बिस्तर या बिछौने के लिए संस्कृत का एक शब्द है जिसे कई तरह से लिखा जाता है – शैया, शय्या और शैय्या। देखें ऊपर का चित्र जिसमें एक जगह शय्या है तो दूसरी जगह शैया। ये दोनों सही नहीं हो सकते। कोई एक है जो सही है। क्या है वह, जानने के लिए आगे पढ़ें।
जब मैंने फ़ेसबुक पर पूछा कि शैया, शय्या और शैय्या में से कौनसा सही शब्द है तो 63% ने शय्या के पक्ष में वोट किया और शेष 37% ने शैय्या के पक्ष में। शैया को सही बताने वाला कोई नहीं था। वैसे मुझे लगता है कि यदि मैंने केवल पहले दो विकल्प दिए होते – शैया और शय्या तो शैय्या के पक्ष में पड़े सारे वोट शैया के हक़ में जाते।
सही शब्द है शय्या क्योंकि यह संस्कृत से आया है और वहाँ यही है। संस्कृत के बारे में मेरी जानकारी शून्य है लेकिन संस्कृत कोश में दी गई सूचना के आधार पर समझता हूँ कि शय्या ‘शी’ धातु से बना है (शी आधारे क्यप्)। शी का अर्थ है सोना। इसी से शायिका, शायी, शयन आदि भी बने हैं। हिंदी के कोशों में भी शय्या ही है, शैया या शैय्या नहीं।
अब प्रश्न यह बचता है कि जब सही शब्द है शय्या तो शैय्या के पक्ष में भी इतने वोट क्यों पड़े। मेरी समझ से इसका कारण है शय्या का उच्चारण। हम हिंदीवाले शय्या जैसे शब्द नहीं बोल पाते यानी ऐसे शब्द जिसमें य् की ध्वनि दो बार आई हो। जब भी ऐसा होता है, हम पहले य् को ‘इ’ बना लेते हैं और इसी कारण शय्या बोलते समय शइया हो जाता है हालाँकि लिखते समय हम उसका मूल रूप बनाए रखते हैं यानी शय्या।
आपमें भी झटके से बोलकर देखें शय्या – आप पाएँगे कि आपके मुँह से शय्+या के बजाय शइ+या ही निकल रहा है।
यह तो बात हुई संस्कृत की। लेकिन अन्य भाषाओं से आए ऐसे शब्दों के मामले में हमारे पास मूल रूप बनाए रखने की मजबूरी नहीं थी क्योंकि उनकी लिपि ही दूसरी है। यही कारण है कि अरबी से आए तय्यार, सय्याद और मय्यत जैसे शब्दों का हिंदी में लिप्यंतर करते समय हमने वही लिखा जो हम बोलते हैं – तैयार, सैयाद, मैयत।
ऐसा इसलिए करते हैं कि हिंदी की प्रकृति ‘य्य’ बोलने और लिखने की है ही नहीं। आप देखेंगे कि हिंदी के ऐसा तमाम शब्दों में ‘ऐ’ वाला रूप ही है। उदाहरण के लिए – भैया, मैया, गैया, नैया, तलैया, खिवैया, गवैया। कहीं-कहीं ‘इ’ वाले रूप भी मिल सकते हैं जैसे भइया मगर य् वाले रूप नहीं ही मिलेंगे। अगर कहीं मिले तो समझ लीजिए कि वह ग़लत स्पेलिंग है।
ऐसा क्यों होता है, यानी ‘य्य’ वाली स्थिति में पहले ‘य्’ की ध्वनि हिंदी में आकर ‘इ’ में क्यों बदल जाती है, इसके बारे में भाषा वैज्ञानिक ही बता सकते हैं मगर दोनों ध्वनियों – य् और इ में – कितना गहरा नाता है, यह समझने के लिए सिर्फ़ यह याद करना काफ़ी है कि अंग्रेज़ी का y लेटर य (You) और इ/ई (Cycle/Early) दोनों के उच्चारण के काम में आता है और उसे सेमी-वावल माना जाता है। हिंदी में भी ‘य’ अर्धस्वर की श्रेणी में आता है। अरबी-फ़ारसी परिवार में भी ई और य के लिए एक ही चिह्न यानी वर्ण है।
आज की इस चर्चा के बाद उम्मीद है कि आपमें से जिन लोगों को कभी-कभी यह शंका होती होगी कि भैया लिखें या भय्या, गवैया लिखें या गवय्या, वे निश्चिंत होकर भैया लिख सकते हैं। और हाँ, शैय्या की तरह कभी भी भैय्या या गवैय्या तो बिल्कुल न लिखें।