दुनिया के हर समाज में हमेशा से एक ऐसा वर्ग रहा है जो ख़ुद को ऊँचे कुल या वंश का मानता है। इस वर्ग को हिंदी में क्या कहा जाता है – ‘आभिजात्य’, ‘अभिजात्य’ या ‘अभिजात’? आज की चर्चा इस विषय पर है। रुचि हो तो पढ़ें।
जब यही सवाल फ़ेसबुक पर पूछा गया तो 45% ने ‘आभिजात्य’ वर्ग और 35% ने ‘अभिजात्य’ वर्ग को सही बताया। शेष 20% के मुताबिक़ सही है ‘अभिजात’ वर्ग।
आइए, जानते हैं कि शब्दकोशों के अनुसार सही क्या है।
पहले संस्कृत का कोश टटोलते हैं क्योंकि ये तीनों शब्द संस्कृत से आए हैं। सबसे पहले ‘अभिजात’ का अर्थ खोजते हैं जो कि हमारे पोल का पहला विकल्प था। लिखा है – उच्च कुल में उत्पन्न यानी कुलीन (देखें चित्र)।
अब ‘आभिजात्य’ का अर्थ देखते हैं जो कि दूसरा विकल्प था – जन्म की श्रेष्ठता, कुलीनता आदि (देखें चित्र)।
और ‘अभिजात्य’? ऐसा तो कोई शब्द है ही नहीं (देखें चित्र)।
अब पहले दोनों विकल्पों के सामने उनके अर्थ लगाकर देखें। अभिजात वर्ग = कुलीन वर्ग और आभिजात्य वर्ग = कुलीनता वर्ग। कौनसा सही लगता है?
समझ में आ गया तो ठीक वरना मैं व्याकरण के हिसाब से समझाता हूँ। ऊपर शब्दकोश में दिए गए अर्थों के हिसाब से हमने जाना कि अभिजात (कुलीन) विशेषण है और आभिजात्य (कुलीनता) भाववाचक संज्ञा है। अब वर्ग जो कि संज्ञा है, उससे पहले तो विशेषण ही लगेगा। इसलिए अभिजात (कुलीन) वर्ग, न कि आभिजात्य (कुलीनता) वर्ग।
इसे सुंदर (विशेषण) और सौंदर्य (भाववाचक संज्ञा) से भी समझ सकते हैं। किसी ख़ूबसूरत दृश्य के बारे में बताते हुए हम क्या लिखते हैं – सुंदर दृश्य या सौंदर्य दृश्य? वही नियम यहाँ भी काम कर रहा है। अभिजात वर्ग, न कि आभिजात्य वर्ग।
हिंदी शब्दसागर में भी दोनों का यही अर्थ दिया हुआ है – कुलीन और कुलीनता। अभिजात्य यहाँ भी नहीं है (देखें चित्र)।
लेकिन हमारा पोल तो यही कहता है कि हिंदी में 80% लोग ‘आभिजात्य’ और ‘अभिजात्य’ को सही मानते हैं (देखें चित्र)। यहाँ तक कि राजपाल जैसे शब्दकोशों में भी उन्हें स्थान मिलने लगा है। हैरत की बात है कि संस्कृत में अभिजात्य जैसा कोई शब्द ही नहीं है लेकिन कोशकार उसे संस्कृत का शब्द बता रहे हैं।
आख़िर ऐसा क्यों और कैसे हुआ कि ‘अभिजात’ की जगह ‘आभिजात्य’ और ‘अभिजात्य’ शब्द हिंदी में चलने लगे?
मेरे हिसाब से इसके लिए वे अल्पज्ञ लेखक/पत्रकार ज़िम्मेदार हैं जिन्होंने संस्कृत की अपनी सीमित समझ के आधार पर इन दोनों शब्दों को जनप्रचलित कर दिया। उन लेखकों/पत्रकारों के पाठकों में मेरे जैसे नए पत्रकार और लेखक भी थे और वे भी अपने लेखन में इन्हीं शब्दों का इस्तेमाल करने लगे। धीरे-धीरे किसी संक्रामक रोग की तरह ये दोनों ग़लत शब्द हिंदी में आम हो गए और सही शब्द प्रचलन से बाहर हो गया। उसी तरह जैसे अंतर्धान की जगह अंतर्ध्यान और बदरीनाथ की जगह बद्रीनाथ आम हो गए हैं।
मैं उन शुरुआती पत्रकारों और लेखकों को अल्पज्ञ इसलिए कह रहा हूँ कि उन्होंने ‘देखा’ था कि कुछ शब्दों के अंतिम वर्ण से स्वर हटा दें और अंत में ‘य’ लगा दें तो विशेषण बन जाता है। जैसे पूज्य, भोज्य, खाद्य, दिव्य, पाठ्य, पाश्चात्य आदि। उन्होंने यह भी देखा था कि इस क्रम में शुरुआती ‘अ’ का ‘आ’ हो जाता है। सो ‘अभिजात’ से उन्होंने ‘आभिजात्य’ बना दिया। कुछ और लोग जिन्हें ‘अ-आ’ का चक्कर समझ में नहीं आता था, उन्होंने ‘अभिजात्य’ को ही सही मानते हुए उसे अपना लिया। इस तरह अभिजात के बजाय अभिजात्य और आभिजात्य चल निकले।
ये पत्रकार और लेखक यह नहीं समझ पाए कि हर शब्द जिसके अंत में ‘य’ होता है, वह विशेषण नहीं होता। सौंदर्य, लावण्य, कर्तव्य, वाणिज्य, दांपत्य, भविष्य जैसे हज़ारों शब्द हैं जिनके अंत में ‘य’ है, उससे पहले का वर्ण स्वरमुक्त है लेकिन वे विशेषण नहीं, संज्ञाएँ हैं।
मगर आज हाल यह है कि हर पाँच में से चार लोग ‘अभिजात्य’ और ‘आभिजात्य’ को ही सही मान रहे हैं। ऐसे में क्या करें? क्या ग़लत को सही ठहरा दें जैसा कि राजपाल जैसे कोश कर रहे हैं? या सही पर टिके रहें? फ़ैसला आपको करना है।
2 replies on “241. कुलीन = आभिजात्य, अभिजात्य या अभिजात?”
मेरी गाड़ी को इसी समय खराब होना था मेरी गाड़ी अभी खराब हो गई एक वाक्य में क्रिया पुलिंग तथा दूसरे वाक्य में क्रिया स्त्रीलिंग कैसे?
यह ‘को’ लगने के कारण हो रहा है। यदि ‘को’ न लगाते तो वाक्य इस तरह बनता – मेरी गाड़ी इसी समय ख़राब होनी थी।