‘नाम’ शब्द और इसके अर्थ से हम सभी परिचित हैं और इससे बने अन्य शब्दों से भी। जैसे हरिनाम, सहस्रनाम, सर्वनाम, उपनाम, गुमनाम, बेनाम, बदनाम, हमनाम। ध्यान दीजिए, जहाँ पहले चार शब्दों में ‘नाम’ संस्कृत के शब्दों से जुड़ा है (हरि, सहस्र, सर्व और उप), वहीं बाक़ी चार शब्दों में ‘नाम’ फ़ारसी के शब्दों से जुड़ा है (गुम, बे, बद और हम)। ऐसे में किसी के भी मन में यह जिज्ञासा उत्पन्न हो सकती है कि एक ही अर्थ वाला नाम शब्द दोनों भाषाओं में कैसे मौजूद है?
जब मैंने फ़ेसबुक पर यह सवाल पूछा कि नाम शब्द किस भाषा का शब्द है तो 27% ने कहा कि यह संस्कृत का शब्द है। 16% का मत था कि यह फ़ारसी का शब्द है। शेष 57% के अनुसार यह शब्द दोनों ही भाषाओं में है।
सही जवाब यही है कि यह शब्द दोनों भाषाओं में है। संस्कृत में भी और फ़ारसी में भी। इसका कारण यह नहीं है कि ‘नाम’ शब्द संस्कृत से फ़ारसी में गया या फ़ारसी से संस्कृत में आया। कारण यह है कि दोनों भाषाओं का आदिस्रोत एक ही है।
भाषाओं पर शोध करने वाले मानते हैं कि चार-पाँच हज़ार साल पहले आर्य जाति के लोग यूरेशिया के अपने मूल निवास स्थान से कई दिशाओं में गए। उनकी एक शाखा उत्तर की तरफ़ गई तो दूसरी दक्षिण की तरफ़। दक्षिण की तरफ़ आने वाले लोगों में से कुछ ईरान में बस गए तो कुछ भारत की तरफ़ मुड़ गए। ज़ाहिर है कि उस समय ईरान में बसने वाले और भारत आने वाले आर्यों की भाषा एक ही थी लेकिन समय के साथ उनमें बदलाव होता गया। इस कारण आज दोनों इलाक़ों की भाषाएँ अलग-अलग हैं मगर कुछ बुनियादी शब्द आज भी दोनों में एक जैसे हैं।
जैसे ‘नाम’। निश्चित रूप से ‘नाम’ बहुत शुरुआती शब्द रहा होगा। हवा, पानी, आग जैसे प्राकृतिक तत्वों, अलग-अलग पशु-पक्षियों और माता-पिता जैसे रिश्तों या अपने या दूसरे क़बीलों को भी कोई-न-कोई ‘नाम’ देकर ही पहचाना जाता होगा।
यही कारण है कि ‘नाम’ शब्द का साम्य केवल संस्कृत और फ़ारसी तक सीमित नहीं है। हम सब जानते हैं कि अंग्रेज़ी का Name हिंदी के ‘नाम’ से कितना मिलता-जुलता है। बचपन में इन दोनों शब्दों के साम्य ने मुझे काफ़ी चौंकाया था लेकिन तब मुझे मालूम नहीं था कि ऐसा क्यों है। यह तो बाद में पता चला कि भारोपीय (भारत+यूरोपीय/Indo-Europian) भाषाएँ बोलने वालों के पूर्वज एक ही थे और इसी कारण हिंदी-फ़ारसी और यूरोपीय भाषाओं के कई शब्द एक जैसे हैं।
ऑक्सफ़र्ड शब्दकोश के अनुसार Name शब्द लैटिन के Nomen और ग्रीक के Onoma से आया है। डच भाषा में इसे Naam और जर्मन में Name कहते हैं। दुनिया की किन-किन भाषाओं में नाम से मिलते-जुलते शब्द हैं, यह जानने के लिए इस लिंक पर जा सकते हैं।
अलग-अलग भाषाओं में पाई जाने वाली यह शाब्दिक समानता हमारे लिए ख़ुशी की बात होनी चाहिए क्योंकि इससे अलग-अलग देशों में रहने वाले लोगों में भाईचारा पैदा होता है। लेकिन अफ़सोस की बात यह है कि श्रेष्ठता के झूठे घमंड में जीने वाले कुछ लोग इस साम्य का उपयोग अपने थोथे अहंकार की तुष्टि और दूसरों को छोटा दिखाने के लिए करते हैं। हाल ही में मुझसे किसी ने पूछा कि क्या नमाज़ संस्कृत से बना है। उन्हें किसी ने ऐसा बताया होगा क्योंकि नमाज़ के दौरान मुसलमान झुकते हैं और इसका संबंध संस्कृत के नमस् से जोड़ा जा सकता है। इंटरनेट पर ऐसे कई लेख मिलेंगे जिनमें नमाज़ को संस्कृत का शब्द बताया गया है।
मैंने उनसे वही बात कही जो ऊपर लिखी है कि कैसे भारत के उत्तर में रहने वाले आर्यों का एक दल ईरान में बस गया और दूसरा भारत आ गया। उन्हें यह भी बताया कि जैसे हिंदी का उद्भव प्राकृत से और प्राकृत का उद्भव संस्कृत से है, वैसे ही फ़ारसी का उद्भव पहलवी और पहलवी का उद्भव ज़ेंद-अवेस्ता से है। चूँकि अवेस्ता और संस्कृत किसी एक साझा भाषा से निकली हैं इसलिए हिंदी और फ़ारसी के कई शब्दों में हमें साम्य मिलता है।
अपनी बात को और अधिक स्पष्ट करने के लिए मैंने उन्हें यह मिसाल दी।
- इसे यूँ समझें कि आपकी नानी के दो बेटियाँ थीं – एक आपकी माँ, दूसरी आपकी मौसी। दोनों को उन्होंने एक-एक हार दिया। दोनों हार एक जैसे थे। वह हार आपकी माँ ने आपको और आपकी मौसी ने अपनी बेटी को दिया।
- आज की तारीख़ में आपके पास नानी का दिया जो हार है, वह वैसा ही है जैसा आपकी मौसेरी बहन के पास है।
- तो क्या कोई यह कह सकता कि आपने अपनी मौसेरी बहन की नक़ल करके वह हार बनवाया है?
- चूँकि आपकी और आपकी मौसेरी बहन को अपनी नानी से ही दोनों हार मिले हैं इसलिए दोनों एक जैसे हैं।
- चूँकि फ़ारसी और संस्कृत एक कॉमन भाषा से निकली हैं इसलिए दोनों के कई शब्द एक जैसे हैं। सिंपल।
संस्कृत और ज़ेंद-अवेस्ता के रिश्ते के बारे में और अधिक जानना हो तो इस लिंक पर जाएँ।