हाल ही मेरी नज़र एक फ़ेसबुक पोस्ट पर पड़ी जिसमें कइयों, ढेरों, बहुतों और अनेकों को ग़लत बताया गया था। उस पोस्ट पर कॉमेंट करने वाले अधिकतर लोग भी लेखिका से सहमत दिख रहे थे। असहमति जताने वाले भी एक-दो लोग थे मगर वे यह बता नहीं पा रहे थे कि यदि अनेकों, बहुतों आदि सही हैं तो किस आधार पर। आज की हमारी चर्चा इसी विषय पर है। क्या अनेकों और बहुतों का प्रयोग वाक़ई ग़लत है? अगर हाँ तो प्रसिद्ध वैयाकरण कामताप्रसाद गुरु और लेखक विष्णु प्रभाकर इन्हें सही कैसे बता रहे हैं? रुचि हो तो पढ़ें।