Candidate के लिए हिंदी का जो सरकारी शब्द है, उसे दो तरह से लिखा जाता है – अभ्यर्थी और अभ्यार्थी। इसमें से सही क्या है और क्यों है, इसी पर चर्चा की गई है। रुचि हो तो पढ़ें।
सही शब्द है अभ्यर्थी। कारण, यह संस्कृत से आया है जहाँ इसका व्यापक मतलब है – याचना या प्रार्थना करने वाला। लेकिन हिंदी में इसका सीमित अर्थ है – किसी पद या नौकरी पर चुने जाने के लिए आवेदन करनेवाला उम्मीदवार (देखें चित्र)।
लेकिन पता नहीं क्यों, कई सरकारी विज्ञापनों और समाचार वेबसाइटों में अभ्यर्थी की जगह अभ्यार्थी का प्रयोग किया जाता है (देखें चित्र)। वजह एक ही हो सकती है कि सरकारी अनुवादकों और अख़बारी उपसंपादकों को पता ही नहीं कि यह शब्द कैसे बना। वे प्रार्थी, विद्यार्थी, शरणार्थी, लाभार्थी की देखादेखी इसे भी अभ्यार्थी समझ लेते हैं। इसका असर यह हुआ है कि आम लोग भी अब अभ्यार्थी बोलने-लिखने लगे हैं।
विद्यार्थी/शरणार्थी और अभ्यर्थी की रचना प्रक्रिया में अंतर है। विद्यार्थी में विद्या के अंतिम ‘आ’ और अर्थी के शुरुआती ‘अ’ के मिलने से ‘आ’ बना है। आ+अ=आ (दीर्घ संधि)। इसलिए विद्यार्थी। शरणार्थी भी इसी तरह शरण के अंतिम ‘अ’ और अर्थी के शुरुआती ‘अ’ के मिलने से बना है। अ+अ=आ। यहाँ भी दीर्घ संधि है।
परंतु अभ्यर्थी अभि और अर्थी के मिलने से बना है। ध्यान दीजिए कि अभि के अंत में ‘अ’ नहीं, ‘इ’ है। इस ‘इ’ और अर्थी के ‘अ’ के मिलने के दौरान यण संधि हुई है जिसके कारण ‘इ’ का ‘य्’ हो गया है। कुछ इस तरह – अभि>अभ्(इ)>अभ्(य्)+अर्थी=अभ्यर्थी।
यण संधि में ‘इ’ के बाद कोई विजातीय स्वर आता है तो ‘इ’ का ‘य्’ होता है – य्। ध्यान दें, ‘इ’ का ‘य्’ बनता है, ‘य’ नहीं। यानी ‘य्’ के साथ कोई स्वर नहीं है। इसलिए अभ्य्+अर्थी में य् के साथ अर्थी के ‘अ’ के मिलने से ‘य’ ही बनेगा, ‘या’ नहीं। यदि ‘इ’ का ‘य’ में परिवर्तन होता, तब अभ्यार्थी हो सकता था। अभ्य+अर्थी=अभ्यार्थी। लेकिन ऐसा तो है नहीं।
इसी तरह कई लोग अनधिकृत को भी लोग अनाधिकृत बोलते-लिखते हैं। इसपर पहले चर्चा हो चुकी है। रुचि हो तो पढ़ें कि क्यों अनधिकृत सही है और अनाधिकृत ग़लत है।