स्कूल में पढ़ी एक कविता याद आ रही है जो हरि के कई अर्थों के बारे में ही थी और यमक अलंकार का उदाहरण थी।
हरि* बोले, हरि** ने सुना, हरि** गए हरि* के पास। वो हरि* तो हरि*** में गए, ये हरि** भए उदास। हरि* मेढक हरि** साँप हरि*** पानी
ऊपर मैंने बदरीनाथ लिखा है, बद्रीनाथ नहीं। यह वर्तनी की चूक नहीं है। सही शब्द बदरीनाथ ही है। इस धाम का यह नाम क्यों पड़ा और बदरी का क्या अर्थ है, यह जानना हो तो हमारी पिछली चर्चा पढ़ें। लिंक है –